समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव हों या फिर कांग्रेस के राहुल गांधी -प्रियंका वाड्रा तीनों को ही बसपा सुप्रीमों मायावती की राजनैतिक शैली रास नहीं आती है। कांग्रेस एवं समाजवादी पार्टी हमेशा से भारतीय जनता पार्टी की धुर विरोधी रहीं हैं और यह दल(सपा- कांग्रेस ) चाहते हैं कि उनकी तरह से मायावती भी भाजपा को अपना दुश्मन नंबर वन मानकर चलें, लेकिन बसपा सुप्रीमों मायावती किसी भी दल को अछूत नहीं मानती हैं। न ही किसी को क्लीन चिट देती हैं। वह सपा-कांग्रेस या फिर भाजपा की सियासत को एक ही तराजू में तौलती हैं।
माया जितना हमलावर भाजपा पर रहती हैं उतना ही तीखा हमला वह कांग्रेस-सपा पर भी बोलती हैं। इतना ही नहीं मोदी-योगी सरकार के कुछ अच्छे फैसलों की माया सराहना करने से भी नहीं चूकती हैं। बस, इसी की आड़ लेकर कांग्रेस और सपा नेता बसपा को भाजपा की बी टीम बताने का हल्ला शुरू कर देते हैं। इस हो-हल्ले के पीछे सपा-कांग्रेस का जो डर छिपा रहता है,उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
बसपा का खेल बिगाड़ने की जुगत में रहते हैं सपा-कांग्रेस
दोनों ही दलों के नेताओं की कोशिश यही रहती हैं कि बसपा का दलित-मुस्लिम का फार्मूला ‘हिट’ नहीं हो पाए। इसकी तोड़ के लिए बसपा को बीजेपी की बी टीम बताकर मुस्लिम वोटों का रूख अपनी तरफ मोड़ने का प्रयास यह दल करते हैं,लेकिन मायावती भी कच्ची सियासतदार नहीं हैं। वह कांग्रेस-सपा को आइना दिखाने का कोई मौका छोड़ती नहीं हैं। राज्यसभा चुनाव में भी मायावती ने अपना प्रत्याशी उतार कर यही ‘चाल’ चली है। माया के इस दांव की काट करना कांग्रेस और सपा के लिए आसान नहीं होगा।
उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की दस सीटों के चुनाव में बसपा द्वारा अपना उम्मीदवार उतारने से निर्विरोध निर्वाचन की संभावना खत्म नजर आ रही हैं। पार्टी के नेशनल कोआर्डिनेटर रामजी गौतम को चुनाव मैदान में उतारने का फैसला लिया गया है। मायावती के इस दांव से भारतीय जनता पार्टी के नौ सदस्यों के जीतने की राह जहां कठिन होगी वहीं, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के सामने भी दुविधा की स्थिति खड़ी हो सकती है। अगर सपा-कांग्रेस ने बसपा प्रत्याशी को समर्थन दिया तो वह जीत जाएगा,लेकिन नहीं दिया तो माया दोनों दलों पर आरोप लगाने से नहीं चुकेंगी कि कांग्रेस-सपा ने मिलकर एक दलित को हरा दिया।
दस सीटों पर होने वाले राज्यसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के आठ व समाजवादी पार्टी के एक सदस्य की जीत तय है। भारतीय जनता पार्टी का एक और सदस्य तब ही जीत सकता है जब विपक्ष साझा प्रत्याशी न खड़ा करे क्योंकि न तो बहुजन समाज पार्टी और न ही कांग्रेस स्वयं के दम पर अपना प्रत्याशी जिता सकती है। विधानसभा में मौजूदा सदस्य संख्या के आधार पर जीत के लिए किसी भी प्रत्याशी को 36 वोटों की आवश्यकता होगी। भारतीय जनता पार्टी ने अभी नौंवी सीट पर प्रत्याशी खड़ा करने या नहीं करने के संबंध में अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन उसके आठ उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित है।
