पितृ पक्ष का समय हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दौरान पितरों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है और श्राद्ध कर्म का आयोजन किया जाता है। वैसे तो यह कार्य घर में बेटे के द्वारा किया जाता है, लेकिन अगर बेटा न होतो यह कार्य कौन कर सकता है।
चलिए जानते हैं कि अगर बेटा न हो तो यह कार्य और कौन कर सकता हैं-
- हिंदू धर्म के अनुसार, श्राद्ध करने का पहला अधिकार बड़े पुत्र को होता है यदि वह नहीं है घर का दूसरा पुत्र यह नियम कर सकता है।
- अगर घर का बड़ा बेटा नहीं है या उनका निधन हो गया है तो इसकी जगह पर बेटे की पत्नि यानि बहू यह नियम कर सकती है। इसके अलावा भाई का पुत्र यानि भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है।
- परिवार में केवल पुत्री है तो पुत्री का बेटा यानि नाती भी श्राद्ध कर सकता है। इससे आत्मा को शांति मिलती है और वह मुक्त हो जाती है।
श्राद्ध के समय कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना आवश्यक है:
- श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना जरूरी है।
- जनेऊधारी व्यक्ति को पिंडदान के समय जनेऊ दाएं कंधे पर रखना चाहिए।
- पिंडदान हमेशा चढ़ते सूर्य के समय किया जाना चाहिए, सुबह या रात में नहीं।
- पिंडदान के लिए कांसे, तांबे या चांदी के बर्तन का उपयोग किया जाना चाहिए।
इन नियमों का पालन करना आवश्यक है ताकि श्राद्ध सही तरीके से संपन्न हो सके और पितरों को शांति मिले।
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