हिंदू महासभा (Hindu Mahasabha) के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि (Swami Chakrapani) को दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi HC) के बाद अब सुप्रीम कोर्ट से भी झटका लगा है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. अपनी याचिका में स्वामी चक्रपाणि ने कोर्ट से कहा था कि वे चुनाव आयोग (Election Commision) को निर्देश दें कि अखिल भारत हिंदू महासभा के पदाधिकारियों को भी कई राज्यों में होने वाले अगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की अनुमति दे.
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि स्वामी चक्रपाणि की याचिका खारिज करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा कि पार्टी के भीतर लड़ाई है और प्रतिद्वंद्वी भी महासभा के अध्यक्ष होने का दावा कर रहे हैं. ऐसे में कोर्ट कोई फैसला नहीं ले सकता है. वहीं, स्वामी चक्रपाणि की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को स्वीकार करने का न्यायालय से अनुरोध किया.
सिविल कोर्ट में मामले को सुलझाने का सुझाव
न्यायमूर्ति बनर्जी ने सिविल कोर्ट में मामले को सुलझाने का सुझाव दिया. दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर याचिका के अनुसार, चक्रपाणि को अखिल भारत हिंदू महासभा राजनीतिक दल के अध्यक्ष के रूप में मान्यता दी गई थी, लेकिन इसने दावा किया कि चुनाव आयोग ने बाद में कुछ ही दिनों बाद मान्यता वापस ले ली. याचिका में चुनाव आयोग को स्वामी चक्रपाणि की अध्यक्षता में पदाधिकारियों की सूची को मान्यता देने और याचिकाकर्ता और अखिल भारत हिंदू महासभा के पदाधिकारियों को कई राज्यों में विधानसभा चुनावों में भाग लेने की अनुमति देने का निर्देश देने की मांग की गई थी. इसमें कहा गया था कि अखिल भारत हिंदू महासभा भारत के चुनाव आयोग द्वारा प्रमाणित एक पंजीकृत राजनीतिक दल है क्योंकि यह भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दलों में से एक है. इसने दावा किया कि चक्रपाणि को पहली बार 2006 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में चुना गया था.