सपा ने प्रो. रामगोपाल यादव का नामांकन कराकर स्पष्ट कर दिया कि उसके पास दस वोट अतिरिक्त होने के बावजूद वह किसी और को खड़ाकर वोटों की जोर आजमाईश में उतरना नहीं चाहती है। बहुजन समाज पार्टी के नेशनल कोआर्डिनेटर रामजी गौतम को चुनाव लड़ाकर एक तीर से कई निशाना साधना चाह रही हैं। गौतम 26 अक्टूबर को नामांकन करेंगे।
गौरतलब है कि बहुजन समाज पार्टी के विधायकों की संख्या वैसे तो 18 ही हैं, लेकिन उसे दो-तीन और के वोट मिलने की उम्मीद नहीं है। बसपा नेताओं का कहना है कि मायावती के इस फैसले से कांग्रेस, सपा व अन्य विपक्षी दलों द्वारा पार्टी को भाजपा की बी-टीम के रूप में प्रचार करने पर खुद-ब-खुद ब्रेक भी लग जाएगा।
वहीं बसपा प्रत्याशी को सपा व कांग्रेस समर्थन नहीं देंगी तो पार्टी को पलटवार करने का मौका मिलेगा। बसपा प्रत्याशी के हारने की स्थिति में पार्टी नेताओं द्वारा जनता के बीच यह सवाल उठाया ही जाएगा कि आखिर भाजपा का मददगार और दलितों का दुश्मन कौन है ? ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा कता है कि भाजपा को हराने के लिए सपा, कांग्रेस के साथ ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अलावा कई निर्दल विधायको का भी बसपा को समर्थन मिल सकता है। इतना ही नहीं बसपा की नजर भाजपा के असंतुष्टों पर भी है।
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बात भारतीय जनता पार्टी की कि जाए तो राज्यसभा चुनाव के लिए बसपा द्वारा उम्मीदवार उतारने का फैसला लिए जाने से भाजपा के अंदर उहापोह की स्थिति है। पहले भाजपा को भरोसा था कि पर्याप्त वोट न होने और विपक्षी दलों में आपसी तालमेल बिगड़ने से एकजुटता नहीं बन पाएगी। ऐसे में भाजपा अपने नौ नेताओं को राज्यसभा में पहुंचाने में कामयाब हो जाएगी। वैसे भाजपा में नौंवे प्रत्याशी के रूप में कंेद्रीय मंत्री हरदीप पुरी व राष्ट्रीय महासचिव अरूण सिंह के नाम की चर्चा चल रही थी। पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर का नाम भी लगभग फाइनल बताया जा रहा है। दो प्रदेश अध्यक्षों पर बैठक में विचार किया गया। जातीय संतुलन बनाने के लिए पिछड़े व अनुसूचित जाति से जुड़े नेताओं पर भी चर्चा की गई। प्रदेश अध्यक्ष को दिल्ली कार्यालय से संपर्क व सवंाद बनाकर रखने को कहा गया।
बागियों से भी उम्मीदः बसपा द्वारा उम्मीदवार उतारने के फेसले से भाजपा में नौवें प्रत्याशी को लेकर मंथन तेज हो गया है। एक खेमा निर्दल उम्मीदवार को उतारने की पैरोकारी कर रहा है। उनका कहना है कि विशेष परिस्थिति में नौवां प्रत्याशी निर्दल रहकर हार भी जाता है तो पार्टी की किरकिरी नहीं होगी। इसके विपरित नौवां उम्मीदवार भी भाजपा से ही होने की वकालत करने वाले भी कम नहीं उनका कहना है चुनाव से पहले ही कदम पीछे खींच लेने का गलत संदेश जाएगा। उनको सपा, बसपा, कांग्रेस के बगियों का भी साथ मिलने की उम्मीद है।
विधानसभा में दलीय स्थिति
भाजपा 304, सपा 48, अपना दल 9, कांग्रेस 7, सुभासपा 4, रालोद 1, निर्बल इंडियन शोषित हमारा अपना दल 1