लोगों को तरह-तरह के पेन का शौक होता है. किसी को बॉल, जेल और रोलर पेन पसंद आते हैं तो कुछ लोग फाउंटेन पेन के शौकीन होते हैं. वहीं फाउंटेन पेन जो 80 और 90 के दशक में सबसे ज्यादा चलन में थे और कानपुर में बनने वाले इस फाउंटेन पेन का डंका सात समंदर पार तक बजता था. लेकिन जैसे-जैसे बॉल पेन, जेल पेन और रोलर पेन ने बाजार में अपनी बादशाहत कायम की देखते-देखते फाउंटेन पेन का बाजार सिमटता चला गया. शहर की कई इकाइयां तक बंद हो गईं, लेकिन अब एक बार फिर से फाउंटेन पेन के व्यवसाय को पंख लग रहे हैं.
दरअसल बीते 5 सालों बाद एक बार फिर से लोगों ने फाउंटेन पेन का इस्तेमाल करना शुरू किया है. भारत देश से ही नहीं बल्कि विश्व के लगभग 25 से अधिक देशों में कानपुर के बने फाउंटेन पेन और निब की डिमांड जबरदस्त बड़ी है. जिससे व्यापारियों के चेहरों पर भी मुस्कान है.
दुनिया भर में फाउंटेन पेन बनाने वाले सिर्फ चार देश है. जिसमें शामिल हैं जर्मनी, जापान, चाइना और भारत. चाइना में बनने वाले पेन के क्वालिटी बेहद खराब होती है. जिस वजह से उसको कम लोग ही पसंद करते हैं. वही जर्मनी और जापान में बनने वाले पेन बेहद महंगे होते हैं. ऐसे में भारत में बेस्ट क्वालिटी के पेनों का निर्माण होता है और इनके रेट की बात की जाए तो यह जर्मनी और जापान में तैयार होने वाले पेन से लगभग 5 गुना कम हैं. जिस वजह से पूरी दुनिया भारतीय फाउंटेन पेनों की दीवानी है.
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फाउंटेन पेन और निब की भारी डिमांड
फाउंटेन पेन निर्माता संदीप अवस्थी ने बताया कि कानपुर में 30 तरीके की निब बनाई जाती है. जो लगभग 25 देशों में सप्लाई की जाती है. इतना ही नहीं पूरे कंप्लीट बने पेन की भी सप्लाई विदेशों तक होती है. वही पेन की बड़ी बड़ी कंपनी जैसे कैमलिन, लग्जर, क्लिक, रेनॉल्ट, रागा, डेक्कन जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियों के फाउंटेन पेन में कानपुर में बनी निब का इस्तेमाल हो रहा है.