हिंदू पंचांग अनुसार महाशिवरात्रि का दिन बेहद ही खास होता है। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। वैसे तो हर महीने शिवरात्रि आती है लेकिन फाल्गुन मास की चतुर्दशी को आने वाली महाशिवरात्रि का विशेष महत्व होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, महाशिवरात्रि का त्योहार प्रति वर्ष फाल्गुन माह कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान शिव और पार्वती माता के विवाहोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 11 मार्च (गुरुवार) को पड़ रही है। महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का पर्व है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार इस दिन व्रत पूजन करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
महाशिवरात्रि पूजा सामग्री
इस बार महाशिवरात्रि का पावन पर्व 11 मार्च यानी कल मनाया जाएगा। इस पावन पर्व पर शिव के साथ माता पार्वती की पूजा भी की जाती है। शिवरात्रि के दिन रात में पूजा करना सबसे फलदायी माना गया है। इस दिन भगवान शिव की पूजा विशेष सामग्रियों के साथ की जाती है। पूजा में पुष्प, बिल्वपत्र, भांग, धतूरा, बेर, जौ की बालें, आम्र मंजरी, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, गन्ने का रस, दही, देसी घी, शहद, गंगा जल, साफ जल, कपूर, धूप, दीपक, रूई, चंदन, पंच फल, पंच मेवा, पंच रस, गंध रोली, इत्र, मौली जनेऊ, शिव और मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री, वस्त्राभूषण, रत्न, पंच मिष्ठान्न, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन का इस्तेमाल किया जाता है।
महाशिवरात्रि पर्व मनाने को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कथा के अनुसार ये पर्व शिव और माता पार्वती के मिलन की रात के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन पार्वती जी का विवाह भगवान शिव से हुआ था। एक मान्यता ये भी है कि इसी दिन भोलेनाथ 64 शिवलिंग के रूप में संसार में प्रकट हुए थे, जिनमें से लोग उनके 12 शिवलिंग को ही ढूंढ पाए। इन्हें हम 12 ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं।
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कैसे करें महाशिवरात्रि का व्रत
महाशिवरात्रि व्रत त्रयोदशी तिथि को शुरू होगा, जिसमें पूरे दिन का उपवास रखा जाएगा। महाशिवरात्रि के दिन भक्त भगवान शिव की पूजा करते हैं और अपना व्रत पूरा करने से पहले भोलेनाथ से आशीर्वाद मांगते हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, चतुर्दशी पर रात्रि के दौरान चार बार महाशिवरात्रि की पूजा की जाती है। इन चार समयों को चार पहर के रूप में भी जाना जाता है और यह माना जाता है कि इन समयों के दौरान पूजा करने से व्यक्ति अपने पिछले पापों से मुक्त हो जाता है और उन्हें मोक्ष का आशीर्वाद मिलता है। शिव पूजा को रात्रि के दौरान करना अनिवार्य माना जाता है और अगले दिन चतुर्दशी तिथि समाप्त होने से पहले सूर्योदय के बाद इस व्रत का पारण किया जाना चाहिए। यदि आप उपवास करते हैं तो पूरे दिन फलाहार ग्रहण करें और नमक का सेवन न करें। यदि किसी वजह से नमक का सेवन करते हैं तो सेंधा नमक का सेवन करें।