अपने आईपीओ के फ्लाॅप होने के लगभग एक वर्ष बाद पेटीएम की पैरेंट कंपनी वन 97 कम्युनिकेशंस शेयर बायबैक करने की योजना बना रही है। कंपनी की ओर से जानकारी दी गई है कि आने वाले 13 दिसंबर को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की बैठक में शेयर बायबैक के मसले पर विचार-विमर्श किया जाएगा। आपको बता दें कि कंपनी के पास फिलहाल करीब 9,182 करोड़ रुपये की लिक्विडिटी है।
# पेटीएम ने शेयर बाजार को दी जानकारी
पेटीएम की पैरेंट कंपनी की ओर से शेयर बाजार को बताया गया है कि वह अपने इक्विटी शेयरों के बायबैक के प्रस्ताव पर विचार करेगी। वन 97 कम्युनिकेशंस के मुताबिक मैनेजमेंट का मानना है कि कंपनी की मौजूदा लिक्विडिटी/वित्तीय स्थिति को देखते हुए बायबैक हमारे शेयरधारकों के लिए फायदे का सौदा हो सकता है।
# क्या होता है शेयरों का बायबैक?
पेटीएम अपने शेयरधारकों को राहत देने के लिए जिस बायबैक के बारे में सोच रही है वह क्या होता है आइये पहले इसे समझते हैं। आमतौर पर शेयर बायबैक के तहत कंपनी अपने प्रीमियम प्राइस पर अपने निवेशकों से शेयरों की खरीदारी करती है। शेयर बायबैक बाजार में लिक्विडिटी के संतुलन के लिए कॉरपोरेट कार्रवाई का एक हिस्सा होता है।
# पेटीएम के निवेशकों को कैसे होगा शेयरों के बायबैक से लाभ?
डिजिटल भुगतान सेवा प्रदाता कंपनी पेटीएम का आईपीओ वर्ष 2021 में लॉन्च हुआ था। उसके बाद शेयर बाजार में उसकी कमजोर लिस्टिंग हुई। कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि पेटीएम का आईपीओ पिछले एक दशक का सबसे फ्लॉप आईपीओ साबित हुआ। यह शेयर अब तक अपने इश्यू प्राइस 2150 रुपये प्रति शेयर के स्तर पर नहीं पहुंच सका है। कंपनी के शेयरों में इश्यू प्राइस की तुलना में अब तक 75% तक की गिरावट आ चुकी है।
# वित्तीय वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही में क्या कहते हैं पेटीएम के आंकड़े?
वित्तीय वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर) में पेटीएम का घाटा 571 करोड़ रुपये हो गया है। पिछले साल की इसी तिमाही में कंपनी का घाटा 472.90 करोड़ था, जबकि पहली तिमाही में कंपनी का घाटा 650 करोड रुपये था। इस दौरान कंपनी का समेकित राजस्व पिछले वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में 76 फीसदी उछलकर 1914 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। इससे पहले सितंबर 2021 तिमाही में यह 1086 करोड़ रुपये था। मासिक राजस्व की बात करें तो जून 2022 तिमाही के मुकाबले कंपनी के राजस्व में 14% की वृद्धि हुई है। पेटीएम के समेकित राजस्व में हुई यह वृद्धि मर्चेंट सब्सक्रिप्शन रेवेन्यू (व्यापारी सदस्यता राजस्व) में बढ़ोतरी के कारण दर्ज की गई है।