नई दिल्ली. यूपी पंजाब समेत 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले जिस किसान आंदोलन ने भारतीय जनता पार्टी की नींद उड़ा दी थी, अब किसानों के उसी संगठन में मतभेद उभरते दिखाई दे रहे हैं. किसान नेता राकेश टिकैत की विपक्षी दलों से आंदोलन में साथ आने की अपील के बाद भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के भीतर विरोध के स्वर फूटे हैं. लखनऊ में किसान यूनियन के अवध क्षेत्र के नेताओं ने बैठक करके बड़े नेताओं पर आंदोलन की आड़ में राजनीतिक रोटियां सेकने का आरोप लगाया है. बैठक में कई नेताओं ने तीनों कृषि बिल के ज्यादातर प्रावधानों को किसानों के लिए फायदेमंद बताते हुए इन्हें लागू करने की मांग भी की. इस बैठक के बाद संयुक्त किसान मोर्चा और भारतीय किसान यूनियन के किसानों के बीच सुगबुगाहट तेज हो गई है.
लखनऊ में हुई इस बैठक में भाकियू (टिकैत) के उपाध्यक्ष हरिनाम सिंह भी शामिल थे, जिन्हें किसान आंदोलन के दौरान लंबे समय तक किसान भवन में नजरबंद तक रखा गया था. हरिनाम सिंह ने बैठक में आरोप लगाया कि कुछ मौजूदा किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत की विचारधारा के उलट काम कर रहे हैं. किसानों के हित की ना सोचकर वे अपने निजी फायदे के लिए और राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए काम कर रहे हैं. कई किसान नेताओं ने तो विधानसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गए. उन्होंने कहा कि मैं पिछले 33 साल से भाकियू से जुड़ा हूं. मेरे साथ यूनियन में जितने भी किसान नेता जुड़े थे, वो सब चौधरी साहब (महेंद्र सिंह टिकैत) की अराजनैतिक सोच की वजह से जुड़े थे.
हरिनाम सिंह ने कहा कि केन्द्र सरकार कृषि बिलों में किसानों द्वारा बताई गई आपत्तियों को दूर करने को तैयार थी, लेकिन हमारे नेता सही तरीके से अपनी बातों को रख नहीं पाए. वाजिब आपत्तियां बताने में असफल रहे. उन्होंने आरोप लगाया कि हमारे कुछ नेता किसान आंदोलन की आड़ में अपनी राजनीति करते रहे. उन्होंने कहा कि हमारा काम सरकार का विरोध करना नहीं है बल्कि उनकी गलत नीतियों का विरोध करना है. हमारे कुछ नेताओं की नासमझी की वजह से हमने अपने इस आंदोलन में 700 से ज्यादा किसान साथियों को खो दिया. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर प्रस्तावित कमेटी में किसको सदस्य नामित करना है, किसान यूनियन इसका फैसला भी अभी तक नहीं कर पाई है.
बता दें कि कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की 13 महीने तक चली लड़ाई में 703 किसानों की मौत हो गई थी. सरकार और किसानों के बीच कई दौर की मीटिंग के बाद भी जब किसानों ने प्रदर्शन बंद नहीं किया तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कृषि बिलों को वापस लेने का ऐलान कर दिया था.
हरिनाम सिंह ने कहा कि यूपी और पंजाब के किसानों की माली हालत बिल्कुल ही अलग है. आज की तारीख में यूपी में सरकारी गेहूं क्रय केन्द्रों में 2015 रुपए में खरीद हो रही है, जबकि प्राइवेट आढ़तिये 2100 रुपए दे रहे हैं तो बताइए किसान कहां जाएगा बेचने. जाहिर सी बात है, जहां ज्यादा फायदा होगा, वहीं बेचेगा. हरिनाम सिंह ने मांग की है सरकार से हो रही बातचीत में उन किसानों को कमेटी में रखना चाहिए जो खेती किसानी से जुड़े हैं.