वाराणसी में काशी विश्वानाथ मंदिर परिसर में मौजूद ज्ञानवापी मामले में आज एक अहम मामले में अदालत ने अपना फैसला सुनाया. ज्ञानवापी मामले से जुड़े 7 मुकदमों को अदालत ने एक ही नेचर का बताते हुए क्लब कर दिया है. मस्जिद परिसर के अंदर वजूखाने में मिले कथित शिवलिंग की नियमित पूजा और इसी तरह के सात मुकदमों को क्लब करने को लेकर मांग की गई थी. इस मामले में बहस पहले ही पूरी हो चुकी थी, आज अदालत ने अपना फैसला भी सुना दिया.
इन सभी मामलों में बचाव पक्ष यानी अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने मामलों को क्लब करने का विरोध किया था. इधर राखी सिंह के वकील शिवम गौंड़ ने भी सभी मामलों को क्लब करने को अन्याय बताया. राखी सिंह का मामला फास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रहा था.
इससे पहले वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के पूरे परिसर का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से सर्वे कराने का आग्रह किया गया है. इस मांग के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सोमवार 22 मई को वाराणसी की जिला अदालत में एक याचिका दायर की. मामले की अगली सुनवाई की तारीख सात जुलाई तय की गई है.
राजेश मिश्रा ज्ञानवापी और आदि विश्वेश्वर मामलों के विशेष अधिवक्ता हैं. उन्होंने सोमवार को बताया कि जिला न्यायाधीश ए. के. विश्वेश की अदालत में अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने अपनी आपत्ति दर्ज करवाई है. उन्होंने बताया कि मुस्लिम पक्ष ने ज्ञानवापी के पूरे परिसर का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से सर्वे कराने के आदेश देने के आग्रह वाली याचिका आपत्ति जताई है.
अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने अपनी आपत्ति में कहा है, ‘कमीशन की आख्या (रिपोर्ट) या एएसआई द्वारा जांचोपरांत दी गई आख्या को साक्ष्य इकट्ठा करने के उद्देश्य से कतई नहीं मंगाया जा सकता है. बिल्डिंग से जो सम्बन्धित वास्तविक तथ्य हैं, उसको जुबानी साक्ष्य द्वारा साबित नहीं किया जा सकता. ऐसी स्थिति में साक्ष्य इकट्ठा करने हेतु एएसआई से (सर्वे) रिपोर्ट मांगने के लिए प्रार्थना पत्र दिया गया है, जो कानून के खिलाफ है और कानूनन पोषणीय नहीं है.’
कमेटी ने अपनी आपत्ति में यह भी कहा है कि वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) द्वारा आठ अप्रैल 2021 को ज्ञानवापी-श्रंगार गौरी परिसर का एएसआई से सर्वे कराने का आदेश दिया था. इसके खिलाफ उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिका तथा एक अन्य याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में विचाराधीन है. दोनों ही याचिकाओं पर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. ऐसे में उन्हीं बिंदुओं पर दोबारा उसी सम्पत्ति के बाबत एएसआई सर्वे कराने का प्रश्न ही नहीं उठता है, लिहाजा यह याचिका खारिज की जानी चाहिए.
मिश्रा ने बताया कि अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी को 19 मई को ही वाराणसी के जिला अदालत में पूरे ज्ञानवापी परिसर का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से सर्वे कराने के आदेश देने के आग्रह वाली याचिका पर अपनी आपत्ति दाखिल करनी थी, लेकिन उसी दिन ज्ञानवापी में मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के चलते आपत्ति दर्ज नहीं हो पाई थी.
ज्ञातव्य है गत 16 मई को वाराणसी की जिला अदालत ने काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के पूरे परिसर का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से सर्वेक्षण कराने का आग्रह करने वाली याचिका सुनवाई के लिए मंजूर कर ली थी.
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ज्ञात हो कि अगस्त 2021 में पांच महिलाओं ने स्थानीय अदालत में एक याचिका दायर की थी, जिसमें मस्जिद परिसर के अंदर स्थित मां श्रृंगार गौरी स्थल पर नियमित पूजा के अधिकार की मांग की गई थी. अप्रैल 2022 में सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण का आदेश दिया था. मुस्लिम पक्ष के विरोध के बीच सर्वेक्षण अंततः मई 2022 में पूरा हुआ था. इसी दौरान हिंदू पक्ष ने मस्जिद परिसर के अंदर वजू के लिए बने तालाब में ‘शिवलिंग’ मिलने का दावा किया था, वहीं मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया था.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका पर गत 12 मई को इस कथित शिवलिंग का वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था, मगर सुप्रीम कोर्ट ने 19 मई को इस आदेश पर रोक लगा दी थी. अदालत ने इस मामले में दोनों पक्षों को सुने बगैर की जाने वाली किसी भी कार्रवाई को जल्दबाजी मानते हुए अपने अगले आदेश तक निचली अदालत के आदेश पर अमल नहीं करने को कहा था.