देश इन दिनों कोरोना महामारी की दूसरी लहर के प्रकोप में घिरा हुआ है।ऐसे में केंद्र की सत्तारूढ़ मोदी सरकार चौतरफा सवालों के घेरे में घिरी नजर आ रही है। इसी क्रम में बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी मोदी सरकार के सामने सवालों की एक फेहरिस्त रख दी है, जिनका जवाब देते हुए मोदी सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक 106 पन्नों के एफिडेविट दायर किया है। इस एफिडेविट में मोदी सरकार ने कोरोना के खिलाफ तैयार किये गए अपने सारे प्लान का उल्लेख किया है।
मोदी सरकार ने एफिडेविट में दी जानकारी
मोदी सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर किये गए एफिडेविट में बताया गया है कि कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर निपटने के लिए जो भी करना आवश्यक था या फिर जिन भी चीजों की ज़रूरत थी, उसने पेशेवर तरीके से अपना दायित्व निभाते हुए वो सब किया है। मोदी सरकार ने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर से पहले भी तैयारियाँ की गई थीं।
मोदी सरकार द्वारा दायर किये गए एफिडेविट के अनुसार, केंद्र सरकार ने सभी राज्यों की सरकारों के साथ कई बार बैठक की और उनसे बार-बार आग्रह किया कि वो अपने-अपने राज्यों में सार्वजनिक स्थलों पर कोविड-19 के दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित कराएँ। सुप्रीम कोर्ट में हो रही कोरोना से जुड़े कई मामलों की सुनवाई के के दौरान मोदी सरकार द्वारा दायर किये गए इस एफिडेविट को MHA के एडिशनल सेक्रेटरी द्वारा तैयार किया गया है।
केंद्र सरकार का कहना है कि संक्रमण चरम पर पहुँचने के बाद से गलत नैरेटिव चलाया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने इससे निपटने के लिए कुछ नहीं किया और इससे अनभिज्ञ बनी रही। जस्टिस DY चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक नवगठित पीठ ने इस एफिडेविट पर संज्ञान लिया। इसमें मोदी सरकार ने बताया है कि किस तरह कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित 15 राज्यों में ऑक्सीजन सप्लाई के लिए फैसले लिए गए।
सभी राज्यों में सक्रिय कोरोना मामलों को लेकर भविष्य के आँकड़ों का अनुमान लगाया गया था और उसी हिसाब से उन्हें ऑक्सीजन का कोटा मिला। बताया गया है कि दिल्ली और उत्तर प्रदेश में मात्र 5 दिनों के भीतर माँग 100% बढ़ गई। केंद्र ने बताया है कि 7 कंपनियों को 74-90 लाख रेमेडेसिविर इंजेक्शन के निर्माण के लिए स्वीकृति दी गई थी। ये गंभीर या सामान्य कोरोना स्थिति में दिया जाता है, जो कुल सक्रिय मामलों का 20% ही है।