उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बीजेपी (BJP) उस कसीनो के उस हाउस की तरह है जिसकी हर हाल में जीत होती ही है. हालात चाहें कितनी भी खराब क्यों न हो जाएं, जीत की सूई बीजेपी की तरफ ही घूमती है. एग्जिट पोल की मानें, तो भाजपा चौथी बार यहां सीधे तौर पर जीतने जा रही है – कुछ तो भारी बहुमत की भविष्यवाणी कर रहे हैं. 2014 के लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Election) में जीत के बाद बीजेपी राज्य में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही है. अगर चुनावी पंडितों (Assembly election) की बात सच है तो निश्चित तौर पर बीजेपी 2022 में भी सत्ता में लौटने वाली है.
ये अपेक्षित जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण होने वाली है, क्योंकि पहली बार बीजेपी संयुक्त विपक्ष से लोहा ले रही थी. उत्तर प्रदेश के इतिहास में आज तक कोई भी मुख्यमंत्री अपने पूर्ण कार्यकाल के बाद दोबारा निर्वाचित नहीं हुआ है. 1985 के बाद से किसी भी पार्टी ने सत्ता में लगातार वापसी नहीं की है. लेकिन भविष्यवाणी ये है कि बीजेपी इस बार इतिहास को बदलने जा रही है.
कैसा रहा सपा का प्रदर्शन
भारतीय एग्ज़िट पोल कई बार ग़लत होते हैं. लेकिन अगर इस भविष्यवाणी को सही माना जाए, तो बीजेपी की जीत की विशालता को भी देखना ज़रूरी हो जाता है.कवि चंद्र बरदाई ने अजमेर के शासक पृथ्वी राज चौहान को उनके दुश्मन मौहम्मद गोरी के ठिकाने की जानकारी देते हुए एक चर्चित दोहा लिखा था. जिसमें बरदाई पृथ्वीराज चौहान से कहते हैं कि अपने दुश्मन को हराने के लिए उनके पास यह सबसे बेहतरीन मौका है, जिसे उन्हें चूकना नहीं चाहिए. बरदाई ने अखिलेश यादव से भी इस साल यही कहा होता, अभी नहीं तो कभी नहीं, इसलिए इसे चूकना मत.
इस बार हर चीज समाजवादी पार्टी के अनुकूल नजर आई, पार्टी ने जातीय इंद्रधनुष का ऐसा गठबंधन ज़मीन पर उतारा जिसे तोड़ना नामुमकिन लग रहा था. यह चर्चा आम थी कि यादव समाज की पार्टी में वापसी हुई है और मुसलमानों ने अखिलेश को वोट देने की कसमें खाई है, जबकि जाट भाजपा के खिलाफ जाकर अपने अपमान का बदला लेना चाहते हैं. साथ ही अखिलेश इस बार छोटी जातियों को साथ लाने में कामयाब रहे थे. जिससे बीजेपी के हिन्दू वोट बैंक में बिखराव दिखाई देता था.
बसपा की कथित गिरावट ने भी विपक्ष की एकता के ग्राफ को बढ़ा दिया था – जो कि भारतीय राजनीति में एक बड़ा फैक्टर माना जाता है और पूरे चुनाव ने बीजेपी और सपा के बीच सीधी जंग का रूप ले लिया था. महंगाई, बेरोज़गारी, कोरोना महामारी से होने वाली परेशानी की वजह से जनता में नाराज़गी थी. सत्ताधारी पार्टी के विरोध का फैक्टर सबसे ऊपर था. इस सब के बावजूद बीजेपी के जीतने की उम्मीद जताई जा रही है. इतना ही नहीं. कुछ पोल सर्वेक्षण बता रहे हैं कि बीजेपी के वोट शेयर में इस बार 2017 के मुकाबले तीन प्रतिशत की वृद्धि होगी, जो कि बहुत बड़ी उपलब्धि है.
भाजपा के जीतने की उम्मीद क्यों है और 2024 के चुनावों के लिए इसके क्या मायने हैं?
1. पार्टी का हिन्दू वोट बरक़रार है: एग्जिट पोल बताते हैं कि सपा को 35 फीसदी वोट मिलने की उम्मीद है, जो यादवों और मुसलमानों की आबादी के प्रतिशत के बराबर है. इस बात में कोई शक नहीं है कि अगर मुसलमानों और यादवों ने सपा को वोट दिया है तो हिन्दू वोटरों ने अपने पहली पसंद भाजपा का साथ दिया है. पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम गठबंधन को लेकर तमाम तरह की चर्चाओं के बावजूद बीजेपी के वोटरों ने पार्टी से दूरी नहीं बनाई. इसलिए सबक़ नंबर एक ये है कि हिंदुत्व के नारे को नकारा नहीं गया है.
2. विपक्ष पर भरोसे की कमी: इन बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बेरोज़गारी, महंगाई और आवारा पशुओं जैसी मतदाताओं की समस्याएं बरकरार हैं. लेकिन मतदाताओं का यकीन है मोदी जी के जरिए बीजेपी इस सभी समस्याओं का हल निकाल लेगी. उनका मानना है कि मोदी जी जो तोड़ते हैं, उसे जोड़ भी वही सकते हैं.
3. मुफ्त योजनाएं काम करती हैं: यूपी में एक मजाक प्रचलित है कि लाभार्थी (जिन्हें सरकार से मदद मिलती है) सबसे बड़ा जाति समूह है. राज्य में मतदाताओं ने खुलकर यह माना कि उन्हें सरकार पेंशन और राशन मिलता है. इसलिए इस बात की संभावना बहुत ज़्यादा है कि लोगों ने पारंपरिक जातीय वफ़ादारी से ऊपर उठ कर फिर से भाजपा को सत्ता में वापस लाने के लिए वोट किया.
4. हाथी हुआ दरकिनार: विपक्ष एक साथ आकर 2024 में बीजेपी को कड़ी टक्कर देने की योजना बना रहा था. लेकिन इन चुनौती देने वालों के लिए एक बुरी खबर यह है कि संयुक्त विपक्ष से भी वोटों का ध्रुवीकरण होता है और इससे बीजेपी को फायदा होता दिखाई देता है.
इसकी वजह यह है कि यूपी में बीजेपी को मिला संभावित वोट क़रीब 43 फीसदी बताया जा रहा है, जो कि पिछली बार की तुलना में 3 प्रतिशत ज़्यादा है. ये वोट आखिर आ कहां से रहे हैं? ये वोट कुछ हद तक कांग्रेस और ज्यादातर बसपा से आते दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि इन चुनावों में बसपा को यूपी की दौड़ से बाहर माना जा रहा था. और ऐसा अनुमान था कि ये वोट सपा के हिस्से में जाएंगे. लेकिन कुछ मतदाताओं ने मुख्य रूप से बीएसपी को समर्थन देने वाले जाटवों ने कई कारणों से भाजपा को ही वोट किया है.
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इससे सन्देश क्या मिलता है? राजनीति में ये मत समझिए कि दुश्मन का दुश्मन हर हाल में दोस्त होता है. ये ठीक ऐसा ही है कि माना जाए कि शरद पवार के मतदाता ममता बनर्जी को इसलिए वोट देंगे क्योंकि दोनों का एजेंडा एक है.इन सभी वजहों को एक साथ रखने पर साफ संकेत मिलता है कि 2024 में भाजपा अजेय होगी. ऐसे विपक्ष और मतदाताओं से निकट भविष्य में किसी दूसरे नतीजे की उम्मीद मत रखिए. क्योंकि चाहे आप कुछ भी कर लीजिए, जीत की सूई भाजपा की तरफ ही मुड़ेगी.