हाईकोर्ट की फटकार, जिला अदालतों में आदेश लिखे जाएँ साफ़-साफ़, नहीं तो माना जाएगा कदाचार !

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्ड पीठ ने एक मामले में दिए अहम आदेश के तहत पूरे प्रदेश के सभी जिला जजों को आदेश दिया कि वे कोर्ट के सभी रीडर्स/ पेशकारों को कोर्ट के आदेश ठीक से और स्पष्ट रूप से लिखने का निर्देश दें ।

कोर्ट ने कहा कि अदालत के रीडर्स व पेशकारों को कोर्ट के आदेश स्पष्ट रूप से लिखना चाहिए, और यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो यह कदाचार के रूप में माना जाएगा। जिसमे  संबंधित कर्मी के खिलाफ कानून के तहत विभागीय कारवाई करके उसे दंडित भी किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान ने यह अहम आदेश बाराबंकी की निचली अदालत में चल रहे केस के कुछ आदेशों पर गौर करते हुए दिया। कोर्ट कहा कि कुछ आदेश इतने अस्पष्ट लिखे गए थे कि पढ़ने लायक नहीं थे ।इसलिए कोर्ट ने प्रदेश के सभी जिला जजों को निर्देश दिया कि वे कोर्ट के सभी पाठकों/पेशकरों को कोर्ट के आदेश ठीक और स्पष्ट रूप से लिखने का निर्देश दें।

इस मामले में, एक महिला का केस बाराबंकी के सीजेएम की अदालत में चल रहा था। केस के जल्द निस्तारण की गुजारिश के साथ महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें निचली अदालत में चल रहे केस की ऑर्डर शीट भी पेश हुई। जिसे देखकर कोर्ट ने पाया कि आदेश बहुत ही अस्पष्ट व खराब लिखावट में लिखे गये थे।

जो पढ़ने योग्य नहीं थे। इसलिए, कोर्ट ने निर्देश दिया कि सभी आदेश पत्रक स्पष्ट रूप से लिखे जाने चाहिए और कहा कि यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो संबंधित कर्मी को इसका स्पष्टीकरण देना होगा, इसके बाद कार्रवाई करके दंडित किया जा सकता है।

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अदालत ने कोर्ट ने सीनियर रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि बाराबंकी समेत प्रदेश के सभी जिला न्यायाधीशों को इस आदेश की कॉपी अनुपालन के लिए भेजें। कोर्ट ने इस आदेश के साथ याचिका का निस्तारण करते हुए बाराबंकी के सीजेएम को निर्देश दिया कि याची के दहेज प्रताड़ना के आरोपों संबंधी केस का 9 माह में विचारण कर निस्तारण  किया जाय।