लखनऊ। उत्तर प्रदेश की यह नियति रही है कि यहां जो भी पार्टी सत्ता में आती है, वह खूब मनमानी करती है। कायदे कानून ताक पर रख दिए जाते हैं। यहां तक की अपराधियों के प्रति भी हर सरकार का नजरिया अलग-अलग होता है। कई बार तो ऐसा भी देखने को मिलता है जब सत्तारूढ़ पार्टियां वोट बैंक की सियासत के चलते आतंकवादियों तक से मुकदमें वापस लेने में गुरेज नहीं करती हैं। इसको लेकर समाजवादी सरकारों का रिकार्ड तो काफी ही खराब रहा है। कौन भूल सकता है जब 2013 में अखिलेश यादव ने सरकार बनाने के कुछ माह के भीतर ही खूखार आतंकवादियों तक के मुकदमें वापस लेने की हठधर्मी करने से गुरेज नहीं किया था, वर्ष 2013 में समाजवादी पार्टी ने आतंकवाद के विभिन्न मामलों में 19 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा वापस ले लिए थे। वह तो न्यायपालिका ने अखिलेश के इरादों पर अंकुश लगा दिया,वर्ना अखिलेश सरकार ने तो सीरियल बम ब्लास्ट के आतंकवादियों तक पर से मुकदमें वापस ले ही लिए थे।
इसी क्रम में योगी सरकार भी अपने कई भाजपा नेताओं पर चल रहे मुकदमें वापस ले चुकी है। सरकार बनाते ही करीब 20 हजार मुकदमें योगी सरकार ने वापस लिए थे। यहां तक की योगी के खिलाफ चल रहे कुछ मुकदमेें भी वापस हो चुके हैं। अब चर्चा यह चल रही है कि 1990 में समाजवादी सरकार के समय कारसेवकों पर दर्ज किए गए मुकदमें भी योगी सरकार वापस ले सकती है। योगी सरकार के ऊपर तमाम हिन्दू संगठन और अखाड़ा परिषद दबाव बना रही हैं। मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के दौरान कारसेवकों पर दर्ज मुकदमों को जल्द वापस करने को लेकर अखाड़ा परिषद लम्बे समय से मुहिम छेड़े हुए है। यह मुहिम राम मंदिर पर फैसला आने और राम मंदिर निर्माण शुरू होने के बाद और तेज हो गई है। अखाड़ा परिषद का कहना है कि जब अयोध्या में प्रभु राम का भव्य मंदिर निर्माण के लिए प्रधानमंत्री ने भूमि पूजन कर दिया है, तो अब सारे विवाद स्वतः ही समाप्त हो जाते है। कारसेवक बिना किसी भय से राम मंदिर निर्माण में अपना सहयोग दे सकें, इसके लिए जरूरी है कि विवादित ढांचा तोड़े जाने को लेकर उन पर चल रहे सभी मुकदमें समाप्त ले लिए जाएं। अपनी मांग को लेकर अखाड़ा परिषद के साधू-संत जल्द ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात करने का कार्यक्रम बना रहे हैं। संभवता परिषद अगले महीने दोनों नेताओं से मुलाकात करने के लिए लखनऊ-दिल्ली जा सकता है।
इस संबंध में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष मंहत नरेंद्र गिरि का कहना है कि कारसेवकों ने अपने प्राणों की परवाह किए बिना राम मंदिर आंदोलन से जुड़कर अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया। जिसकी भक्ति और शक्ति के कारण आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का सपना पूरा होता दिख रहा है। ऐसे में कारसेवकों को पूरी तरह से मंदिर आंदोलन के सभी आरोपों से बरी कर दिया कर देना चाहिए।
कारेसवकों पर से मुकदमें वापस होंगे या नहीं यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है,लेकिन इतना तो है ही जिस राज्य में आतंकियों पर मुकदमे वापस लेने की बात सरकार सोच सकती है तो फिर कारसेवकों पर से तो मुकदमें वापस लिए ही जा सकते हैं।
खैर इतना सब होने के बाद भी अखिलेश की चाहत का सिलसिला कम नहीं हुआ है। अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तब एक बार फिर चर्चा में आ गए थे जब उन्होंने यह कहा की यदि 2022 में उनकी पार्टी की सरकार उत्तर प्रदेश राज्य में दुबारा सत्ता में आती है तो वो आजम खान के खिलाफ दायर सभी मुकदमे वापस ले लेंगे। खैर, मामला किसी भी सरकार का हो, यदि मुकदमे वापस लिए जाने के फैसले लिए जाते हैं तो सुर्खियां बनती ही हैं। हालांकि, सरकारों के लिए किसी के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले वापस लेने का नियम नहीं है, लेकिन इसको लेकर कई मिसाले मौजूद हैं।