लखनऊ। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जेएन तिवारी ने मुख्य सचिव के हस्ताक्षर से जारही 24 नवंबर के उस शासनादेश पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बताया कि शासन ने कर्मचारियों के कार्यालय पहुंचने पर समय अनुपालन कराने के लिए सख्त निर्देश जारी कर कर्मचारियों पर पुनः एक बार अविश्वास किया है।
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कर्मचारियों की उपस्थिति पर सख्ती, ड्यूटी से वापस जाने की समय सीमा निर्धारित नहीं
उन्होंने कहा है कि सरकार विगत 6 माह में सरकार कर्मचारियों के खिलाफ लगातार निर्णय ले रही है । 6 माह के अंतर्गत महंगाई भत्ता फ्रिज करने सहित दर्जनों भत्ते समाप्त किए जा चुके हैं। कर्मचारियों के प्रजातांत्रिक तरीके से अपनी बात रखने पर पूर्णत प्रतिबंध लगा दिया गया है।
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शासन स्तर पर कर्मचारी संगठनों के लिए वार्ता के दरवाजे लगभग बंद से हैं। कर्मचारियों की समस्याओं के निस्तारण के लिए कोई भी रास्ता खुला नहीं रखा गया है। 6 माह के अंतर्गत कर्मचारियों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए दो बार एस्मा भी लग चुका है।
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जेएन तिवारी ने जानकारी दी कि यह सरकार का मानना है कि कर्मचारी समय से ड्यूटी पर उपस्थित नहीं होते हैं जबकि प्रदेश का सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली के प्रावधानों के बंधन में है। और वह अपने कर्तव्यों का पालन करना अच्छी तरह से जानता है। कर्मचारी, समय से ड्यूटी पर उपस्थित होता है लेकिन ड्यूटी से वापस जाने के लिए कोई समय सीमा नहीं है। बेहतर होता यदि सरकार समय पर उपस्थिति की सख्ती के साथ-साथ कार्यालय का समय समाप्त होने पर कार्यालय छोड़ने के लिए भी इसी प्रकार के आदेश कर देती, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया है।
विभागाध्यक्ष एवं सचिवालय में कार्यरत कर्मचारी शासकीय कार्यों की अपरिहार्यता के कारण अपने वरिष्ठ अधिकारियों एवं मंत्रियों के साथ कार्यालय समय के बाद भी देर रात तक बैठकर काम करते रहते हैं। क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी सीधे अपने क्षेत्रों में कार्य करते हैं। यदि वे अपने मुख्यालय पर समय से रिपोर्ट करने के बाद अपने कार्य के गंतव्य पर जाएंगे तो इससे सरकारी कार्य बाधित ही होगा। कोविड-19 के संकट काल में चिकित्सालय में काम करने वाले सभी कर्मचारियों की छुट्टियां निरस्त कर दी गई हैं तथा वे रात दिन कार्य कर रहे हैं। ऐसे में समय से ड्यूटी पर उपस्थित होने जैसे आदेशों का कोई अर्थ नहीं है।
जेएन तिवारी ने यह भी अवगत कराया है कि प्रदेश में कर्मचारियों के लिए अपने समय से अधिक समय तक कार्य करने के लिए नहीं कोई विशेष अवकाश मिलता है और ना ही कोई विशेष भत्ता मिलता है और ना ही ओवरटाइम देने की कोई व्यवस्था है, फिर इस तरह के आदेशों का क्या औचित्य है?
उन्होंने मुख्य सचिव से पत्र लिखकर अपील किया है कि कर्मचारियों से समय बद्ध कार्य लिया जाए। यदि ड्यूटी पर आने के लिए समय पालन आवश्यक है, तो ड्यूटी समाप्त होने के तुरंत बाद कर्मचारियों की छुट्टी भी की जानी चाहिए। अपरिहार्य परिस्थितियों में ड्यूटी के अलावा कार्य लिए जाने पर कर्मचारियों को ओवरटाइम देने की व्यवस्था भी सरकार करे।
यदि सरकार कर्मचारियों के उत्पीड़न के अपने रवैए पर अंकुश नहीं लगाती है तो निश्चित रूप से कर्मचारी संगठन आने वाले समय में एस्मा को दरकिनार कर अपने अधिकारों के लिए भी निर्णायक संघर्ष जरूर करेंगे। मुख्य सचिव स्तर पर कर्मचारी संगठनों के साथ जो वार्ताएं होती हैं, उन में लिए गए निर्णय के बिंदु कार्यवृत्त जारी होते होते बदल दिए जाते हैं और उन पर भी कोई कार्यवाही नहीं होती है। सरकार को कर्मचारियों के साथ किए जा रहे इस सौतेले व्यवहार पर भी विचार करना चाहिए।