बुर्का प्रथा पर बाबा साहेब आंबेडकर की ये बातें कट्टरपंथियों का ही हिजाब उतार देंगी

कर्नाटक के एक कॉलज में हिजाब पहनकर कक्षा में जाने से रोकने वाला मामला अब अदालती दहलीज पर है। कोर्ट की तरफ से इसकी गंभीरता को देखते हुए मामला बड़ी बेंच को भेज दिया गया है। वहीं कर्नाटक के बाद हिजाब विवाद की आंच पुदुचेरी तक पहुंच गई है और यहां भी एक छात्रा से स्कार्फ हटाने को कहा गया। लेकिन भारत ही नहीं कर्नाटक से निकलकर अब ये विवाद पड़ोसी मुल्कों में भी पहुंच गया है। लेकिन इन सारी कवायदों के बीच एक चीन जो चिक्कमंगलूर स्थित आईडीएसजी कॉलेज में नजर आई। वो रही आंबेडकरवादी छात्रों का एक समूह द्वारा हिजाब पहनने वाली छात्राओं के पढ़ाई के समर्थन में आना। इस समूह ब्लू शॉल पहने जय भीम और जय आंबेडकर के नारे लगा रहा है। साथ ही मुस्लिम लड़कियों की पढ़ाई को हिजाब की वजह से अवरुद्ध किए जाने का विरोध कर रहा है। लेकिन इससे ठीक उलट बाबा साहब आंबेडकर की बुर्का प्रथा को लेकर सोच थी। जिसे आपके साथ-साथ जय भीम का नारा लगा रहे उन समर्थकों को भी गौर से पढ़ना चाहिए। इसलिए हमने पुराने तथ्यों और बाबा साहेब के किताब से लिए गए संदर्भों के हवाले से हिजाब और पर्दाप्रथा पर आंखें खोलने वाला विश्लेषण तैयार किया है।

मुस्लिम समाज का रूढ़िवादी वर्ग है इसका समर्थक, बुर्का प्रथा पर बाबा साहेब आंबेडकर की ये बातें कट्टरपंथियों का ही हिजाब उतार देंगी

 

 

हिजाब और मुस्लिम पर्दा प्रथा के बारे में आंबेडकर के विचार

 

कोर्ट में हिजाब के पक्ष में संविधान की दुहाई दी जा रही है। वो संविधान जिसे बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने लिखा। लेकिन जिन बाबा साहेब आंबेडकर ने ये संविधान लिखा है उनके हिजाब और मुस्लिम पर्दा प्रथा के बारे में क्या विचार थे? बाबा साहेब आंबेडकर को मुस्लिमों की पर्दा प्रथा बहुत कचोटती थी। जिसके बारे में उन्होंने अपनी किताब पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन के पेज नं 230 पर लिखा है। बुर्के के बारे में वो लिखते हैं कि मुस्लिम महिलाओं से बुर्के में ही सामने आने की उम्मीद की जाती है। उनका बाहर के कमरों, बरामदों और बगीचों में प्रवेश न होने पाए इसलिए उनका निवास मकान के पिछले भाग में होता है। सभी महिलाओं को चाहे वो जवान हों या वृद्ध एक ही कमरे में रहना पड़ता है। कोई भी पुरुष नौकर उनकी उपस्थिति में काम नहीं कर सकता। महिलाओं को अपने पुत्रों, भाइयों, चाचा, पिता और पति के अलावा ऐसे नजदीकि रिश्तेदार मुसलमानों को देखने की अनुमति है जो विश्वासपात्र होने पर घर में प्रवेश पा सकते हैं। वो इबादत के लिए मस्जिद में भी नहीं जा सकतीं। जब कभी उसे बाहर जाना हो तो बुर्का ओढ़कर ही जा सकती हैं।

दासता और हीनता की मनोवृर्ति बन जाती

 

इसके साथ ही बाबा साहेब ने इसी पुस्तक के अगले पेज नं 231 में लिखा कि पर्दा प्रथा की वजह से ही मुस्लिम महिलाएं दूसरी जातियों की महिलाओं से पीछे रह जाती हैं। वो किसी भी तरह की बाहरी गतिविधियों में शामिल नहीं हो पाती जिसकी वजह से उनमें एक प्रकार की दासता और हीनता की मनोवृर्ति बन जाती है। उनमें ज्ञान अर्जित करने की इच्छा भी नहीं रहती क्योंकि उन्हें ये सिखाया ही जाता कि वो घर की चारदीवारी के बाहर किसी बात में रुचि न लें। बाबा साहेब का कहना था कि पर्दे वाली महिलाएं प्राय: डरपोक, निस्साहय, शर्मीली और जीवन में किसी भी किस्म का संघर्ण करने के अयोग्य हो जाती हैं। इसके साथ ही बाबा साहेब ने भारत में मुस्लिम महिलाओं की संख्या को देखते हुए इसे व्यापक और गंभीर समस्या भी बताया था।

 

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मुस्लिम समाज में पर्दा प्रथा को एक धार्मिक आधार पर मान्यता दी

 

बाबा साहेब आंबेडकर ने अपनी किताब पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन के पेज नं 232 पर लिखा कि ऐसा नहीं है कि पर्दा और ऐसी ही अन्य बुराइंया देश के कुछ भागों में हिन्दुओं के कई वर्गों में प्रचलित  नहीं है। लेकिन इसमें अंतर यही है कि मुस्लिम समाज में पर्दा प्रथा को एक धार्मिक आधार पर मान्यता दी गई है जबति हिन्दू समाज में ऐसा नहीं है। इसके साथ ही मुसलमानों ने इसे समाप्त करने का भी कभी प्रयास किया हो इसके भी कोई साक्ष्य नहीं मिलते हैं।