आपने ऐसे तो बहुत से मंदिरों के बारे में सुना होगा लेकिन क्या आप बिजली देवी के बारे में जानते है। बलरामपुर में राप्ती नदी के तट पर स्थित बिजलेश्वरी देवी मंदिर श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र है। यहां बिजली के रूप में देवी मां का आगमन हुआ था। यह स्थान बिजलेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां पिण्डी तथा स्थापित षट कोण यंत्र के द्वारा मां के निराकार स्वरूप की पूजन होती है। भक्त यहां दूर-दूर से बिजलेश्वरी देवी के दर्शन करने आते है।
इस सिद्धपीठ मंदिर की है खास बनावट
नक्काशी सुंदर कलाकृतियों के साथ धार्मिक, ऐतिहासिक महत्व के चलते प्रसिद्ध है। स्थानीय लोग जो मां के दर्शन पूजन के लिए शक्तिपीठ देवीपाटन नहीं पहुंच पाते हैं वह यहीं बिजलेश्वरी देवी की पूजन करते हैं। यहां मां आदिशक्ति का बिजली के रूप में आगमन हुआ था।
मंदिर से जुड़ा है ये ऐतिहासिक महत्व
कहा जाता है कि एक संत बाबा जयराम भारती राप्ती नदी के किनारे कुटी बनाकर रहते थे। प्रतिदिन वह नदी पार करके शक्तिपीठ देवीपाटन मन्दिर मां पाटेश्वरी जी के दर्शन करने जाया करते थे। दर्शन के उपरान्त ही वह अन्न जल ग्रहण करते थे। एक बार राप्ती नदी में भयंकर बाढ़ आ गई तथा बाबा नदी न पार कर पाने के कारण भूखे प्यासे ही रहे। तब मां पाटेश्वरी देवी ने अपने इस भक्त की श्रद्धा व विश्वास को देखते हुये स्वयं उसे दर्शन दिया तथा बाबा से कहा कि अब तुम्हे मेरे दर्शन के लिए पाटन नहीं आना पड़ेगा अब तुम मेरी पूजा अर्चना यहीं करो। इसके बाद आसमान से कड़कती बिजली पीपल के पेड़ पर गिरी और पाताल लोक चली गयी। उसी स्थान पर बाबा जयराम भारती ने मां पाटेश्वरी का पूजन शुरू किया। बिजली गिरने के चलते इस स्थान को बिजलेश्वरी देवी के नाम पर जाना जाता है।
देवी मां के बिजली स्वरूप की जानकारी जब बलरामपुर के तत्कालीन महाराजा दिग्विजय प्रताप सिंह को मिली तो उन्होंने भी देवी मां के दर्शन किये और मनोकामना मांगी जो पूर्ण हो गयी। जिसके बाद महाराजा ने सम्वत 1912 में मंदिर का शिलान्यास किया। जो साल 1932 में एक भव्य मन्दिर के रूप में तैयार हुआ। यह मन्दिर वर्षों से लोगों के आस्था का विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। बाबा जयराम भारती की सातवीं पीढ़ी है अशोक गिरि पुजारी के रुप में मां बिजलेश्वरी की सेवा कर रहे हैं।
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प्रत्येक शुक्रवार, सोमवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। नवरात्रि के समय यहां मेले की स्थिति रहती है। श्रद्धालु मां के दर्शन के उपरांत परिवार के मनोतियों के मुताबिक मांगलिक संस्कार कराते हैं।