स्किन टू स्किन मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्किन टू स्किन की व्याख्या को पॉक्सो में स्वीकार नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के एक विवादास्पद फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि एक बच्चे के शरीर को उसके कपड़े हटाए बिना छूना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 7 के तहत ‘यौन उत्पीड़न’ नहीं होता, क्योंकि कोई “त्वचा से त्वचा” संपर्क नहीं था।

आदेश में दो आरोपियों को दोषी ठहराया गया और दो साल की जेल की सजा दी, जिन्होंने एक नाबालिग के शरीर को छुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि स्किन टू स्किन, टच भले ही न हो, लेकिन यह निंदनीय है। हम हाईकोर्ट के फैसले को गलत मानते हैं। जस्टिस यूयू ललित, एस रवींद्र भट और बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने माना कि पॉक्सो के तहत ‘यौन हमले’ के अपराध का घटक यौन इरादा है और ऐसी घटनाओं में त्वचा से त्वचा का संपर्क प्रासंगिक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौन हमले के अपराध का गठन करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन आशय है और बच्चे के साथ त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं है। एक व्यवस्था का निर्माण इसे नष्ट करने के बजाय शासन को प्रभावी होना चाहिए। विधायिका की मंशा को तब तक प्रभावी नहीं किया जा सकता, जब तक कि व्यापक व्याख्या दी गई।
अदालत ने कहा कि “त्वचा से त्वचा” के संपर्क को अनिवार्य करना एक संकीर्ण और बेतुकी व्याख्या होगी। ऐसे में कोर्ट ने फैसला सुनाया कि यौन इरादे से बच्चे के किसी भी यौन अंग को छूने के किसी भी कार्य को POCSO अधिनियम की धारा 7 के दायरे से दूर नहीं किया जा सकता है। जस्टिस रवींद्र भट ने एक अलग सहमति वाला फैसला सुनाया।
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने 19 जनवरी को फैसला सुनाया था कि 12 साल के बच्चे के स्तन को उसके कपड़े हटाए बिना दबाने से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 के तहत एक महिला की शील भंग करने की परिभाषा के अंतर्गत आता है। पॉक्सो के तहत यौन हमला नहीं।
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