‘‘अगर मेरे बराबर हिन्दुओं को जलसा करने की इजाजत दी गई तो मैं ऐसे हालात पैदा कर दूंगा जो सम्भाले नहीं सम्भलेंगे। मैं अल्लाह की कसम खाता हूं कि मैं उन्हें कोई कार्यक्रम नहीं करने दूंगा। मैं कौमी फौजी हूं… मैं आर.एस.एस. का एजेण्ट नहीं हूं जो डर के मारे घर में छिप जाएगा। अगर वे फिर से ऐसा करने का प्रयास करेंगे तो मैं खुदा की कसम खाता हूं कि मैं उन्हें उनके घर में घुस कर पीटूंगा।’’ सुनने में ये गरलयुक्त पंक्तियां स्वतन्त्रता पूर्व मुस्लिम लीग के किसी मंच से दिए गए भाषण की लगती हों परन्तु घटना 20 जनवरी, 2022 की है, जब पंजाब के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र मलेरकोटला में कांग्रेस उम्मीदवार व वर्तमान विधायक रजिया सुल्ताना के पति और पंजाब पुलिस के पूर्व महानिदेशक मोहम्मद मुस्तफा भाषण दे रहे थे। ये साम्प्रदायिक विष मोहम्मद मुस्तफा के श्रीमुख से ही निकला है।
पूर्व पुलिस महानिदेशक पर दो समुदायों के बीच वैमनस्य बढ़ाने के आरोप में भारतीय दण्डावली की धारा 153-ए के अन्तर्गत मामला दर्ज किया गया है। वाद पुलिस अधीक्षक कर्मवीर सिंह, प्रभारी थाना सिटी की शिकायत पर दर्ज किया गया है। पुलिस की प्राथमिकी पर प्रतिक्रिया देते हुए मोहम्मद मुस्तफा ने चाहे इसे पूरी तरह बकवास बताया और दावा किया कि उन्होंने ‘फितने’ शब्द का प्रयोग किया जिसका अर्थ है कानून तोड़ने वाले। उनका कहना है कि वो मुसलमानों के एक समूह पर गुस्सा थे जिन्होंने उन पर हमले का प्रयास किया। वो उन्हें चेतावनी दे रहे थे, हिन्दुओं को नहीं।
पंजाब में साम्प्रदायिक राजनीति का कोई इतिहास नहीं है परन्तु मोहम्मद मुस्तफा के इस भाषण को राज्य की राजनीति में विषैले जिन्नावाद की कोपलों के रूप में देखा जा रहा है। मोहम्मद मुस्तफा ने केवल विधान की दृष्टि में ही अपराध नहीं किया बल्कि गुरु गोबिन्द सिंह जी के उस विश्वास और विचारों को भी ठेस पहुंचाई है जो उन्होंने यहां के नवाब के प्रति व्यक्त किए। इतिहास है कि जब सरहिन्द में गुरु गोबिन्द सिंह जी के छोटे साहिबजादे फतेह सिंह व जोरावर सिंह को मुगल सूबेदार वजीर खां द्वारा दिवारों में चिनवाया जा रहा था तो उसने वहां पर खड़े मलेरकोटला के नवाब मोहम्मद शेर खां को अपने भाई की मौत का बदला लेने को कहा। इस पर शेर खां ने कहा कि उनकी लड़ाई गुरु गोबिन्द सिंह से है, इन बच्चों ने क्या बिगाड़ा है। गुरु गोबिन्द सिंह जी को इस घटना का पता चला तो उन्होंने शेर खां को आशीर्वाद दिया और तब से लेकर यह स्थान साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बना हुआ है। यहां तक कि 1947 में जब देश में साम्प्रदायिक वातावरण खून में सन चुका था और जगह-जगह खून खराबा हो रहा था तो भी हिन्दू-सिखों ने अपने गुरु साहिब का वचन निभाते हुए यहां के मुसलमानों का तनिक भी अहित नहीं किया। अब कांग्रेस के नेता मोहम्मद मुस्तफा ने उसी साम्प्रदायिक सौहार्द की जड़ों पर प्रहार किया और गुरु गोबिन्द सिंह जी के विश्वास को तोड़ा है।
आदर्शवादी बातों को दरकिनार कर दिया जाए तो मुस्लिम बाहुल्य इलाके मलेरकोटला में साम्प्रदायिक सद्भावना बनाए रखने का काम एक तरफा ही होता आया है, शेर खां के बाद उनकी मानसिकता वाले कम हो लोग पैदा हुए हैं। शेर खां की कमी के चलते ही यहां नामधारी सम्प्रदाय के 80 सिखों को अपना बलिदान देना पड़ा था। साल 1872 गोहत्या के मामले में मलेरकोटला के एक मुस्लिम न्यायाधीश ने सजा सुनाई कि सरेआम कचहरी में एक बैल की हत्या की जाए। गांव फरवाही के नम्बरदार सन्त गुरमुख सिंह के सामने कोतवाली में एक बैल को कत्ल किया गया और गो-भक्त गुरमुख सिंह को बहुत अपमानित किया गया। नामधारी सम्प्रदाय के प्रमुख सद्गुरु राम सिंह कूका जी की स्वीकृति ले कर जत्थेदार हीरा सिंह व लहना सिंह के नेतृत्व में नामधारी सिखों ने बड़े जत्थे के साथ मलेरकोटला के कसाईयों पर हमला कर दिया। इस पर अंग्रेज सरकार ने 67 नामधारी सिखों को तोप से उड़ा कर शहीद कर दिया।
