केरल हाई कोर्ट ने तलाक की एक अर्जी को खारिज करते हुए जो टिप्पणियां की हैं, उससे समाज में बढ़ते पारिवारिक कलह का पता चलता है। अदालत ने साफ किया है कि युवा पीढ़ी शादी को भी खेल समझने लगे हैं और उनकी मानसिकता ऐसी होती जा रही है कि यह कोई इस्तेमाल करके फेंकने की चीज हो। अदालत के मुताबिक आज के युवाओं में यह ट्रेंड देखा जा रहा है कि वह विवाह को बोझ समझने लगे हैं और आजाद रहने के लिए लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहते हैं, जिसमें जब मन भर गया उससे निकल गए। यहां तक कि लोग अपने बच्चों के हितों के बारे में भी सोचना छोड़ रहे हैं।
शादी को ‘बुराई’ समझने लगी है युवा पीढ़ी- हाई कोर्ट
केरल हाई कोर्ट ने विवाह के अटूट बंधन जैसी मान्यताओं को दरकिनार कर उसका मजाक बनाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर बहुत ही सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने ‘इस्तेमाल किया और फेंका वाली उपभोक्ता संस्कृति’ की जमकर खिंचाई की है और ऐसा कहते हुए तलाक की एक अर्जी खारिज कर दी है। अपने आदेश के दौरान अदालत ने जो कुछ बातों कही हैं, वह मौजूदा सामाजिक व्यवस्था को देखते हुए बहुत ही महत्वपूर्ण है। केरल हाई कोर्ट ने यहां तक का है कि युवा पीढ़ी को लगता है कि शादी एक ‘बुराई’ है और इससे इसलिए बचना चाहते हैं, ताकि ‘आजाद रहकर जिंदगी का आनंद’ ले सकें।
केरल हाई कोर्ट ने तलाक की अर्जी खारिज की
हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले पर याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी भी की है कि लिव-इन रिलेशनशिप के मामले बढ़ रहे हैं, जो कि ‘समाज की अंतरात्मा’ के लिए बहुत ही चिंताजनक है। समाज की मौजूदा स्थिति पर इस तरह की टिप्पणियां जस्टिस ए मुहम्मद मुस्ताक और सोफी थॉमस की बेंच ने की है। अदालत ने पिछले हफ्ते एक व्यक्ति की ओर से कथित ‘वैवाहिक क्रूरता’ के आधार पर तलाक की अपील को खारिज करते हुए इस तरह की बातें कही हैं।
पत्नी को लेकर बदल रही सोच पर अदालत गंभीर
हाई कोर्ट के जजों ने अपने आदेश में कहा है, ‘आजकल, युवा पीढ़ी सोचती है कि विवाह एक बुराई है, जिससे बिना किसी जिम्मेदारी और दायित्वों वाले स्वतंत्र जीवन जीने के लिए बचा जा सकता है। वे वाइफ (WIFE) शब्द का विस्तार पुरानी अवधारणा वाइज इंवेस्टमेंट फॉर एवर (हमेशा के लिए बुद्धिमान निवेश) को बदलकर ऐसे करेंगे- वरी इंवाइटेड फॉर एवर (हमेशा के लिए चिंता को निमंत्रण)।’
‘हमारे समाज का विकास रुक जाएगा’
दरअसल, वह शख्स पहले तलाक की अर्जी लेकर फैमिली कोर्ट में गया था। लेकिन, वहां से उसकी याचिका इस आधार पर खारिज कर दी गई थी कि उसकी पत्नी ने उसके (पति) साथ मारपीट के दावों को गलत बताया था। 24 अगस्त को हाई कोर्ट ने भी उसकी याचिका खारिज करते हुए कहा है, ‘अशांत और बर्बाद हुए परिवारों का हल्ला-हंगामा पूरे समाज की अंतरात्मा को झकझोर देने वाली है।’ जस्टिस सोफी थॉमस ने अपने आदेश में लिखा है, ‘जब आपसी लड़ाई में उलझे जोड़े, उनके द्वारा छोड़े हुए बच्चे और हताश तलाकशुदा लोग हमारी आबादी के अधिकांश हिस्से पर कब्जा कर लेंगे, तो निश्चित रूप से यह हमारे सामाजिक जीवन की शांति पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और हमारे समाज का विकास रुक जाएगा।’
‘इसलिए बढ़ती जा रही है लिव-इन संस्कृति’
आदेश में कहा गया है, ‘केरल, गॉड्स ओन कंट्री, कभी सुसंगठित पारिवारिक बंधन के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन मौजूदा ट्रेंड, मामूली या स्वार्थी कारणों से या विवाहेतर संबंधों के लिए, यहां तक कि अपने बच्चों को भी नजरअंदाज करके इस वैवाहिक बंधन को तोड़ती प्रतीत होती है।’ यही नहीं अदालत ने अपने आदेश में यह भी जिक्र किया है कि ‘इस्तेमाल करो और फेंको वाली उपभोक्ता संस्कृति ने भी लगता है कि हमारे वैवाहिक संबंधों को प्रभावित किया है। लिव-इन-रिलेशनशिप बढ़ती जा रही है, सिर्फ इसलिए जब जी चाहा अलविदा कह दिया। ‘