उत्तर प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव का मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में चल रहा है। इसपर 23 दिसंबर को अगली सुनवाई होनी है। दरअसल योगी सरकार ने निकाय चुनाव को लेकर अधिसूचना जारी की थी जिसपर आपत्ति जताई गई थी और स्थानीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को आरक्षण देने की मांग की गई।
वहीं हाई कोर्ट में दायर की गई याचिका में यह भी कहा गया कि निकाय आरक्षण में सरकार ने पिछड़ों के आरक्षण में ट्रिपल टेस्ट का फार्मूला लागू नहीं किया। इसपर योगी सरकार की तरफ से जवाब दिया गया कि ओबीसी आरक्षण लागू करने के लिए राज्य सरकार की तरफ से जो व्यवस्था अपनाई गई वो सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुझाए गए ‘ट्रिपल टेस्ट फार्मूला’ जितनी अच्छी है।
जानें क्या है ट्रिपल टेस्ट फार्मूला:
सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित ‘ट्रिपल टेस्ट फार्मूला’ में राज्य सरकार को प्रदेश के अंदर स्थानीय निकायों के पिछड़ेपन की स्थिति का आंकलन कर डेटा एकत्र करना और इसके लिए विशेष कमीशन का गठन करना शामिल है। कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर राज्य के भीतर ओबीसी आरक्षण लागू होगा। ओबीसी आरक्षण करने से पहले तीन मानकों को परखना जरूरी है।
इसमें आवश्यक आरक्षण के अनुपात को देखना होगा। इसके अलावा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीटें कुल सीटों के 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
वहीं 2017 में हुए निकाय चुनाव के जब चुनाव हुए थे तो उत्तर प्रदेश नगर निगम (सीटों और कार्यालयों का आरक्षण और आवंटन), 2011 के तहत शहरी विकास विभाग ने ओबीसी के लिए 27%, अनुसूचित जाति के लिए 13% और महिला उम्मीदवारों के लिए 20% (कुल मिलाकर 60) सीटों की घोषणा की थी।
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हाई कोर्ट ने लगाया स्टे:
योगी सरकार की तरफ निकाय चुनाव को लेकर जारी की गई अधिसूचना पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने पहले 20 दिसंबर तक रोक लगा दी थी लेकिन सुनवाई की तारीख जैसे-जैसे आगे बढ़ी, स्टे की समय सीमा भी बढ़ती रही। अब इस मामले की सुनवाई 23 दिसंबर को होगी। अगर अदालत राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाता है तो यूपी निकाय चुनाव जनवरी में हो सकते हैं। वहीं अगर कोर्ट का फैसला योगी सरकार के खिलाफ आता है तो संभव है कि चुनाव अप्रैल-मई तक हों।