आज से लगभग 9 साल पहले 30 दिसम्बर, 2013 में मलेरकोटला में एक सात वर्षीय बच्चे विधू जैन को उन्मादियों ने जला कर मार दिया। बताया जाता है कि विधू जैन का किसी बात को लेकर अपने साथियों से झगड़ा हुआ था परन्तु इसका खामियाजा उस बच्चे को अपनी जान गंवा कर भुगतना पड़ा। इस घटना के इतने साल बीत जाने के बाद भी पंजाब की पुलिस दोषियों को सजा दिया जाना तो दूर उनकी पहचान तक नहीं कर पाई है। यह समझना मुश्किल नहीं कि जिस पुलिस में मोहम्मद मुस्तफा जैसे साम्प्रदायिक मानसिकता के लोग प्रम्मुख पद पर तैनात हों वहां उन्मादियों को सजा मिले यह कैसे सम्भव है? मलेरकोटला के निवासी बताते हैं कि जब भी पुलिस विधू जैन हत्याकाण्ड की जांच करने आती तो उसके आसपास उन्मादियों की इतनी भीड़ इक्ट्ठा हो जाती कि पुलिस को अपना काम करना मुश्किल हो जाता। आज विधू जैन का परिवार अपने लाड़ले को खोने के बाद सब्र करके घर बैठ चुका है। यहां का हिन्दू समाज राजनीतिक रूप से भी उपेक्षित है और दांतों के बीच जीभ जैसा जीवन व्यतीत करने को विवश है। उन्मादियों द्वारा हिन्दुओं को चुनाव न लड़ने के लिए दबाव बनाया जाता है और यहां के लोग बताते हैं कि मोहम्मद मुस्तफा ने तो केवल इसी उन्मादी भावना को स्वर दिया है। हिन्दुओं को प्रताड़ित व दबाव में लाने का काम तो काफी समय से चल रहा है।
मोहम्मद मुस्तफा 1985 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं और इस्लामिक व सूक्ष्म वामपन्थी विचारधारा से प्रभावित हैं। वे पंजाब के पूर्व मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह के भी करीबी रहे परन्तु कैप्टन द्वारा अपने कार्यकाल में दिनकर गुप्ता को पंजाब पुलिस प्रम्मुख नियुक्त करने के बाद वे सिद्धू के पाले में चले गए। उन्होंने इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया परन्तु असफल रहे। यहां रोचक तथ्य यह रहा कि सर्वोच्च न्यायालय में उनके केस की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट एजाज मकबूल ने की जो साल 2019 में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की ओर से श्रीराम मन्दिर केस में मन्दिर निर्माण के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर कर चुके हैं। उनके पुलिस प्रमुख रहते हुए पंजाब में जिस तरह तेजी से सार्वजनिक स्थानों के आसपास मस्जिदों, मजारों-ईदगाहों का निर्माण हुआ, दूसरे प्रदेशों से लाकर मुसलमानों को बसाया गया और उन्हें संरक्षण दिया गया वह भी जांच का विषय है। मुस्तफा हिन्दुत्व व संघ के खिलाफ ट्वीट कर कई बार विवादों में आ चुके हैं और अब उन्हें पंजाब में जिन्नावादी कोपलों के रूप में देखा जाने लगा है।
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वैसे कांग्रेस में जिन्नावादियों की कमी नहीं। हाल ही में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के समर्थन में उतरे इत्तेहाद मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां व उनके जैसे न जाने कितने ही नेता हैं जो सरेआम हिन्दुओं को गाली दे चुके और बाटला हाऊस में मारे गए आतंकियों को निर्दोष बता चुके हैं। अब इस बिरादरी में पंजाब के मोहम्मद मुस्तफा का भी नाम जुड़ चुका है और देश विभाजन की सर्वाधिक त्रासदी झेल चुके पंजाब के लिए यह अत्यन्त अशुभ समाचार है।
-राकेश सैन