भाजपा के 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही कांग्रेस ढलान पर दिख रही है। 2018 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में जीत हासिल करने के अलावा कोई ऐसा मौका नहीं रहा, जो कांग्रेस को राहत दे सके। इस दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, गुलाम नबी आजाद और सुष्मिता देव समेत कई बड़े और करीबी नेताओं ने पार्टी ही छोड़ दी। कपिल सिब्बल ने तो सपा के समर्थन से राज्यसभा का टिकट कटा लिया। इसके अलावा कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे नेता ने पंजाब में अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा और कांग्रेस को हराने में भूमिका अदा की। सुनील जाखड़ जैसे नेताओं ने 5 दशक पुराना साथ छोड़कर भाजपा जॉइन कर ली और गुलाम नबी आजाद ने तो सोमवार को ही अपनी पार्टी बना ली।
हमेशा दिखे वफादार, ऐन वक्त पर की बगावत
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान अशोक गहलोत हमेशा कांग्रेस को छोड़ने वाले नेताओं पर हमला करते दिखे। गुलाम नबी आजाद पर हाल ही में अटैक करते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने उनको सब कुछ दिया था, लेकिन फिर भी ऐसा कदम उठाना दुर्भाग्यपूर्ण है। अशोक गहलोत की छवि हमेशा पार्टी मैन और गांधी फैमिली के वफादार की रही। इंदिरा के दौर से अब तक वह परिवार के करीबी ही रहे और दूसरों नेताओं के मुकाबले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से भी बेहतर रिश्ते रखे। यही वजह थी कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने जब गैर-गांधी अध्यक्ष पर विचार किया तो पहला नाम अशोक गहलोत का ही आया।
अचानक हुई बगावत से हैरान हुई गांधी फैमिली
लेकिन सीएम पद के मोह में अशोक गहलोत ने जो 82 विधायकों के इस्तीफे वाला जो दांव चला है, उससे गांधी परिवार हैरान है। कहा जा रहा है कि अपने दूतों से न मिलने और अलग मीटिंग करने को सोनिया गांधी ने हाईकमान के अपमान और अनुशासनहीनता के तौर पर लिया है। खुद अजय माकन ने सोमवार को बताया था कि सोनिया ने लिखित रिपोर्ट मांगी है और उसके बाद कुछ फैसला लिया जाएगा। ऐसे में अब यह सवाल है कि आखिर गांधी परिवार के पास अशोक गहलोत को लेकर क्या विकल्प हैं।
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गहलोत को निपटाएगी गांधी फैमिली? दो हैं रास्ते
पहला विकल्प गांधी फैमिली के पास यह है कि वह अशोक गहलोत को अध्यक्ष बनाने का विचार टाल दे और उन्हें चुनाव तक सीएम रहने दे। यदि पार्टी जीतती है तो बाद में फैसला लिया जाए और यदि हार मिलती है तो अशोक गहलोत के लिए यह आखिरी मौका खत्म होने जैसा होगा। इसके अलावा एक विकल्प यह भी है कि अशोक गहलोत को अध्यक्ष पद की रेस से बाहर किया जाए और हाईकमान दखल देकर पंजाब की तरह उनसे इस्तीफा ले ले। हालांकि ऐसा करने पर राजस्थान में भी पंजाब वाली कहानी हो सकती है। जो कैप्टन अमरिंदर के इस्तीफे के बाद हुई थी। ऐसे में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए यह स्थिति न निगलते बने और न उगलते बने वाली हो गई है। देखना होगा कि गांधी परिवार राजस्थान में फंसी किश्ती को कैसे निकालता है।