पश्चिम बंगाल विधानसभा की तीन सीटों पर होने वाले उपचुनाव के प्रचार का आज अंतिम दिन है। इन तीन सीटों में से सबसे वीआईपी भवानीपुर सीट पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के समर्थन में तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। उधर, ममता के खिलाफ चुनाव लड़ रही प्रियंका टिबरेवाल के पक्ष में बीजेपी ने भी कोई कसार छोड़ी नहीं है। मिली जानकारी के अनुसार, आज इस विधानसभा क्षेत्र में ममता बनर्जी अपने समर्थकों के साथ गली-गली में प्रचार करती नजर आएंगी। उधर बीजेपी के 80 दिग्गज नेता 80 जगहों पर पार्टी की उम्मीदवार प्रियंका के लिए प्रचार करेंगे।
ममता बनर्जी के लिए बेहद जरूरी है जीत
मिली जानकारी के अनुसार, भवानीपुर विधानसभा सीट पर चुनाव प्रचार करते हुए ममता बनर्जी अपने समर्थकों के साथ लोगों से वोट के लिए अपील करती नजर आएंगी। वहीं, ममता की मुख्य प्रतिद्वंदी प्रियंका टिबरेवाल के समर्थन में बीजेपी के 80 दिग्गज नेता चुनावी मैदान में दिखाई देंगे। बीजेपी की ओर से पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी, राज्य बीजेपी प्रमुख सुकांत मजूमदार, पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष, और पार्टी के नेता देबाश्री चौधरी भी चुनावी मैदान में उतरेंगे। वहीं अर्जुन सिंह और स्वप्न दासगुप्ता उन लोगों में शामिल हैं जो पार्टी के अभियानों में हिस्सा लेंगे।
यहां 30 सितंबर को उपचुनाव के लिए मतदान होगा। इस सीट से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी साल 2011 और साल 2016 में चुनाव जीत चुकी हैं। भवानीपुर सीट ममता बनर्जी का पुराना रहा है।
आपको बता दें कि इस साल अप्रैल-मई के विधानसभा चुनावों में टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी नंदीग्राम से चुनाव लड़ने के लिए अपनी पारंपरिक सी भबनीपुर को छोड़ दी थी। जिसके बाद उन्हें नंदीग्राम से हार का सामना करना पड़ा था। ममता बनर्जी को सुवेंदु अधिकारी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। सुवेंदु अधिकारी पहले टीएमसी में रहते हुए ममता बनर्जी के लिए काम कर चुके थे। हालांकि हार के बाद भी ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
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नियम के मुताबिक अगर कोई ऐसा व्यक्ति मुख्यमंत्री बनता है जो किसी सदन का सदस्य न हो तो ऐसे में उसे छह महीने के अंदर जीतकर विधानसभा पहुंचना होता है नहीं तो मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ता है। सीएम पद पर बने रहने के लिए ममता बनर्जी को 5 नवंबर तक विधानसभा के किसी एक सीट पर जीत दर्ज करनी होगी। क्योंकि संविधान राज्य विधानमंडल या संसद के गैर-सदस्य को केवल छह महीने के लिए चुने बिना मंत्री पद पर बने रहने की अनुमति देता है।