इन दिनों देश को कोरोना महामारी की दूसरी लहर के प्रकोप का सामना करना पड़ रहा है। सभी लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। लोग अपनी जान बचाने के लिए सब काम छोड़कर घरों में बैठे हैं। अस्पतालों के बाहर मरीजों की एक लम्बी लाइन लगी हुई है। मुर्दाघरों में भी लाशों का तांता लगा हुआ है। देश में फैले इस राष्ट्रीय संकट के दौरान कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने इस महामारी को अपने धन उगाही का जरिया बना लिया है। ऐसा ही एक नाम राजधानी लखनऊ के थाना मड़ियांव के बगल में स्थित पब्लिक हॉस्पिटल एंड ट्रामा सेंटर का है, जहां इलाज के नाम पर मरीजों से मोटी रकम वसूली जा रही है और फिर उन्हें जबरन अस्पताल से बाहर कर दिया जा रहा है।
अस्पताल ने अचानक मरीज को निकाला बाहर
मिली जानकारी के अनुसार, पब्लिक हॉस्पिटल एंड ट्रामा सेंटर ने बुधवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश की धज्जियां उड़ाते हुए सिर्फ पैसों की वजह से सांस की समस्या से जूझ रहे एक मरीज को जबरन अस्पताल से बाहर का दिया। पब्लिक हॉस्पिटल एंड ट्रामा सेंटर के डॉक्टर समीर ने ऑक्सीजन का हवाला देते हुए मुन्नीलाल पाल को जबरन अस्पताल से बाहर कर दिया।
इस मामले की जानकारी देते हुए मरीज मुन्नीलाल पाल के बेटे कीरत पाल ने बताया कि बीते दिनों अचानक उनके पिता को सांस की समस्या को गई थी, जिसकी वजह से उन्होंने अपने पिता को पब्लिक हॉस्पिटल एंड ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया।
अस्पताल ने पहले तो 25 हजार रुपये प्रतिदिन का चार्ज बताया। लेकिन मरीज के परिजनों ने पैसे का इंतजाम कर अस्पताल में भर्ती कराया। उनका इलाज भी शुरू किया गया। हालांकि दो दिन बाद अचानक डॉक्टर समीर ने ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी होने की वजह से तुरंत अस्पताल से ले जाने की बात कही। ऐसे में जब मरीज के बेटे ने कहा कि अचानक अपने पिता को कहां ले कर जाए तो अस्पताल ने एक महंगे अस्पताल में बात करके मरीज को जबरन अस्पताल से बाहर कर दिया।
जब परिजन अपने मरीज को लेकर अस्पताल पहुंचे तो वहां 50 हजार रुपये प्रतिदिन का चार्ज बताया गया जो परिजनों के लिए बड़ी रकम थी। अंततः परिजनों को मरीज को लेकर घर वापस लौटना पड़ा, और घर पर ही उनका इलाज कराना पड़ रहा है।
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अभी बीते दिनों ही मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने एक बड़ा निर्देश जारी करते हुए कहा था कि कोई भी अस्पताल में मरीज को भर्ती करने से मना नहीं करेगा, अगर अस्पताल ऐसा करता है तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। हालांकि सीएम योगी का यह निर्देश राजधानी के इस अस्पताल के लिए कोई मायने नहीं रखता। यही वजह से है कि एक मरीज को अपना इलाज कराने के लिए दर-दर की ठोकरे खानी पड़ रही हैं।