30 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण ने धरती पर जन्म लिया था। हर साल जन्माष्टमी को श्रीकृष्ण भगवान के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों में श्रीकृष्ण की महिमा को लेकर काफी कुछ कहा गया है। नन्हे कान्हा से लेकर द्वारकाधीश बनने तक उनकी कई लीलाओं का वर्णन किया गया है। लेकिन वास्तव में श्रीकृष्ण की कोई भी लीला सामान्य नहीं थी, उनकी हर लीला के पीछे कोई न कोई उद्देश्य छिपा होता था।
शास्त्रों में श्रीकृष्ण का रूप भी बहुत मनमोहक बताया गया है। मान्यता है कि कन्हैया हाथों में मुरली, सिर पर मोरपंख धारण करते थे। उनको गाय अत्यंत प्रिय थी और वे ब्रज में तमाम ग्वालों के साथ मिलकर गाय चराया करते थे। श्रीकृष्ण को माखनचोर भी कहा जाता है क्योंकि उन्हें माखन मिश्री बहुत पसंद था और बचपन में वे मटकी फोड़कर माखन चुराकर खाते थे। आइए जानते हैं श्रीकृष्ण की पसंदीदा चीजों और उनकी लीलाओं के छिपे उद्देश्य के बारे में।
बांसुरी
कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण को बांसुरी अत्यंत प्रिय थी और वे प्रेमपूर्वक मग्न होकर इतनी मधुर बांसुरी बजाते थे कि बांसुरी की धुन सुनकर लोग अपनी सुधबुध खो देते थे। लेकिन वास्तव में श्रीकृष्ण के बांसुरी बजाने का उद्देश्य कुछऔर था। दरअसल बांसुरी ख़ुशी और आनंद का प्रतीक है, इसका मतलब है कि चाहे हालात जो भी हों, आप हमेशा खुश रहें और मन को आनंदित रखकर दूसरों में भी खुशियां बांटें। जिस तरह कान्हा बांसुरी बजाकर खुद भी खुश रहते थे और दूसरों को खुशी देते थे।
इसके अलावा बांसुरी में तीन गुण होते हैं, जिनसे हर किसी को सीखने की जरूरत है। पहला बांसुरी में गांठ नहीं होती। इसका मतलब है कि गलत का विरोध बेशक करो, लेकिन किसी को लेकर मन में गांठ मत रखो, यानी बदले की भावना न रखो। दूसरा बांसुरी को जब आप बजाएंगे, वो तभी बजेगी, इसका मतलब है कि जब आपसे सुझाव मांगे जाएं तभी दें, फिजूल बोलकर अपनी एनर्जी व्यर्थ न करें। तीसरा जब भी बजती है मधुर ही बजती है। इसका सीधा सा अर्थ है कि जब भी बोलो तो वाणी इतनी मीठी हो, कि लोगों का मन मोह ले।
मोरपंख
मोरपंख में कई तरह के रंग समाहित होते हैं। ये रंग जीवन के हालात को दर्शाते हैं। मोरपंख का गहरा रंग दुख और कठिनाइयों, हल्का रंग सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक है। इसका मतलब है कि व्यक्ति को जीवन में सुख और दुख दोनों से गुजरना पड़ता है। लेकिन उसे दोनों ही स्थितियों में समान रहना चाहिए। इसके अलावा मोर एक मात्र ऐसा प्राणी है जो पूरे जीवन काल ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है। साथ प्रेमपूर्वक अपने आप में मस्त रहता है। ऐसे में मोरपंख परिशुद्ध प्रेम यानी प्रेम में ब्रह्मचर्य की महान भावना को प्रदर्शित करता है।
गाय
श्रीकृष्ण को गाय अति प्रिय थी। वो इसलिए क्योंकि गाय को गुणों की खान माना जाता है। गाय का गाय का मूत्र, गोबर, दूध, दही और घी को पंचगव्य कहा जाता है। सेहत के लिहाज से इन सभी चीजों को काफी अच्छा माना जाता है, वहीं पूजा पाठ में भी पंचगव्य को बेहद पवित्र माना गया है। इतना सब कुछ होने के बावजूद गाय कितनी उदार होती है। गाय के प्रति श्रीकृष्ण का प्रेम ये सिखाता है कि जीवन में आप चाहे कितने ही उच्च पद पर आसीन हों, कितने ही गुणवान हों, लेकिन अपने व्यक्तित्व में अहंकार को मत आने दें। हमेशा उदार रहें और दूसरों को स्नेह दें।
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माखन मिश्री
अपने बाल्यकाल में श्रीकृष्ण माखन चुराकर खा जाते थे। वास्तव में वो उनका अन्याय के प्रति विरोध था। दरअसल उस समय कंस लोगों को प्रताड़ित करने के लिए टैक्स के रूप में लोगों से ढेर सारा दूध, माखन, घी आदि वसूला करता था। श्रीकृष्ण इस अन्याय का विरोध करने के लिए अपने ग्वालों के साथ मिलकर माखन की मटकी फोड़ देते थे और सारे ग्वालों के साथ मिलकर खा लेते थे क्योंकि वे ब्रज के लोगों की मेहनत का हकदार वहां के लोगों को मानते थे। इसके अलावा मिश्री में एक गुण होता है कि जब वो माखन में मिलती है तो उसकी मिठास माखन के कण कण में पहुंच जाती है। हमें भी मिश्री के समान अपना व्यवहार बनाना चाहिए कि जब भी किसी से मिलें तो अपने गुणों को उसी रग रग में समाहित कर दें।