उत्तर प्रदेश अपने कला-संस्कृति के पहचान को लेकर अपने ही नहीं बल्कि दूर प्रदेशों में भी प्रसिद्ध है। तमाम विधाओं से जुड़े कलाकार जहां अपनी कला से एक पहचान बनाए हुए हैं, वहीं यहां के चित्रकार भी अपनी सृजनात्मकता से प्रदेश की पहचान स्थापित करने में पीछे नहीं हैं। इसी कड़ी में राजधानी लखनऊ के कला एवं शिल्प महाविद्यालय के छह युवा कलाकारों की कृतियों प्रदर्शनी मंगलवार को देश की प्रसिद्धतम मुंबई की कला वीथिका जहांगीर आर्ट गैलरी में लगाई गई। इस गैलरी में किसी चित्रकार की प्रदर्शनी लगना एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। प्रदर्शनी का उद्घाटन महाराष्ट्र के वरिष्ठ कलाकार राजेंद्र पाटिल ने किया। यह प्रदर्शनी 27 दिसंबर तक कला प्रेमियों के अवलोकनार्थ लगी रहेंगी।
प्रदर्शनी की विस्तृत जानकारी देते हुए चित्रकार भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया की रांदे-वू एक फ्रेंच शब्द है, जिसका अर्थ मिलन है अर्थात् एक सामूहिकता की बात है। लखनऊ कला महाविद्यालय के पूर्व छात्र रहे अपूर्व, प्रमोद नायक, रीता, संदीप कुमार, सुधा यादव और सुधीर शुक्ला हैं व इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कला संकाय के पूर्व छात्र अमित सिंह और पटना आर्ट्स कॉलेज के पूर्व छात्रा अनामिका सिंह की कृतियां प्रदर्शनी में शामिल की गई हैं। इस प्रदर्शनी में पेंटिंग, रेखांकन, वीडियो इंस्टालेशन, मूर्तिकला आदि शामिल हैं।
प्रदर्शनी के बारे में कला प्रेमी अनुपम दीक्षित कहते हैं कि यह एक गलत धारणा है कि कला को समझने के लिए कुछ विशेष बुद्धि की आवश्यकता होती है; इसके विपरीत, कला को समझना नहीं है, बल्कि महसूस करना है। कला दुनिया की अभिव्यक्ति का सबसे पहला और सबसे पुराना माध्यम है। प्रदर्शनी एक ऐसा अवसर है जहां हमें देश के सर्वश्रेष्ठ कला महाविद्यालयों के युवा कलाकारों की रचनात्मक अभिव्यक्ति देखने को मिल रही है। इन कलाकारों की कृतियों को देखकर मुझे भारतीय दर्शन के सत्यम शिवम सुंदरम की अवधारणा याद आ गई।
उन्होंने बताया कि यदि आप इन कलाकारों की कृतियों पर एक नज़र डालें, तो सुधीर शुक्ल की कृतियों में कौवा, कीड़े और विकृतियों जैसी मूर्त सृजन के सौंदर्य और अमूर्त विचार दोनों मिलेंगे, जबकि प्रमोद नायक का काम, जैसे सल्वाडोर डाली का अति यथार्थवाद, कागज के झुलसे हुए टुकड़ों में आंतरिक प्रवृत्तियों को दर्शाता है। मानव और प्रकृति के जीवन और संबंधों के विरोधाभास और सहजीवन को प्रकट करता है। यह संबंध संदीप की स्थापना कला में भी स्पष्ट है जहां वह समय, जीवन और प्रकृति के बीच अंतर संबंधों को दर्शाता है। सुधा के धागे का काम और चमकीले रंग प्रकृति की तरह ही विभिन्न तत्वों के सामंजस्य को फिर से बनाते हैं और अनामिका की रचना है जो देवी की परोपकारी शक्ति के प्रतिनिधित्व में उत्साह और संतोष के पारस्परिक रूप से भिन्न लेकिन अंतर्संबंधित भावों को उद्घाटित करती है। अपूर्वा की कृति एक भावना व्यक्त करती है। अग्नि, लय और भ्रम के बीच सिद्धि और पवित्रता का। स्क्रिबलिंग लाइनें उन प्रयासों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिनकी पृष्ठभूमि बलिदान और श्रम की आग है। अंततः बिखरी हुई रेखाएं उस अग्नि में तपस्या करके रूप धारण कर लेती हैं। लय, सम्मोहन और सामंजस्य के एक अमूर्त प्रदर्शन के साथ, अमित ने अपने काम में जीवन के गतिशील रूप को जीवंत किया है और अंत में रीता के भविष्य के डर की नीली धुंध, जिसमें मानव मस्तिष्क और हृदय नियंत्रित हैं। मशीनें, भावनाओं से रहित और विचारों से रहित होती है।
ब्रज भूमि-अध्यात्मिक चिन्तन के लिये विख्यात: आनंदीबेन पटेल
इन कृतियों के बारे में प्रत्येक दर्शक की अपनी व्यक्तिगत समझ होगी। यही कला का सार है। कई दृष्टिकोण संभव हैं और कोई भी अंतिम नहीं है। इसलिए कला प्रकृति में लोकतांत्रिक है, जिसमें सह-अस्तित्व अंतिम उत्पाद है, संघर्ष नहीं।