हरिद्वार। पतंजलि विश्वविद्यालय एवं यूजीसी के अन्तर्विश्वविद्यालयीय योग विज्ञान केन्द्र के प्रयोजकत्व में ‘प्राणमय कोष: संरक्षण, संवर्धन एवं चिकित्सा’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला शुक्रवार को शुरू हुआ।मुख्य अतिथि कैवल्यधाम लोनावाला के अध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश तिवारी ने बताया कि प्राण के स्थिर होने से चित्त स्थिर हो जाता है। ऐसे में प्राणायाम का अभ्यास आवश्यक है। प्राणों के नियमन व नियंत्रण का कार्य प्राणमय कोष के बिना संभव नहीं है। इस अवसर पर डॉ. तिवारी को योग के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रशस्ति-पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया।
उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दिनेश चन्द्र शास्त्री ने कहा कि प्राण शरीर का महत्वपूर्ण तत्व है और बिना गायत्री की साधना के प्राण साधना नहीं की जा सकती है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अन्तर्विश्वविद्यालयीय योग विज्ञान केन्द्र के निदेशक प्रो. अविनाश चन्द्र पाण्डेय ने नई शिक्षा नीति में योग के महत्व एवं मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा विषय पर विस्तृत व्याख्यान दिया।
एचएनबी मेडिकल विश्वविद्यालय देहरादून के कुलपति प्रो. एमएल भट्ट ने विद्या एवं अविद्या के सम्प्रत्यय पर विस्तार से चर्चा की तथा प्राण की महिमा पर प्रकाश डाला। आयुष मंत्रालय में रिसर्च ऑफिसर डॉ. राम नारायण मिश्रा ने प्रतिभागियों से प्राणमय कोश के संवर्धन की यौगिक तकनीक की जानकारी साझा की।
प्रातःकालीन सत्र में प्राणविद्या कार्यशाला व वैदिक यज्ञ के पश्चात पोस्टर एवं प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। कार्यशाला में प्रति-कुलपति प्रो. मयंक अग्रवाल, योग विभाग संकाय अध्यक्ष प्रो. ओम नारायण तिवारी डॉ. सत्येंद्र मित्तल, कुलसचिव डॉ. प्रवीण पुनिया, डॉ. वीके कटियार, कुलानुशासक स्वामी आर्षदेव, स्वामी परमार्थदेव आदि उपस्थित थे।