भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) UU ललित की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने 103वें संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा गरीब सवर्णों को आरक्षण के फैसले पर सहमति दे दी है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 2019 में व्यवस्था में बदलाव करते हुए आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10 प्रतिशत कोटा देने का फैसला किया था। लेकिन आपको बता दें कि देश में गुजरात देश का ऐसा पहला राज्य है, जिसने सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण को देने का फैसला किया था।
सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की बेंच ने संविधान के 103 वें संशोधन अधिनियम 2019 की वैधता को बरकरार रखा। जिसमें सामान्य वर्ग के लिए 10% EWS आरक्षण प्रदान किया गया है।
चार न्यायाधीश अधिनियम को बरकरार रखने के पक्ष में जबकि एक न्यायाधीश ने इसपर असहमति जताई।
गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने कहा था कि गुजरात की भाजपा सरकार 14 जनवरी 2019 से आरक्षण प्रावधान लागू करेगी। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था कि सभी भर्ती प्रक्रियाओं में गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था लागू की जाएगी। गुजरात सरकार ने कहा था कि 1978 के बाद राज्य में बसे लोगों को सामान्य वर्ग के तहत आर्थिक रूप से कमजोर श्रेणी में 10 फीसदी आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
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सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला गुजरात चुनाव में अहम भूमिका निभा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को केंद्र सरकार की बड़ी जीत माना जा रहा है। गौरतलब है कि गुजरात में आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को उच्च जाति के हिंदुओं का 57 से 60 फीसदी वोट शेयर मिलने की पूरी संभावना है।