जैसे ही नवरात्रि आने कि आहट होती है, वैसे ही कुछ लोगों के अन्दर नारी प्रेम और सम्मान और नारी सशक्तिकरण जाग उठता है। महिलओं के प्रति बहुत ही संवेदनशील हो जाते है। और उनकी चिंताए सताने लगती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बेशर्मी फैलने लगती है। सोशल मीडिया पर पेंटिंग्स, कार्टून, मीम, व्यंग्य और कविताओं के माध्यम से नारी बनाम देवी पर रचनायें ट्रेंड करने लगती है।ये सारी बाते इन 9 दिनों में ही क्यों याद आती है।
आखिर समझा क्या है मां दुर्गा को आपने? दिव्य स्वरूपा को आप जानते नहीं है तो आपको कतई हक नहीं है उनका यूं इस्तेमाल करने का.. अगर जानना चाहते नहीं है तब तो आपको और शर्म आनी चाहिए कि जिनके प्रति आपकी आस्था न सही दिलचस्पी भी नहीं है उसे अपने अधकचरे ज्ञान के आधार पर हथियार बना रहे हैं….
क्या है देवी दुर्गा आपके लिए? बंद कीजिए सोशल मीडिया पर उनका यूं इस्तेमाल करना… देवी क्या है, यह नवरात्रि में एकांत में बैठे किेसी साधक से पूछिए… ध्यान के दौरान होने वाले उसके साथ होने वाले चमत्कार को जानिए… उस शक्ति और विराट स्वरूपा के अंश को महसूस कीजिए…
देवी मंदिरों में है या नहीं पर देवी प्रकृति रूपा है। देवी जल, थल, नभ, पवन और अग्नि में है। देवी आपके शुभ कर्मों में है, देवी आपके संस्कार, विचार, आचार और मानस में है। आपकी नजर और नजरिए में है अगर यह सब अविश्वसनीय है आपके लिए तो जो तर्क आप ला रहे हैं वह भी नितांत और निहायत ही बकवास है।
हर धर्म की अपनी सुंदरता है, अपनी गरिमा है अपनी शुचिता है… अगर आप जानते नहीं हैं तो कोई अधिकार नहीं आपको यूं छिछली टिप्पणियों का.. चाहे वह इधर के हों या उधर के…. वैसे तो ये ‘इधर‘ और ‘उधर‘ मैं नहीं मानती लेकिन मेरी प्रबल, प्रगाढ़ और प्रखर आस्था मेरी देवी में है तो मैं मजबूर हूं कि सबको अपना मानते हुए भी उनकी और अपनी सीमारेखा स्पष्ट कर दूं जो इसे तोड़ने पर आमादा है… अपनी मौलिक अभिव्यक्ति लाइए, देवी के ‘बहाने‘ आस्था पर चोट करने के ‘बहाने‘ मत बनाइए….
दरअसल यह सब हमारी कुंठित सोच और अल्पज्ञान का नतीजा है। ना हम जानते हैं कि देवी के बारे में पुराणों में क्या वर्णित है, ना हम ये जानते हैं कि वेद और ऋचाओं में उनके लिए क्या कहा गया है… ना हमें इतिहास पर भरोसा है… बस अपने मन से जो जो धारणायें बना ली है उसी पर तर्क करते रहते है हम अपने ज्ञानी खुद हैं, हमारे अपने खोखले तर्क हैं, हमारी अपनी शिथिल मान्यताएं.. हमारे अपने जोड़, घटाव, गुणा-भाग…
जो आस्थावान हैं वो हास्यास्पद है, जिसे पूजा पाठ पसंद है वो पोंगा पंडित है, जो थोड़ी भी भक्ति को ‘सपोर्ट’ करता है हमारी नजर में वह मूर्ख हो जाता है या हंसी का पात्र बन जाता है। यहां हम, हमारी और हमने से आशय उस विशिष्ट वर्ग से है जो अपनी संस्कृति का मखौल उड़ा कर आधुनिक कहलाना पसंद करता है। जिनके लिए कोई खास धर्म, दर्शन, सिद्धांत, मान्यताएं, परंपराएं, रीजि रिवाज और मूल्य बिलकुल बेकार है।
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यह कैसी मानसिकता है जहां किसी की आस्था को आहत करने करके नारी का अपमान देवी के सम्मान के तराजू पर रखा जा रहा है। इस देश में स्त्री का अपमान होता हर जाति, हर संप्रदाय, हर युग, हर धर्म, हर पंथ में मिल जाएगा। फिर अकेली नौ दिवस पृथ्वी पर पधारी देवी ही क्यों सबसे सरल निशाना है?
किसी को ‘ग्लोरिफाई‘ करना हो तो देवी, किसी को ‘ग्लैमराइज‘ करना हो तो देवी…. किसी के लिए संवेदना बटोरनी है तो देवी की आड़, अपनी कुंठाएं निकालनी है तो उठा लो देवी का मान… कर दो अपमान…
क्या हम देवी को सिर्फ देवी नहीं मान सकते?
क्या जरूरी है उसे हर बार आम स्त्री से जोड़कर, देश में होने वाले अनाचारों से जोड़कर आस्था को अपमानित किया जाए..राजनीति, विज्ञापन, सामाजिक संस्था और मीडिया इन सबको देवी का इस्तेमाल करने से पहले देवी को समझने की ईमानदार कोशिश करनी चाहिए…