विश्व में प्लास्टिक कचरे के निस्तारण को लेकर पिछले कई सालों से कोशिशें चल रही हैं। इन्हीं कोशिशों के बीच जम्मू कश्मीर की नासिरा अख्तर ने इस समस्या का समाधान निकाल लिया है। दसवीं पास नासिरा ने केवल प्लास्टिक कचरे के निस्तारण का उपाय निकाला बल्कि इससे अपने जीवन को भी संवारा।
दक्षिण कश्मीर में कनीपोरा कुलगाम की रहने वाली नसीरा अख्तर ने पूरी दुनिया के विज्ञानी और पर्यावरणविद को पीछे छोड़ते हुए प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट का एक जैविक और अनोखा तरीका निकाला है। इंडिया बुक आफ रिकॉर्ड्स अनसंग इनोवेटर्स आफ कश्मीर और कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के जर्नल में उसकी कहानी प्रकाशित हो चुकी है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
हिन्दुस्थान समाचार के साथ खास बातचीत में नासिरा अख्तर ने बताया कि जैविक तरीके से प्लास्टिक को राख बनाने के फॉर्मुले को उन्होंने एक निजी कंपनी को बेच दिया है और अब फिर से एक नई खोज में जुट गईं हैं। पेश है उनसे बात-चीत के मुख्य अंश —
सवाल- प्लास्टिक को राख बनाने का आईडिया कैसे और कब आया ?
जवाब- बीस साल पहले से इस आइडिया पर काम कर रही हूं। एक बार मैं धर्म की किताब पढ़ रही थी जिसमें एक लाइन लिखी थी कि इस दुनिया का अंत होगा तो आखिर में अल्लाह और प्लास्टिक बचेंगे। इस वाक्य़ पर मुझे एतराज था। मुझे लगा कि प्लास्टिक जैसी चीज को इस दुनिया से खत्म किया जाना चाहिए। इसके लिए मैंने कई जैविक तरीके से शोध किए। अलग -अलग चीजों को प्लास्टिक पर आजमाने लगी। 20 साल के बाद मुझे सफलता हासिल हुई। प्लास्टिक इस उपाय से राख में तब्दील हो जाती है। तरीका बहुत जैविक है। तरीके के बारे में ज्यादा बता नहीं सकती क्योंकि आइडिया एक निजी कंपनी को बेच दिया है।
सवाल – क्या आपने इसके लिए कोई ट्रेनिंग ली
उत्तर- कोई ट्रेनिंग नहीं ली। कुलगाम जो महिलाओं की साक्षरता के मामले में पिछड़ा जिला है जहां से मैं आती हूँ। मैं ज्यादा पढ़-लिख भी नहीं पाई, 10वीं पास हूँ। औषधीय पेड़ पौधों का थोड़ा बहुत पारंपरिक ज्ञान था। उन्हीं पेड़ पौधों से तैयार चीजों से प्लास्टिक को राख बनाने का तरीका निकाल लिया। फिर लोगों की सलाह पर मैं कश्मीर यूनिवर्सिटी गई, वहां मैंने प्लास्टिक को जैविक पदार्थ से जला कर दिखाया। कई बार मेरे इस प्रयोग की जांच की गई। वैज्ञानिकों ने भी इस फार्मुले को सही माना। फिर अंत में मैंने इसे एक निजी कम्पनी को इस उपाय का पेटेंट बेचने का निर्णय लिया ताकि पूरी दुनिया इसका फ़ायदा उठा सके। कम्पनी को जब स्टार्टअप मिलेगा तो वो इस पर काम करेगी। इसका लाभ मुझे भी मिलेगा।
सवाल- परिवार में कौन-कौन हैं और आपको अपने पति से कितना सहयोग मिला?
जवाब- मेरी दो बेटियां हैं। पति तीन वर्ष पहले ही गुजर गए। वो भी ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। अपने ही गांव में एक दुकान चलाते थे। लेकिन मेरे इस प्रयास में हमेशा उनका सहयोग मिला है। प्लास्टिक के कचरे को जब मैं अपने आंगन और गांव में देखती थी तो दिल दुखी होता था। प्लास्टिक की समस्या का हल निकाल चुकी हूं अब और भी कई पर्यावरण मुद्दों पर काम कर रही हूं।
सवाल- प्लास्टिक को राख बनाने के सफर में कितनी मुश्किलें आईं ?
जवाब- जिंदगी की राह आसान थोड़ी ही है। हर राह पर मुश्किलें आती हैं। मुझे भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। मेरे पास तो कभी अधिक पैसे नहीं थे। मैं भी छोटे मोटे काम करके जीवन का गुजर बसर करती थी। फिर अचानक मैंने प्लास्टिक को नष्ट करने के काम में लग गई। इसके सफल होते हीं मुझे आज थोड़ी राहत जरुर है। जब मुझे कामयाबी मिली थी तब इंटरनेट नहीं था। जिसके कारण मुझे लगता है कि कामयाबी को मशहूरियत मिलने में देर लगी। कोई नहीं देर आए दुरुस्त आए। देर से ही सही मेरे इस प्रयास को कामयाबी मिली और अब लोग मुझे जानते पहचानते हैं।
ईवीएम को लेकर नेताओं की उड़ी नींद, घर-बार छोड़कर बने चौकीदार
सवाल- कश्मीर में धारा 370 हटने से आपकी जिंदगी पर क्या प्रभाव पड़ा है?
जवाब- कश्मीर से धारा 370 हटाने का फैसले को मैं सही मानती हूं। यहां लोग बहुत मुश्किल हालात में जी रहे थे। अब कश्मीर की तरक्की के रास्ते खुल रहे हैं, कारखाने लग रहे हैं, लोगों को रोजगार मिल रहा है। बच्चे भी अच्छी पढाई कर रहे हैं। सुरक्षा की बात करें तो अब मैं ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हूं। मुझे लगता है कि कश्मीर में अब लोग ज्यादा आजाद हैं। अब कुछ सालों से मैं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में भी काम कर रही हूँ।