उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ अपने सख्त स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। वह हमेशा लोगों से सीधी बात करने वाले नेताओं के रूप में जाने जाते हैं। जो लोग उनके स्वभाव से परिचित हैं, उनका कहना है कि उनकी यह खूबी उन्हें गोरखपुर के गोरक्षपीठ से प्राप्त हुई है। जहां सीएम योगी ने सन्यासी की दीक्षा ली थी। आज भी बहुत से लोग ऐसे होंगे, जिनको इस बात के बारे में जरा भी मालूम नहीं होगा कि योगी आदित्यनाथ कब और किन परिस्थितियों में अपने परिवार को छोड़कर अचानक सन्यासी बनने की राह में निकल पड़े थे।
परिवार को छोड़ निकले इस राह पर
आपको बता दें कि 1 न्यूज़ चैनल पर एक शो के दौरान सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपनी जिंदगी की कुछ बातों को सबके सामने रखी थी। उन्होंने बताया आखिर क्यों वह अपने परिवार को इतनी छोटी सी उम्र में छोड़कर सन्यासी बनने के लिए निकल पड़े थे।
क्यों बनना चाहते थे सन्यासी
बीते कुछ वर्ष पहले इंडिया टीवी के शो आप की अदालत में सीएम योगी आदित्यनाथ ने हिस्सा लिया था। जिसमें एंकर रजत शर्मा ने कई सवाल उनसे किए थे। उन सवालों में से एक सवाल यह भी था। योगी जी आपके साथ जो कॉलेज में पढ़ते थे, वह कहते थे कि आप 22 साल की उम्र में अचानक गायब हो गए थे, ऐसे वक्त जब लोग आपको प्यार करते थे, आपकी प्रखर बुद्धि की तारीफ करते थे आप बहुत काबिल स्टूडेंट थे, लेकिन संगी – साथियों परिवार को छोड़कर अचानक कहां चले गए?
रजत शर्मा के सवालों के जवाब देते हुए योगी ने कहा देखिए सच है लेकिन जीवन का कुछ तो लक्ष्य अवश्य होना चाहिए हालांकि वह समय बहुत कठिन था लेकिन मैंने निश्चय कर लिया था। मैंने अपने कॉलेज के दिनों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और इस दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्य पद्धति को राष्ट्र के लिए उनके समर्पण के गांव को देखा। तभी मैंने यह निश्चय किया कि मुझे भी इस दिशा में कार्य करना चाहिए।
गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वर से मिलने के बाद आए यह विचार
उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री ने यह बताया उसी दौरान मेरा संपर्क राम जन्मभूमि मुक्त समिति के अध्यक्ष गोरक्ष पीठाधीश्वर पूज्य महंत विद्या नाथ जी महाराज से हुई। उन्होंने मुझे दो-तीन बार गोरखपुर आने के लिए कहा- लेकिन मैं एबीवीपी और आरएसएस के प्रोग्रामों में इतना व्यस्त था कि मुझे समय ही ना मिला। उनके यहां जाने का लेकिन जब राम जन्मभूमि आंदोलन ने तेजी पकड़ी तो मुझे लगा कि मुझे भी उस मिशन में आगे बढ़ना चाहिए। तभी मैं गोरखपुर चला गया।
मैं बहुत भाग्यशाली था। जो मुझे गोरक्ष पीठाधीश्वर ने अपने शिष्य के रूप में अपना लिया। उसी समय मैंने संन्यास की दीक्षा ली और फिर नाथ योगी के रूप में आया।
इस राह में थी बहुत दुविधा
अपनी बात को आगे बताते हुए योगी आदित्यनाथ कहते हैं सन्यास लेने से पहले मैंने कुछ प्रश्न गुरुदेव के सामने रखे थे क्योंकि ऋषिकेश और हरिद्वार में रहकर मैंने कई चीजों को देखा था सन्यास का मतलब क्या पलायन है अगर पलायन है तो मैं जीवन में पलायन का रास्ता नहीं अपनाना चाहता था मैंने यह बात रखी कि मैं सन्यास का मतलब सेवा से जोड़कर देखना चाहता हूं तब उन्होंने कहा की गोरक्ष पीठ जिस अभियान से जुड़ी है। तुम उसे देखो तो।
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मेरे मन में इस बात को लेकर दुविधा थी तभी मुझे गुरुदेव ने 6 महीने का वक्त दिया। तब मुझे लगा कि वास्तव में सन्यास का जो सही अर्थ है उसे विद्या नाथ जी महाराज जी रहे है। उन्होंने मुझे अपने शिष्य के रूप में अपना लिया यही नहीं मैंने भी उन्हें सच्चे मन से अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया और मैं सन्यासी के रूप में योगी आदित्यनाथ के रूप में लोगों के सामने आया।