कोरोना वायरस के घातक हमले से वो लोग ज्यादा सुरक्षित है, जो लोग पहले से विटामिन डी की कमी का शिकार नहीं है। हाल ही में हुई एक रिसर्च से पता चला है कि विटामिन डी की इतनी कमी लोगों में आखिरकार क्यों और कैसे हुई? इस जरुरी विटामिन की कमी से लोगों के भयानक बीमारियों के शिकार होने के पीछे क्या वजह है? इस स्टडी में पता चला है कि लगभग पिछले 500 सालों से लोगों में धीरे-धीरे विटामिन डी की कमी हो रही है। लेकिन इसके पीछे की वजह जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे।
इतने सालों से दुनियाभर में लोगों में हो रही विटामिन डी की कमी होने के पीछे की वजह रही है उनका एक जगह से दूसरी जगह विस्थापन यानी माइग्रेशन… जी हां ये जान कर चौंक रहे होंगे कि एक जगह से दूसरी जगह पर जाने से ऐसा कैसा हो सकता है। लेकिन ये बात सच है, जैसे थोड़ी सी भी गर्मी बढ़ जाने पर लोग तुरंत एसी चला लेते है। आप ठंडी जगह पहाड़ों पर जा कर छुट्टियां मनाने लगते है। आप चाहते हैं कि देश के गर्म इलाकों को छोड़कर कम गर्म या ठंडे इलाकों में जाकर बस जाएं। बस इसी विस्थापन की वजह से लोगों में विटामिन डी की कमी आई है।
शायद आपको पता नहीं है लेकिन विटामिन डी की कमी की वजह से कोरोना वायरस, दिल संबंधी बीमारियां, डायबिटीज, तनाव और कुछ प्रकार के कैंसर हो सकते हैं। इसलिए ठंडे इलाकों में रहने वाले कुछ लोग इस कमी को पूरा करने के लिए समुद्री किनारों पर जाकर सनबाथ लेते हैं। ताकि उनके शरीर में विटामिन डी की कमी पूरी हो सके।
यूनिवर्सिटी ऑफ साउदर्न डेनमार्क और यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन के शोधकर्ताओं ने एक साथ रिसर्च करके पता लगाया है कि पिछले 500 साल में लोग दक्षिणी इलाकों से उत्तरी इलाकों की तरफ आए हैं। ये पूरी दुनिया में हुआ है। जिन जगहों पर अल्ट्रावायलेट किरणों का असर ज्यादा है, उस स्थान को छोड़कर लोग इन किरणों के कम असर वाले इलाकों में रोजी-रोटी या घूमने के लिए आए। इससे उनके शरीर में विटामिन डी की कमी हो गई।
दोनों यूनिवर्सिटीज के रिसर्चर्स की यह स्टडी ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स पेपर्स में प्रकाशित भी हुई है। यह स्टडी उन लोगों पर केंद्रित थी जो सूरज की ज्यादा रोशनी वाले इलाकों से कम रोशनी वाले इलाकों की तरफ आए। स्टडी का टाइम स्पैन 500 साल था। इसका उदाहरण भी दिया गया है। 20वीं सदी में अमेरिका में ग्रेट माइग्रेशन हुआ।
20वीं सदी में अफ्रीकन-अमेरिकन लोग अमेरिका के दक्षिणी इलाकों से उठकर उत्तरी इलाकों की तरफ बढ़ दिए। मुद्दा था रोजी-रोटी में सुधार और जीवन स्तर बेहतर बनाना। साथ ही रंगभेद के साथ चल रही गरीबी को मिटाना। लेकिन इन लोगों ने शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों पर ध्यान नहीं दिया। स्टडी में शामिल डॉ। थॉमस बार्नेबेक ने कहा कि इस विस्थापन की वजह से अफ्रीकन-अमेरिकन लोगों के स्वास्थ्य पर खासा असर पड़ा।
उदाहरण के तौर पर अगर अमेरिका के जॉर्जिया से न्यूयॉर्क की तरफ जाते हैं तो अल्ट्रावायलेट किरणों में 43 फीसदी की कमी आती है। सिर्फ इतने से ही आपके शरीर में विटामिन डी की कमी हो सकती है। जॉर्जिया से न्यूयॉर्क की दूरी करीब 1474 किलोमीटर है। यानी भारत में पुणे से दिल्ली की दूरी करीब इतनी ही है। अब आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि आपको कितने विटामिन डी की कमी पड़ेगी।
विटामिन डी हमारे शरीर में ज्यादातर तब पैदा होती है जब हम सूरज की रोशनी में आते हैं। इसके लिए हमें पर्याप्त समय सूरज की रोशनी में अपने शरीर को रखना चाहिए। लेकिन लोग महीनों तक एसी कार, घर, दफ्तर में काम करते हैं पर खुद को सूरज की रोशनी में नहीं ले जाना चाहते, नतीजा विटामिन डी की कमी होती है।
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स्टडी में बताया गया है कि हर पांच ब्रिटिश नागरिक में से एक विटामिन डी की कमी से जूझ रहा है। विटामिन डी की गोलियां खाने से बीमारियों से दूर रहा जा सकता है लेकिन उससे खतरा टलता नहीं है। ऐसा नहीं है कि जिसकी त्वचा का रंग गहरा होता है उन्हें विटामिन डी की कमी नहीं होती। उन्हें भी हो सकती है। इसलिए सूरज की रोशनी में थोड़ी टैनिंग होती भी है तो वह फायदेमंद है।
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भविष्य में विटामिन डी की कमी को लेकर मानव विस्थापन पर काफी रिसर्च करने की संभावनाएं बढ़ रही हैं। ठंडे प्रदेशों में रहना सभी को अच्छा लगता है लेकिन उसके नुकसान अलग हैं। अगर शरीर में विटामिन डी की कमी हुई तो कोरोना समेत कई भयानक बीमारियां आपको घेर सकती हैं।