राजस्थान के अस्पतालों में ऑक्सीजन की बढ़ती कमी को लेकर राज्य सरकार की ओर से हाईकोर्ट में शपथ पत्र पेश कर केन्द्र सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाया है। वहीं हाईकोर्ट ने प्रकरण की सुनवाई 28 अप्रैल तक टालते हुए कहा कि समान प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। ऐसे में याचिकाकर्ता चाहे तो वहां पक्षकार बन सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश इन्द्रजीत महांति और न्यायाधीश इन्द्रजीत सिंह की खंडपीठ ने यह आदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से दायर पत्र याचिका पर दिए।
राजस्थान सरकार ने लगाए गंभीर आरोप
राजस्थान सरकार की ओर से पेश शपथ पत्र में कहा गया कि प्रदेश में कोरोना के करीब 96 हजार एक्टिव मरीज हैं और इनकी संख्या में बढोतरी हो रही है। वहीं फिलहाल 250 मेट्रिक टन ऑक्सीजन की प्रतिदिन जरूरत पड़ रही है। जो निकट भविष्य में बढक़र 325 मेट्रिक टन तक जा सकती है। वहीं केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऑक्सीजन सप्लाई को अपने हाथों में ले लिया है।
शपथ पत्र में कहा गया कि केन्द्र सरकार राजस्थान की तुलना में गुजरात, एमपी, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में कम मरीज होने के बावजूद अधिक ऑक्सीजन सप्लाई कर रही है। प्रदेश के हर मरीज के लिए प्रतिदिन 1.64 क्यूबिक मीटर ऑक्सीजन दी जा रही है। जबकि गुजरात में 84 हजार 126 मरीज होने के बावजूद 975 मेट्रिक टन यानि प्रति मरीज प्रतिदिन 8.92 क्यूबिक मीटर ऑक्सीजन दी गई है। जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने प्रकरण की सुनवाई 28 अप्रैल तक टाल दी है।
एसोसिएशन की ओर से भेजे गए पत्र में कहा गया है कि राजस्थान के लगभग सभी जिला अस्पतालों में भर्ती मरीजों को पिछले कुछ दिनों से ऑक्सीजन की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। महामारी के इस दौर में अस्पतालों को जितनी मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति होनी चाहिए, उतनी मात्रा में आपूर्ति नहीं हो रही है। जिसके चलते मरीजों को काल का ग्रास बनना पड़ रहा है। ऐसे हालातों में भी केन्द्र और राज्य सरकार एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर समस्या से पल्ला झाड़ रहे हैं।
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पत्र में यह भी कहा गया कि केन्द्र और राजस्थान में सत्तारूढ़ सरकार अलग-अलग राजनीतिक दलों की होने के चलते दोनों सरकारों में आपसी तालमेल नहीं बैठने के कारण ऑक्सीजन की समस्या का निपटारा नहीं हो रहा है। ऐसे में जरूरी है कि न्यायपालिका इसमें दखल देकर केन्द्र और राज्य सरकारों को निर्देश जारी कर ऑक्सीजन आपूर्ति की व्यवस्था को सुचारू कराया जाए।