इसी वर्ष मई माह में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद हुई सियासी हिंसा मामले को लेकर सूबे की सत्तारूढ़ ममता सरकार ने एक बार फिर आवाज बुलंद की है। दरअसल, बंगाल हिंसा मामले की जांच कर कलकत्ता हाईकोर्ट में दायर की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट को ममता सरकार ने राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित बताया है। हाईकोर्ट मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट पर अपना पक्ष रखते हुए सरकार ने यह बयान दिया है।
मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट को बताया राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित
मिली जानकारी के अनुसार, कलकत्ता हाईकोर्ट में गुरुवार को बंगाल हिंसा मामले को लेकर हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के अधिवक्ता और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने राज्य सरकार का पक्ष रखा। उन्हीने कहा कि आयोग ने अपनी 13 जुलाई को सौंपी गई रिपोर्ट में चुनाव से पहले की हिंसा का भी उल्लेख किया है, जो इस बात का संकेत है कि यह रिपोर्ट पूरी तरह से राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में चुनाव पूर्व हिंसा की घटनाओं सहित कई विसंगतियां हैं। उन्होंने कहा कि एनएचआरसी जैसे तटस्थ निकाय के लिए यह वांछनीय नहीं था। उन्होंने कहा कि राज्य पुलिस हिंसा के आरोपों की जांच कर रही है।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान आयोग के अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने सवाल किया कि ऐसा देखा गया है कि जिन लोगों ने मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी, उन्हें अब पुलिस, राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा धमकाया जा रहा है। उन्होंने दावा किया कि बंगाल में गुजरात हिंसा जैसे हालात पैदा हो गए हैं। पुलिस पीड़ितों को डरा रही है, जांच कैसे करेगी।’ इस मामले में कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 28 जुलाई निर्धारित की है।
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उल्लेखनीय है कि राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक रिपोर्ट कलकत्ता हाई कोर्ट को सौंपी है। रिपोर्ट में राज्य के विभिन्न जिलों के 15 हजार से अधिक लोगों के हिंसा के शिकार होना बताया गया है। आयोग की रिपोर्ट में हत्या, बलात्कार, अभद्रता, घरों में तोड़फोड़, आगजनी जैसी घटनाएं होने की बात कही है। रिपोर्ट में सत्तारूढ़ पार्टी के कई नेताओं और मंत्रियों को कुख्यात अपराधी बताते हुए हिंसा में पुलिस के भी शामिल होना बताया गया है।