मृत्युंजय दीक्षित
जिससे स्वतंत्रा का मूल मंत्र, “वंदेमातरम” उद्भासित हुआ, जिसे गाते हुए हज़ारों की संख्या क्रांतिकारी फांसी के फंदे पर झूल गए, जीवन जेलों की क्रूर यातनाओं में काट दिया, जिस गीत ने माँ भारती के प्रति प्रेम और समर्पण को परिभाषित किया, जिस गीत ने स्वाधीनता की अलख संपूर्ण भारत में जगा दी वह गीत है राष्ट्रगीत वंदेमतारम। भारत विभाजन के पूर्वाभ्यास के रूप में बंग -भंग करने के अंग्रेजी षड्यंत्र को पहचानकर सम्पूर्ण राष्ट्र बंगाल विभाजन के विरुद्ध खड़ा हो गया । इस आंदोलन के दो हथियार थे स्वदेशी का स्वीकार और विदेशी का बहिष्कार और रणघोष बना था वंदेमातरम। इस गीत के रचनाकार थे बंगाल में जन्मे माँ भारती के महान सपूत श्री बंकिम चंद्र चटटोपाध्याय। आज वंदेमातरम अपनी रचना का 150 वां वर्ष मना रहा है।
इस अवसर पर वंदेमातरम गीत के माध्यम से एक बार पुनः राष्ट्र में ”स्व” की भावना की अलख जगाने का आह्वान प्रधानमंत्री मोदी जी ने किया है । वंदेमातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर देशभर में अनेकानेक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हें। इसी श्रृंखला में संसद के दोनों सदनों में वंदेमातरम पर व्यापक चर्चा हुई। लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तथा राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने चर्चा की शुरुआत की। सत्तापक्ष के वक्ताओं ने जहां वंदेमातरम गीत के इतिहास और उसकी महत्ता पर प्रकाश डालते हुए वंदेमातरम के प्रति कांग्रेस व वामपंथी दलों की विचारधारा और सोच को बेनकाब किया।
विपक्ष ने इसके पीछे बंगाल चुनावों को ध्यान में रखते हुए की गई चर्चा बताया। कुछ विपक्षी सांसदो न कहा कि वंदेमतारम पर बहस गैरजरूरी और मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए की जा रही है। इतने गम्भीर व ऐतिहासिक विषय की बहस के दौरान नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी सदन से गायब रहे। संसद में वंदेमातरम पर हुई व्यापक चर्चा सिर्फ एक गीत पर विमर्श नहीं वरन भारत की सांस्कृतिक चेतना, स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा और राष्ट्रीय एकता के मूल्यों को दोबारा केंद्र में लाने का प्रयास भी है।
चर्चा का आरम्भ करते हुए लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसके बाद रक्षामंत्री राजनाथ सिंह तथा राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने वंदेमातरम के प्रति कांग्रेस व उनके नेताओं की सोच को बेनकाब कर दिया। सरकार ने वंदेमातरम गीत की प्रेरणा से संकल्प लेकर वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के साथ राष्ट्रगीत को जीवंत बनाने का संकल्प लिया।
वंदेमातरम गीत की महानता पर बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जो वंदे मातरम 1905 में महात्मा गांधी को राष्ट्रगान के रूप मे दिखता था, देश के हर कोने में हर व्यक्ति के जीवन में जो भी देश के लिए जीता जागता था उन सबके लिए वंदेमातरम की ताकत बहुत बड़ी थी।वंदेमातरम इतना महान था, उसकी भावना इतनी महान थी तो फिर पिछली सदी में इसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों हुआ? वंदे मातरम के साथ विश्वासघात क्यों हुआ ? वह कौन सी ताकत थी जो पूज्य बापू की भावनाओं पर भी भारी पड़ गई ? किसने वंदेमातरम जैसी पवित्र भावना को भी विवादों में घसीट दिया। सदन को बताया गया कि जब वंदे मातरम को 50 वर्ष हुए तब देश गुलामी में जीने को मजबूर था और जब वंदेमातरम के 100 वर्ष पूर्ण हुए तब देश आपातकाल की जंजीरो में जकड़ा हुआ था जिस वंदे मातरम ने देश को आजादी की नई ऊर्जा दी थी जब उसके 100 वर्ष हुए तो दुर्भाग्य से एक काला इतिहास हमारे कालखंड में उजागर हो गया।
