फिल्मों के प्रारंभिक दौर में भी उससे जुड़े सभी लोगों के लिए उससे होने वाली ज्यादा कमाई का बहुत बड़ा आकर्षण था। अन्य सभी कलात्मक क्षेत्रों से यहां पैसा तो काफ़ी ज्यादा था ही बल्कि प्रसिद्धि भी खूब मिलती थी। पैसों को लेकर अभिनेता और निर्माता आदि में कोई झगड़ा या मनमुटाव न हो इसलिए फिल्म में काम करने वाले सभी लोगों के साथ निर्माण कंपनी या स्टूडियो कॉन्ट्रैक्ट किया करते थे, लेकिन इस सबके बावजूद भी काफी लोगों को पूरे पैसे नहीं मिल पाते थे। अगर फिल्म फ्लॉप हो जाती तो पैसा निकालना लगभग असंभव हो जाता। इसलिए लंबी कानूनी लड़ाइयां चला करती थीं। नामी सितारों को तो तब भी पैसे मिल जाते थे, लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान छोटे और नए अभिनेता को हुआ करता था। एक निर्माता ने तो उस जमाने के सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित अभिनेता पृथ्वीराज कपूर को ही चूना लगा दिया था। इस किस्से की जानकारी उस समय के लोकप्रिय खलनायक केएन सिंह के संस्मरणों से प्राप्त होती है।
‘राजा-रानी’, ‘दस नंबरी’ (1976) जैसी फ़िल्मों के निर्माता मदन मोहला के पिता जयगोपाल मोहला ज्योतिषी थे और बहुत से निर्माता उनकी राय के बिना कोई काम नहीं करते थे खासकर गुलशन राय। किसी जमाने में यही जयगोपाल मोहला साहब निर्माता भी थे। उन्होंने एक फ़िल्म बनाई थी-‘सेनापति’। इस फ़िल्म में पृथ्वीराज कपूर के साथ केएन सिंह ने भी काम किया था। दोनों पड़ोसी थे, इसलिए शूटिंग के लिए इकट्ठे ही चल देते थे। फ़िल्म का काम शुरू होते ही, शुरुआत में मोहला ने कुछ रुपये दिए थे, लेकिन बाद में कुछ देने का नाम ही नहीं ले रहे थे। इसलिए पृथ्वीराज का नाराज होना लाजिमी था। एक दिन शूटिंग के लिए जाते वक़्त उन्होंने केएन सिंह से कहा, “सिंह , आज मोहला से रुपये लिये बिना मैं मेकअप नहीं करूँगा। आज मैं कम-से-कम तीन हज़ार तो लेकर ही मानूँगा।” यह सुनकर केएन सिंह के खून में गरमी आ गई। उन्होंने पृथ्वीराज से कहा, “अगर तुम अड़ जाओगे, तो मैं भी तुम्हारा साथ दूंगा। तुम तीन हज़ार ले लोगे, तो मैं कम-से-कम एक हज़ार तो ले ही लूँगा।” अँधेरी के प्रकाश स्टूडियो में ‘सेनापति’ की शूटिंग चल रही थी। स्टूडियो में कदम रखते ही पृथ्वीराज ने मोहला को आग़ाह कर दिया, “आज कम-से-कम तीन हज़ार का बंदोबस्त तो होना ही चाहिए। वरना मैं मेकअप नहीं करूँगा।” उनकी हां में हां मिलाते हुए केएन सिंह भी बोले, “मेरे लिए भी कुछ नहीं तो एक हज़ार का इंतजाम हो जाना चाहिए।”
“आप लोगों को रुपये ही तो चाहिए न? चिंता मत कीजिए।” मोहला ने उन दोनों को आश्वस्त करते हुए पृथ्वीराज की ओर मुखातिब होकर अपनी गाड़ी के खराब होने का बहाना बनाकर उनकी गाड़ी की चाभी मांग ली। पृथ्वीराज कपूर द्वारा क्यों पूछने पर मोहला जी का जबाब था, “मेरी गाड़ी गैराज में गई है। रुपयों का इंतजाम गाड़ी के बिना भला कैसे हो सकेगा? आप गाड़ी की चाभी दीजिए। मैं अभी गया और अभी आया।” उनकी इस बात से प्रभावित होकर पृथ्वीराज ने मोहला को गाड़ी की चाभी पकड़ा दी। मोहला गाड़ी लेकर गए और वाक़ई कुछ देर बाद रुपये लेकर लौट आए। अपनी शर्त पूरी हो जाने से पृथ्वीराज और किशन को मेकअप करवाने के अलावा कोई चारा न था। मोहला से रुपये निकलवाने की खुशी में दोनों ने मन लगाकर शूटिंग पूरी की और खुशी-खुशी घर लौट आए।
घर पहुँचते ही शेखी बघारते हुए पृथ्वीराज ने अपनी बीवी से कहा, आज हम उस कंजूस मोहला से रुपये ले आए!”
“कितने रुपये?”
“तीन हज़ार हैं।”
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शोभना समर्थ ने ‘हमारी बेटी’ और ‘छबीली’ फ़िल्में बनाई थीं। दोनों फ़िल्मों में केएन सिंह ने काम किया था, लेकिन लेन-देन के बारे में कोई अनुबंध नहीं हुआ था। उनकी ‘हमारी बेटी’ में काम करने की एक पाई भी न मिलने के बाद भी सिंह साहब ने ‘छबीली’ में भूमिका की। ‘हमारी बेटी’ तो खास नहीं चली, लेकिन ‘छबीली’ अच्छी चली। उसके बाद शोभना समर्थ एक दिन किशन जी के घर आईं और उन्होंने कहा, “मेरी दोनों फ़िल्मों में आपने बिना मेहनताने के काम किया है। सौभाग्य से ‘छबीली’ अच्छी चल रही है। इसलिए मैं आपको कुछ पारिश्रमिक देना चाहती हूँ। आप यदि कुछ अंदाजा दे सकें तो अच्छा होगा।” इस पर केएन सिंह ने कहा कि “देखिए, पैसे कमाने के उद्देश्य से मैंने आपकी फ़िल्मों में काम नहीं किया, मैंने तो सिर्फ दोस्ती निभाई, बस।” इस पर शोभना जी का जबाब था, “सो तो ठीक है, लेकिन जब फ़िल्म ठीक-ठाक चल रही है तो भी मैं आपको कुछ न दूँ तो यह दोस्ती की तौहीन होगी।” यह कहकर उन्होंने ग्यारह हज़ार रुपये का चेक सिंह साहब को थमा दिया।