लखनऊ में सोमवार से एक और कला वीथिका फ्लोरेसेंस आर्ट गैलरी की शुरूआत हुई। वीथिका की शुरूआत 10 समकालीन चित्रकला प्रदर्शनी से हुई। प्रदर्शनी का उद्घाटन वास्तुकला एवं योजना संकाय, लखनऊ की डीन एवं प्रिंसिपल डॉ वंदना सहगल ने किया।

विशिष्टि अतिथि वरिष्ठ रंगकर्मी, फ़िल्म अभिनेता डॉ अनिल रस्तोगी भी उपस्थित थे। कला वीथिका गोमती नगर, विभूति खण्ड स्थित रोहतास प्लीमेरिया में है। फ्लोरेसेंस आर्ट गैलरी में पहली शुरुआत ‘क्रिएटर-इन डिफरेंट पर्सपेक्टिव’ अखिल भारतीय चित्रकला प्रदर्शनी से हुई। प्रदर्शनी में देश के चार प्रदेशों से 10 समकालीन कलाकारों की कलाकृतियां प्रदर्शित की गई हैं।
वीथिका के क्यूरेटर भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि प्रदर्शनी में देश के विभिन्न राज्यों से 10 कलाकारों की भागीदारी है। सभी कलाकारों ने अपने स्टूडियों में रहते हुए दो-दो कलाकृतियों का निर्माण किया। प्रदर्शनी में उत्तर प्रदेश से सोनल वार्ष्णेय, धीरज यादव, मध्यप्रदेश से राम डोंगरे, मनीषा अग्रवाल, महाराष्ट्र से रामचन्द्र खराटमल, विक्रांत भिषे, अमित चन्द्रकांत ढाने, नई दिल्ली से गोपाल सामंत्री, सुनील यादव, नीरज यादव हैं। ये सभी युवा कलाकार कई वर्षों से समकालीन कला में अपना विशेष योगदान दे रहे हैं। वे अपनी कला को स्थापित करने के लिए स्वतंत्र रूप से निरंतर संघर्षशील भी हैं। प्रदर्शनी के सभी कलाकारों अपनी कलाकृतियों के जरिए राज्य, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक पुरस्कार जीते हैं।
अमित चंदकान्त ढाने प्रकृति के चित्र बनाते हैं। वे अपने चित्रों में जलरंग, ऐक्रेलिक और तैल तीनों माध्यम में प्राकृतिक चित्रण करने में महारत हासिल किए हुए है। राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित कलाकार धीरज यादव अपने चित्रों में रेखाओं के इस्तेमाल ज्यादातर करते हैं। पेंसिल, रंग और तरह-तरह के माध्यमों का प्रयोग करके अपने कृतियों को अपने विचारों के अनुसार पूर्ण करते हैं। इनके चित्रों में प्रकृति के अनेक प्रतीकात्मक तत्त्वों का समावेश होता है। धीरज यादव राष्ट्रपति भवन में एक विशेष आमंत्रित रेसीडेंसी में भी भागीदारी कर चुके हैं।
गोपाल सामंत्री के चित्रों में प्रकृति में हो रहे अतिक्रमण और वन्य जीवों की संख्या और उनके नैसर्गिक ठौर को लेकर एक गहरी संवेदना की झलक मिलती है। जहां प्राकृतिक जंगलों को काट कर मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए कंक्रीट के जंगलों को उगा रहे हैं, जिसे मानव एक विकास की संज्ञा देता है वहीं वन्य प्राणी अपने नैसर्गिक आवास को खोता है। गोपाल के चित्रों में शेर,चीता, जेब्रा, गोरिल्ला और बहुत से कीट, पतंगे और प्राकृतिक दृश्य के दर्शन होते हैं। इनके कलाकृतियों में प्रकृति से खिलवाड़ पर रंगों की भाषा मे एक टिप्पणी होती है।
चित्रकार मनीषा अग्रवाल भी प्रकृति को नष्ट होने से बचाने का संदेश अपने चित्रों के माध्यम से देती हैं। इनके चित्रों में एक संदेश है कि यदि हम प्रकृति को सहेज और संवार कर नहीं रखेंगे तो एक दिन हर चीज को हमे प्रिजर्व करके एक ज़ार में रखना होगा, जो आने वाली पीढ़ियों को केवल बता सकेंगे कि ऐसा भी कोई चीज़ हुआ करती थी। इनके चित्रों में सभी वस्तुएं एक शीशे की ज़ार में रखा हुआ नजर आता है।
मनीषा जलरंग के साथ अन्य प्रयोग करते हुए पेपर पर कला सृजन करती हैं। अमूर्त प्रकृति चित्रण करते हैं। इनके चित्र प्रतीकात्मक रूप लिए हुए होते हैं। ऐक्रेलिक और कैनवास माध्यम में काम करते हैं। राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित राम डोंगरे (मध्यप्रदेश) लोक कलाओं से प्रभावित हैं। इनके चित्रों में लोक विधाओं से जुड़ी हुए बहुत से तत्व एक समकालीन दृष्टि में प्रस्तुत होती हुई देख सकते हैं। रामचंद्र खराट मल के चित्र वर्तमान परिदृश्य को प्रस्तुत करने वाले विचारों पर आधारित होते हैं।
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उत्तर प्रदेश से महिला प्रिंटमेकर सोनल वार्ष्णेय के कृतियों में असल जिंदगी के तमाम उतार—चढ़ाव को देखा जा सकता है। ख़ास तौर पर महिलाओं के जीवन से जुड़ी हुई अनेक घटनाओं को भरसक प्रस्तुत करने का प्रयास करती हैं। सुनील यादव के चित्र वास्तु के तमाम प्रतीकों को महसूस किया जा सकता है, जिन्हें समझने के लिए एक कला दृष्टि की जरूरत होती है। विक्रांत भिषे (महाराष्ट्र) के चित्रों में असल जीवन की घटनाओं को देखा जा सकता है। इनके चित्र रोजमर्रा की ज़िंदगी से जुड़ी हुई, हर आम आदमी की समस्याओं को लेकर एक चिंता को आसानी से समझा जा सकता है। इनके चित्र समाज के जुड़े ख़ास तौर पर किसानों की स्थिति को बयां करती हुई नजर आती है।
इस अवसर पर नेहा सिंह ने कहा कि फ्लोरेसेन्स आर्ट गैलरी कलाकार और कला प्रेमियों के बीच एक संबंध स्थापित करेगी। आम लोगों को समकालीन कला से जोड़ने की दृष्टि से एक बेहतर योजना भी वह बना रही हैं। इस अवसर पर लखनऊ पब्लिक स्कूल एंड कॉलेजेस के संस्थापक एंड जनरल मैनेजर डॉ. एस. पी. सिंह एवं शहर के कलाकार एवं कलाप्रेमी अपनी उपस्थित थे।
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