लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कोरोनाकाल महामारी के दरमियान ही कर्मचारियों के शोषण करने का एक नया तरीका निकाल लिया है। उन्होंने किसी भी कर्मचारी की भर्ती के बाद 05 वर्ष तक उसकी समीक्षा करने का निर्णय लिया है और हर 06 महीने में समीक्षा की जाएगी। कर्मचारी समाज ने इसका विरोध किया है। कर्मचारी नेताओं ने कहा की यह पूरी तरह से बेरोजगार समाज एवं कर्मचारी समाज का मजाक है।अगर यही व्यवस्था करनी है तो विधायक, सांसद, मंत्रियों सभी पर लागू होनी चाहिए। क्योंकि उन्हें भी बिल्कुल विधाई कार्यों अथवा सम्बधित विभाग का ज्ञान नही होता है। उन्हें भी ट्रेनिंग कराई जानी चाहिए। उसके बाद ही उनका वेतन आदि मिलना चाहिए। लोकतात्रिक व्यवस्था में यह बिल्कुल भी उचित नहीं है। कर्मचारी समाज पूर्ण रुप से सहमत है सरकार के खिलाफ अपनी उचित बात के लिए बड़े आन्दोलन किए जाए और इस व्यवस्था को लागू न होने दिया जाए। इसमें कर्मचारी समाज से लेकर बेरोजगार समाज भी सभी साथ आएगा।
इस सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के सभी कर्मचारी संगठनों शिक्षक संघ संगठनों और अधिकारी संगठनों द्वारा बनाए गए कर्मचारी शिक्षक अधिकार एवं पेंशनर्स अधिकार मंच के द्वारा कड़ा विरोध किया गया है। जिसमें मुख्य रुप से कलेक्ट्रेट एसोसिएशन के अध्यक्ष सुशील त्रिपाठी, प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर दिनेश चन्द्र शर्मा, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रदेश अध्यक्ष हरि किशोर तिवारी, राज्य कर्मचारी महासंघ अध्यक्ष सतीश पांडे, अध्यक्ष सचिवालय संघ यादवेन्द्र मिश्र, अध्यक्ष चालक महासंघ रामफेर पाण्डे, अध्यक्ष डिप्लोमा इंजीनियर महासंघ राकेश त्यागी, पूर्व अध्यक्ष पीसीएस एसोसिएशन बाबा हरदेव सिंह, अध्यक्ष अधिकारी महापंचायत एसके सिंह, अध्यक्ष तहसीलदार एसोसिएशन निखिल शुक्ला, अध्यक्ष चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी महासंघ रामराज दूबे, वीरेन्द्र चौहान, एनएस नेगी, चेत नारायण सिंह, बृजेश श्रीवास्तव, अवधेश मिश्रा, प्रेम कुमार सिंह आदि संगठनों ने राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के महासचिव शिवबरन सिंह यादव की ओर से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर विरोध प्रकट किया है।