नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति चुनाव की तैयारियों के बीच राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। विपक्षी INDIA गठबंधन ने अपने उम्मीदवार के नाम की आधिकारिक घोषणा कर दी है। गठबंधन की ओर से सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार घोषित किया गया है। वहीं सत्तारूढ़ एनडीए ने सीपी राधाकृष्णन को मैदान में उतारा है। ऐसे में अब 9 सितंबर को होने वाले चुनाव में बी. सुदर्शन रेड्डी और राधाकृष्णन के बीच सीधा मुकाबला होगा।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बुधवार को प्रेस कांफ्रेंस कर बी. सुदर्शन रेड्डी के नाम की घोषणा की। उन्होंने कहा कि रेड्डी के नाम पर सर्वसम्मति से सहमति बनी, और INDIA गठबंधन की बैठक में इस नाम पर अंतिम मुहर लगाई गई। खरगे ने यह भी कहा कि यह सिर्फ एक चुनाव नहीं, बल्कि विचारधारा की लड़ाई है।
कौन हैं बी. सुदर्शन रेड्डी?
बी. सुदर्शन रेड्डी का लंबा और प्रभावशाली न्यायिक करियर रहा है। वह 1971 में हैदराबाद में आंध्र प्रदेश बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत हुए थे। उन्होंने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में रिट और सिविल मामलों में प्रैक्टिस की और 1988 से 1990 तक सुप्रीम कोर्ट में सरकारी वकील के रूप में भी कार्य किया।
इसके अलावा, उन्होंने केंद्र सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील के रूप में भी सेवाएं दीं और उस्मानिया विश्वविद्यालय के लिए कानूनी सलाहकार और स्थायी वकील के तौर पर कार्य किया। सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में उनकी पहचान न्यायिक ईमानदारी और निष्पक्षता के लिए की जाती रही है।
INDIA गठबंधन का संदेश: एकता और विचारधारा
INDIA गठबंधन ने इस बार उम्मीदवार चयन में गैर-राजनीतिक और सर्वमान्य नाम को तरजीह दी है। ममता बनर्जी की टीएमसी समेत कई दलों ने गैर-राजनीतिक व्यक्तित्व पर जोर दिया था, जिसे ध्यान में रखते हुए बी. सुदर्शन रेड्डी का नाम सामने लाया गया।
गठबंधन की रणनीति साफ है विपक्ष एकजुटता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के प्रतीक के तौर पर एक ऐसे उम्मीदवार को सामने लाना चाहता था, जो राजनीतिक विवादों से परे हो और जिसकी छवि निष्पक्ष हो।
चुनाव की तारीख और मुकाबला
अब 9 सितंबर को उपराष्ट्रपति पद के लिए मतदान होगा, जिसमें एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन और INDIA गठबंधन के बी. सुदर्शन रेड्डी आमने-सामने होंगे। यह मुकाबला सिर्फ दो व्यक्तियों के बीच नहीं, बल्कि दो विचारधाराओं और दो राजनीतिक सोचों के बीच भी माना जा रहा है।
आगामी हफ्तों में दोनों पक्षों की ओर से समर्थन जुटाने की कवायद तेज़ होगी। देखना दिलचस्प होगा कि इस बार उपराष्ट्रपति की कुर्सी किसके हिस्से आती है।