मेन्यू में शामिल हुआ इम्युनिटी बूस्टर काढ़ा, लखनऊ के कॉफी हाउस ने बेचना शुरू किया इम्युनिटी बूस्टर काढ़ा
लखनऊ। कोरोना ने इंसान की बहुत-सी आदतों में बदलाव कर दिया है। लोगों की पसन्द-नापसन्द बदल गयी है। जो पहले अच्छा लगता था, कोरोना काल में वही बहुत बुरा लगने लगा है और तब की बुरी बातें जरूरी लगने लगी हैं। नापसन्दगी की सूची से निकल कर जरूरत बन गयी चीजों की सूची में सबसे ऊपरी पायदान पर पहुंचने का जो कमाल काढ़े ने किया है, वैसा कमाल सिर्फ मॉस्क ही कर पाया है। जिन्हें काढ़ा कड़वा लगता था, उसके जिक्र से जिनके मुंह का स्वाद खराब हो जाता था, वे अब काढ़े के स्वास्थ्यवर्धक गुणों के मुरीद हो गये हैं। जब तक टीका नहीं आ जाता, कोरोना से बचने के लिए इम्युनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता-Immunity) को कारगर हथियार माना जा रहा है।… और डॉक्टर कह रहे हैं कि इम्युनिटी की तलवार काढ़े से ही धारदार बनेगी।
… लेकिन काढ़ा बनाना सबके बस की बात नहीं है। विभिन्न औषधियों की उचित मात्रा में नाप-जोख, फिर उनका पाउडर बनाना, फिर धीमी आंच पर घंटों पकाना… कौन इतना करना चाहता है? बना-बनाया काढ़ा मिल जाये तो क्या बात है। कई कम्पनियों ने काढ़े के विभिन्न अवयवों को उचित अनुपात में मिलाकर उनके पैकेट बेचने शुरू कर दिये हैं, लेकिन उसे घंटों पकाना अभी कुछ दुर्धर्ष काढ़ाप्रेमियों के ही वश की बात है।
कॉफी हाउस में मिलता है इम्युनिटी बूस्टर काढ़ा लखनऊ का कॉफी हाउस ऐसे लोगों के लिए मददगार बनकर आया है, जो काढ़े के गुणों के बारे में जानते हैं और जिन्हें काढ़ा पीना भी है, लेकिन वे काढ़ा बनाने के लिए लोहे के चने चबाने जैसी मेहनत नहीं कर सकते। हजरतगंज स्थित कॉफी हाउस ने कॉफी और चाय के साथ ‘इम्युनिटी बूस्टर काढ़ा’ भी सर्व करना शुरू कर दिया है। इस तरह यहां के मेन्यू परिवार में एक और सदस्य की बढ़ोतरी हो गयी है।
कोरोना ने सिखा दिया है प्रतीक्षा करना
कॉफी हाउस की संचालक संस्था कॉफी वर्कर्स को-आपरेटिव सोसायटी लि. की सचिव अरुणा सिंह कहती हैं कि यह काढ़ा सेवन करने वाले व्यक्ति की इम्युनिटी बढ़ाने में अवश्य ही कारगर साबित होगा, क्योंकि इस काढ़े में गिलोय और तुलसी समेत आयुष मंत्रालय द्वारा अनुमन्य औषधियां ही इस्तेमाल की जाती हैं। चीनी की बजाय गुड़ का उपयोग करते हैं। वह कहती हैं कि कई बार ग्राहक को थोड़ी अधिक प्रतीक्षा करनी पड़ जाती है, क्योंकि यहां धीमी आंच पर काढ़ा बनाया जाता है, ताकि सभी औषधियां ठीक से पक जायें और उनके गुण काढ़े में आ जायें।
यह पूछने पर कि काढ़ा बनाने में ज्यादा समय लगने पर लोग ऊब जाते होंगे, अरुणा सिंह ने कहा- कोरोना ने प्रतीक्षा करना सिखा दिया है। काढ़ा पीने लोग हजरतगंज में कॉफी हाउस आ रहे हैं तो जाहिर है कि वे कोरोना काल में जिन्दगी की रक्षा के लिए, इम्युनिटी बढ़ाने के लिए काढ़े के महत्व को समझ रहे हैं। ऐसे में वे बिना कुछ कहे प्रतीक्षा करते हैं।
जिन्दगी कड़वी न हो जाये, इसलिए कड़वा काढ़ा ही ठीक
काढ़े के कड़वे स्वाद को लेकर कभी किसी ग्राहक ने कुछ कहा, इस सवाल का जवाब वहां बैठे एक युवा जोड़े में से लड़की ने दिया। उसने कहा- ‘घर में किसी को भी कोरोना हो गया तो पूरे परिवार की जिन्दगी में कड़वाहट घुल जायेगी। अच्छा है कि हम काढ़े का कड़वापन बर्दाश्त कर लें और इसकी शिकायत करने के लिए बचे रहें।’ लड़का बोला- ‘जब जान पर बनी हो तो स्वाद की चिन्ता किसे होगी? अब तो आदत-सी हो गयी है।’
ऐसे तैयार होता है कॉफी हाउस का इम्युनिटी बूस्टर काढ़ा
अगला सवाल फिर अरुणा सिंह से था- ‘काढ़े में क्या-औषधियां या मसाले इस्तेमाल करती हैं?’ इसका जवाब दिया काढ़ा बनाने का जिम्मा संभाल रहे अनिल ने। कई औषधियां दिखाते हुए उन्होंने बताया कि उनके इम्युनिटी बूस्टर काढ़े में ‘अदरक, कच्ची हल्दी, लौंग, तुलसी, मुलेठी, दालचीनी, काली मिर्च, गिलोय, लेमन ग्रास’ उपयोग किया जाता है। थोड़ा गुड़ भी डालते हैं। सारी औषधियों के पाउडर का मिश्रण पानी के साथ धीमी आंच पर उबालते हैं। इस तरह तैयार होता है कॉफी हाउस का इम्युनिटी बूस्टर काढ़ा।
कोरोना के खिलाफ लड़ाई में काढ़े से योगदान
काढ़े को सामान्य पेय के रूप में प्रस्तुत करने की प्रेरणा अरुणा सिंह को समाज से ही मिली। उन्होंने कहा कि चिकित्सक, नर्सें और अन्य अस्पताल कर्मी, पुलिस, मीडियाकर्मी कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। हम समाज के इन अंगों का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन कुछ करने की इच्छा थी, तो हमने लोगों के लिए काढ़ा सुलभ बनाने की जिम्मेदारी उठायी, ताकि औषधियां लाने, कूटने-छानने, पकाने से झंझट से बचने के चक्कर में यदि कोई काढ़े के सेवन से वंचित रहता है तो यह ठीक नहीं है।इसलिए हमने इम्युनिटी बूस्टर काढ़ा को अपने मेन्यू में शामिल किया।
फिर इन्तजार किस बात का?
… तो आप भी अपनी इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए उस कॉफी हाउस में बैठकर इम्युनिटी बूस्टर काढ़ा पी सकते हैं, जो लखनऊ की सांस्कृतिक और राजनीतिक विरासत का गवाह भी है और हिस्सा भी है।