प्रधानमंत्री ने बताया कि वंदे मातरम के प्रति मुस्लिम लीग के विरोध की राजनीति तेज होती जा रही थी। मोहम्मद अली जिन्ना ने लखनऊ से 15 अक्तूबर 1937 को वंदे मातरम के विरुद्ध नारा बुलंद किया। कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखा तो उन्होंने मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों को तगड़ा जवाब देने के बजाय वंदे मातरम की ही पड़ताल शुरू कर दी और कहा कि कांग्रेस कार्यकारिणी में वंदेमातरम की उपयोगिता पर चर्चा होगी। इससे पूरा देश हतप्रभ रह गया। देशभक्तों ने कांग्रेस के उस प्रस्ताव के खिलाफ देश के कोने -कोने में प्रभात फेरियां निकालीं और वंदेमातरम गीत गाया किन्तु देशभक्तों को अनसुना करते हुए 26 अक्तूबर 1937 को कोलकाता अधिवेशन में कांग्रेस ने वंदेमातरम पर समझौता कर लिया।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने वंदे मातरम को राष्ट्रगान जैसा सम्मान मिलने की बात कही। राजनाथ सिंह ने यह धारणा तोड़ने का प्रयास किया कि वंदे मातरम किसी सांप्रदायिक विचार का परिचायक है। उन्होंने कहा कि कुछ कट्टरपंथियों ने जानबूझकर इसे धर्म के चश्मे से देखने की कोशिश की जबकि यह गीत भारत माता के प्रति समर्पण और स्वतंत्रता की पुकार का प्रतीक है।
राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस के 1937 के अधिवेशन में वंदे मातरम के अंतिम चार छंदों का गायन रोके जाने के प्रस्ताव पर बात की ओैर पंडित नेहरू के भूमिका पर प्रश्न उठाए। गृहमंत्री ने आरोप लगाया कि संसद में जब भी वंदेमातरम का गायन होता है तब कई विपक्षी सदस्य सदन से बाहर चले जाते हैं। वंदे मातरम पर चर्चा की आवश्यकता पर उत्तर देते हुए अमित शाह ने कहा कि वंदे मातरम पर चर्चा की आवश्यकता जब वंदे मातरम रचा गया था तब भी थी, आजादी के समय मे भी थी, आज भी है और 2047 में जब आधुनिक भारत होगा तब भी रहेगी क्योकि वंदे मातरम में कर्तव्य और राष्ट्रभक्ति की भावना है । गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट रूप से कहा कि जिस पार्टी के अधिवेशन की शुरुआत गुरुवर रवींद्र नाथ टैगोर वंदे मातरम गाकर कराते थे उस पर जब लोकसभा में चर्चा हुई तो गांधी परिवार के सदस्य सदन में नहीं थे।नेहरू से लेकर आज तक कांग्रेस ने वंदेमातरम गान का विरोध किया है। भविष्य में वंदेमातरम देश को विकसित और महान बनाने का उद्घोष बनेगा।
वंदेमातरम गीत ने राष्ट्र की सोई हुई को चेतना को जाग्रृत किया और देशवासियों ने विदेशी वस्तुओं का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दिया। आज आत्मनिर्भर भारत विकसित बनाने के लिए उसी वंदेमातरम के भाव का आह्वान प्रधानमंत्री जी ने किया है। वंदेमातरम कोटि कोटि भारत वासियों के ह्रदय के तारों को झंकृत करे और प्रत्येक भारतीय प्राणप्रण से भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के यज्ञ में कूद पड़े यही वंदेमातरम की 150 वीं वर्षगांठ मनाने की सार्थकता होगी।
प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित
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