लखनऊ।सीएसआईआर-केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीडीआरआई), लखनऊ ने “प्रीक्लिनिकल इनोवेशन एंड रेगुलेटरी प्रैक्टिस” पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया।
इसमें प्रीक्लिनिकल अनुसंधान और विनियमन के क्षेत्र में उभरते रुझानों और प्रथाओं पर विचार-विमर्श करने के लिए अनुसंधान, उद्योग और नियामक निकायों के प्रमुख विशेषज्ञ एक साथ आए।
सीडीआरआई में “प्रीक्लिनिकल इनोवेशन एंड रेगुलेटरी प्रैक्टिस” पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित
संगोष्ठी की शुरुआत सीएसआईआर-सीडीआरआई की निदेशक डॉ. राधा रंगराजन के स्वागत भाषण से हुई, जिन्होंने सख्त एवं नैतिक रूप से आधारित प्रीक्लिनिकल शोध के माध्यम से औषधि अनुसंधान को आगे बढ़ाने में संस्थान की भूमिका पर जोर दिया।
उन्होंने दवा विकास में सुरक्षा, प्रभावकारिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए प्रीक्लिनिकल मॉडल में नियामक जागरूकता एवं नवाचार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
संस्थान में डॉ. एसके रथ की उल्लेखनीय अनुसंधान यात्रा का जश्न मनाया गया
मुख्य अतिथि, डॉ. जी.एन. सिंह, भूतपूर्व औषधि महानियंत्रक भारत (डीसीजीआई) तथा मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के सलाहकार, ने संगोष्ठी को संबोधित किया तथा जन स्वास्थ्य की सुरक्षा करते हुए वैज्ञानिक प्रगति का समर्थन करने के लिए भारत के विनियामक ढांचे को मजबूत करने के महत्व पर बल दिया।
उन्होंने युवा वैज्ञानिकों को अपने शोध को राष्ट्रीय तथा वैश्विक विनियामक मानकों के अनुरूप बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने आगे बताया कि “प्रमोट फार्मा” उत्तर प्रदेश में अनुसंधान तथा नवाचार को बढ़ावा देने के लिए मजबूत नेटवर्क स्थापित करने में बहुत सहायक होगा।
तथा उन्होने ललितपुर उत्तर प्रदेश में विकसित किए जा रहे फार्मा पार्क के बारे में भी जानकारी दी तथा शोधकर्ताओं का अहवाहन किया की वे इन नवीन परियोजनाओं में शामिल हो कर प्रदेश एवं देश के विकास में भागीदारी दें।
इस कार्यक्रम में बायोमेडिकल रिसर्च सेंटर (सीबीएमआर) के निदेशक प्रो. आलोक धवन मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए।
अपने संबोधन में उन्होंने प्रीक्लिनिकल रिसर्च में नैतिक एवं वैज्ञानिक अखंडता पर ध्यान आकर्षित किया और नवाचार में बहु-विषयक सहयोग की वकालत की। उन्होंने युवा शोधकर्ताओं को आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने और अपने काम में नैतिक मूल्यों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया।
संगोष्ठी का एक मुख्य आकर्षण फार्मास्यूटिकल विनियमन के वरिष्ठ विशेषज्ञ डॉ. ए.बी. पंत का विशेष व्याख्यान था। अपने भाषण में, डॉ. पंत ने इस बारे में गहन जानकारी साझा की कि भारत अपनी प्रीक्लिनिकल परीक्षण प्रक्रियाओं को कैसे मजबूत कर सकता है और वैज्ञानिकों और नियामक अधिकारियों के बीच समन्वय में सुधार कर सकता है।
उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों और पारदर्शिता के महत्व को समझाया कि दवाएँ न केवल प्रभावी हों बल्कि उपयोग के लिए सुरक्षित भी हों।
संगोष्ठी के दौरान डॉ. राधा रंगराजन ने विष विज्ञान और विनियामक विज्ञान के प्रसिद्ध विशेषज्ञ डॉ. एस.के. रथ को सुरक्षित चिकित्सा अनुसंधान को आगे बढ़ाने में उनके बहुमूल्य योगदान और उनकी संस्थान में दशकों की सेवा के लिए सम्मानित किया।
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