इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश में हुए पंचायत चुनाव के दौरान ड्यूटी करने वाले कर्मचारियों की कोरोना संक्रमण की चपेट में आने से यदि चुनाव से तीस दिन में मौत हुई है तो ही अनुग्रह राशि का भुगतान किए जाने को प्रथम दृष्टया सही नहीं माना है। कोर्ट ने राज्य सरकार को इस शासनादेश पर नये सिरे से पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि 30 दिन के भीतर मरने वालों को ही अनुग्रह राशि देना तार्किक वर्गीकरण नहीं है। कोर्ट ने इस पर पुनर्विचार कर विशेष सचिव रैंक के अधिकारी का छह हफ्ते में जवाबी हलफनामा मांगा है। याचिका की सुनवाई 17 फरवरी को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान की खंडपीठ ने कुसुम लता यादव की याचिका पर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि 1 जून 21 को राज्य सरकार द्वारा जारी शासनादेश का उद्देश्य भरण-पोषण करने वाले की कोरोना से मौत पर परिवार को मुआवजा देना है। सरकार ने स्वीकार किया कि याची के पति की मौत चुनाव ड्यूटी में कोरोना संक्रमित होने के कारण हुई है। चूंकि शासनादेश के प्रस्तर 12 में चुनाव से 30 दिन के भीतर मौत पर ही मुआवजे के भुगतान की व्यवस्था की गई है। इसलिए याची को भुगतान करने से इंकार किया गया है।
याची का कहना है कि अक्सर देखा गया है कि कोरोना संक्रमित की मौते 30 दिन के बाद भी हुई है। इसलिए 30 दिन में मौत की सीमा तय करना उचित नहीं है। इस अतार्किक निर्णय पर सक्षम अधिकारी पुनर्विचार करे। जिस पर कोर्ट ने राज्य सरकार को नये सिरे से विचार करने का निर्देश दिया है।
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मालूम हो कि प्रदेश सरकार ने एक जून 21 को शासनादेश जारी कर पंचायत चुनाव में ड्यूटी करने वाले ऐसे सरकारी कर्मचारियों जिनकी ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमण की चपेट में आने से मृत्यु हो गई है, उनके परिजनों को 30 लाख रुपये अनुग्रह राशि देने का निर्णय लिया है।
याची का कहना है कि शासनादेश के प्रस्तर 12 में कहा गया है कि निर्वाचन ड्यूटी की तिथि से 30 दिन के भीतर कोविड से मृत्यु होने पर ही अनु्ग्रह राशि पाने के लिए पात्र माना जाएगा। जबकि सरकार ने इसी शासनादेश में खुद स्वीकार किया है कि कई प्रकार से टेस्ट में भी कई बार कोरोना संक्रमण पकड़ में नहीं आता है। इसलिए संक्रमित होने की रिपोर्ट की तिथि को आधार नहीं बनाया जा सकता है। ऐसा कोई मानक तय नहीं किया जा सकता कि चुनाव में कोरोना से संक्रमित होने वाले कर्मचारी की 30 दिन में मृत्यु हो ही जाएगी। कई बार मरीज की मृत्यु 40 दिन या उससे ज्यादा समय के बाद भी हो सकती है। ऐसे में 30 दिन की समय अवधि तय करना अतार्किक है।