महाराष्ट्र सरकार ‘निजाम से मुक्ति’ उत्सव को बड़े ही धूमधाम से मनाने जा रही है। राज्य सरकार ने 17 सितंबर, 2023 को 75वें मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम से पहले साल भर चलने वाले समारोहों की घोषणा की है। भारतीय सेना द्वारा हैदराबाद की रियासत से मराठवाड़ा की मुक्ति की 75वीं वर्षगांठ पर राज्यभर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अगले साल योजनाओं की निगरानी और कार्यान्वयन के लिए इस क्षेत्र के मंत्रियों की एक उप-समिति का गठन किया है। वर्तमान में मराठवाड़ा क्षेत्र को औरंगाबाद डिवीजन के रूप में जाना जाता है जो महाराष्ट्र के पूर्व में है और तेलंगाना की सीमा से लगा हुआ है। मराठवाड़ा में (महाराष्ट्र की 48 में से) आठ लोकसभा सीटें और (राज्य की 288 में से) 48 विधानसभा सीटें हैं।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, रोजगार गारंटी योजना मंत्री संदीपन भुमरे, स्वास्थ्य मंत्री तानाजी सावंत, कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार और सहकारिता मंत्री अतुल सावे के तहत उप-समिति का गठन किया गया है। इस उप-समिति के सदस्य सचिव क्षेत्र के संभागीय आयुक्त होंगे। शुरुआत में, उप-समिति अगले वर्ष के लिए कार्यक्रम तैयार करेगी और बजटीय जरूरतों को पूरा करेगी। विवरण और अंतिम मंजूरी सीएम शिंदे और उप मुख्यमंत्री फडणवीस द्वारा महीने के अंत तक दी जाएगी।
‘मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम दिवस’ को अचानक तवज्जो क्यों?
पिछले सात दशकों से, हर सत्तारूढ़ सरकार ने औरंगाबाद में ‘मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम दिवस’ को ज्यादा तवज्जो नहीं दी है। लेकिन इस बार की राजनीति बदली सी नजर आ रही है। बीजेपी-बालासाहेबंची शिवसेना गठबंधन द्वारा साल भर चलने वाले कार्यक्रमों की योजना से खलबली मचना तय है। हर किसी की जुबां पर यही सवाल हैं कि क्या यह कोई राजनीतिक एजेंडा है, या वर्तमान सरकार इसके महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए इस आयोजन को भुनाने की कोशिश कर रही है।
महाराष्ट्र का सबसे पिछड़ा और सूखाग्रस्त क्षेत्र – मराठवाड़ा
मराठवाड़ा महाराष्ट्र का सबसे पिछड़ा और सूखाग्रस्त क्षेत्र है, जिसमें आठ जिले शामिल हैं- औरंगाबाद, बीड, लातूर, नांदेड़, हिंगोली, जालना, परभणी और उस्मानाबाद। वैसे यह वह क्षेत्र भी है जिसने महाराष्ट्र को तीन मुख्यमंत्री (सभी कांग्रेस) दिए हैं- शंकरराव चव्हाण, विलासराव देशमुख और अशोक चव्हाण। रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्यमंत्री कार्यलय (सीएमओ) के अधिकारियों ने बताया, “मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम भारत की स्वतंत्रता में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है। दुर्भाग्य से, इसे कभी महिमामंडित नहीं किया गया। नतीजतन, वर्तमान पीढ़ी को मराठवाड़ा को तत्कालीन निजाम के शासन से मुक्त कराने के लिए किए गए आंदोलन और बलिदान के बारे में पता भी नहीं है।” उन्होंने कहा कि अपनी 75वीं वर्षगांठ के मद्देनजर राज्य सरकार ने इतिहास को जन-जन तक पहुंचाने के लिए साल भर चलने वाले समारोहों की योजना बनाई है। उन्होंने कहा कि आगे के विवरण पर काम किया जा रहा है।
निजाम, उस्मान अली खान के कब्जे से छुड़ाया था हैदराबाद
गौरतलब है कि जब, विभाजन के बाद, रियासतों को भारत और पाकिस्तान के बीच चयन करने का विकल्प दिया गया, तो हैदराबाद के निजाम, उस्मान अली खान ने स्वतंत्र रहने का विकल्प चुना। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के समक्ष एक अपील दायर कर, अलग राज्य के लिए अपने अधिकार की मांग की। निजाम के शासन के तहत हैदराबाद राज्य में मराठवाड़ा और तेलंगाना के कुछ हिस्से शामिल थे।
स्वतंत्र भारत का हिस्सा बनने की चाह रखने वाले मराठवाड़ा के लोगों ने स्वामी रामानंद तीर्थ, गोविंदभाई श्रॉफ, पी.एच. पटवर्धन, विजयेंद्र काबरी और रमनभाई पारिख के नेतृत्व में आंदोलन की शुरुआत की। आंदोलन की शुरुआत में, आजेगांव में निजाम की सेना द्वारा बहिरी शिंदे की हत्या कर दी गई, जिससे ग्रामीण इलाकों में और विद्रोह फैल गया। फिर क्या था, लोगों को बचाने के लिए भारतीय सेना को उतारा गया। सेना ने ऑपरेशन पोलो लॉन्च किया और हैदराबाद को निजाम से मुक्त करा लिया गया। रियासत के विलय के साथ, मराठवाड़ा क्षेत्र को महाराष्ट्र में जोड़ा गया।
मोदी सरकार से प्रेरणा ले रही शिंदे सरकार?
शिंदे के कार्यक्रम केंद्र की मोदी सरकार से प्रभावित नजर आ रहे हैं। सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार ने जागरूकता पैदा करने के नाम पर जनता तक पहुंचने के लिए अनुकूल ऐतिहासिक घटनाओं का खूब इस्तेमाल किया है। अब शिंदे की नई नवेली सरकार भी इसी कदम पर आगे बढ़ती नजर आ रही है। केंद्र से प्रेरणा लेते हुए राज्य सरकार ने अपनी साल भर की योजना शुरू की है। सभी राज्य के मंत्रियों, विधायकों और सांसदों को इस आयोजन के जरिए लोगों को प्रभावित करने के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्रों में सार्वजनिक सभा आयोजित करने का काम सौंपा जाएगा। समारोहों के अलावा, भाजपा और शिंदे की शिवसेना भी इस क्षेत्र में अपने राजनीतिक आधार को मजबूत करना चाहते हैं।
भावनात्मक और संवेदनशील मुद्दों, जैसे औरंगाबाद शहर का नाम संभाजीनगर (छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी राजे के नाम पर) ने पहले ही इसे एक अस्थिर राजनीतिक पिच बना दिया है। राज्य मंत्रिमंडल में प्रस्ताव पारित किया गया था, लेकिन नाम बदलने का क्रेडिट उद्धव और शिंदे दोनों लेना चाहते हैं। इसलिए शिंदे सेना नए तरीके से नए मुद्दे को भुनाने की उम्मीद कर रही है।