यूपी में कल्याण सिंह के निजी संबंधों को लेकर पार्टी के कई नेता नाराज थे। आपसी लड़ाई तो थी ही, लेकिन वह किसी की परवाह नहीं कर रहे थे। सबके खिलाफ ओपन रिवोल्ट कर दिया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से रिश्ते खराब कर लिए, तो मुख्यमंत्री पद से हटाकर उनको केंद्र में मंत्री बनाने का प्रस्ताव देने के कारण पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी से रिश्ते खराब हो गए थे। यही नहीं, अटल बिहारी वाजपेयी की सार्वजनिक आलोचना करने के बाद 1999 में उनको भाजपा से निकाल दिया गया था। हालांकि बीजेपी में वापसी के बाद उन्होंने भावुक होते हुए कहा था, ‘मेरी इच्छा है कि मेरा शव भी भारतीय जनता पार्टी के झंडे में लिपट कर श्मशान भूमि की तरफ जाए।’
वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव उस दौर को याद करते हुए कहते हैं कि लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयी को नामांकन करना था। बेगम हजरत महल पार्क में कार्यक्रम था। उस कार्यक्रम में बीजेपी नेता लालजी टंडन, कलराज मिश्र, राजनाथ सिंह और तत्तकालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह मौजूद थे। बाकी नेताओं का संबोधन हुआ, लेकिन कल्याण सिंह को मौका नहीं दिया गया। कल्याण सिंह को उस प्रकरण को भूलने मे वक्त लगा।
भाजपा से दूरी के बाद बना डाला राष्ट्रीय क्रांति दल
पार्टी से जाने के बाद कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय क्रांति दल नाम से अपनी पार्टी बना ली और 2002 विधानसभा चुनाव में शामिल हुए। इस दौरान उनकी पार्टी को चार सीटों पर सफलता मिली और 70 सीटों से अधिक पर उन्होंने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया। उन्होंने अपने पूरे प्रभाव का इस्तेमाल भाजपा के खिलाफ किया। इसके बाद 2003 में वे सपा सरकार में शामिल भी हुए, लेकिन ये दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चली और 2004 में वे फिर भाजपा में वापस आ गए। यूपी में भाजपा को काफी नुकसान हुआ था, वो वापस पार्टी में आए। पर तब तक सब कुछ बदल चुका था।
2007 में जनता ने नहीं लगाया गले
2007 में उनको एक बार फिर मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने चुनाव लड़ा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कल्याण सिंह ने एक बार फिर अविश्वसनीय और हैरान करने वाला कदम उठाया। उन्होंने 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के साथ हाथ मिला लिया। समाजवादी पार्टी के सहयोग से लोकसभा में सांसद हो गए। फिर उन्होंने यूपी विधानसभा के 2012 चुनाव में अपनी पार्टी से ही 200 कैंडिडेट उतार दिए। एक भी सीट नहीं मिली। यही नहीं, अपने घर अतरौली में भी दुर्गति हो गई। अतरौली से इनकी बहू प्रेमलता हारीं। यहीं से कल्याण 8 बार जीते थे।जबकि डिबाई से इनके बेटे राजू भैया उर्फ राजवीर सिंह भी हार गए। ना भाजपा को फायदा हो रहा था ना कल्याण सिंह को।
भाजपा में वापसी के बाद कही थी ये बात
2013 में एक बार फिर कल्याण सिंह की वापसी हुई। जन क्रांति पार्टी का बीजेपी में विलय हुआ। उनको इस बात का एहसास था कि उन्होंने भाजपा को कितना बुरा-भला कहा है, इसलिए उन्होंने समय के फेर को जिम्मेदार बताते हुए भावुकता के भरा भाषण दिया था। कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपने बचपन के रिश्तों की याद दिलाई और रो पड़े थे। उन्होंने कहा था, ‘संघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्कार मेरे रक्त की बूंद-बूंद में समाए हुए हैं, इसलिए मेरी इच्छा है कि जीवनभर मैं भाजपा में रहूं और जब जीवन का अंत होने को हो, तब मेरी इच्छा है कि मेरा शव भी भारतीय जनता पार्टी के झंडे में लिपट कर श्मशान भूमि की तरफ जाए।’ अब वे चिरनिद्रा में हैं और बीजेपी के झंडे में लिपटकर ही श्मशान भूमि की तरफ जाएंगे।
कल्याण सिंह: प्रखर हिन्दूवादी से वर्ग विशेष के नेता तक की राजनीतिक यात्रा
जेपी नड्डा ने पूरी की इच्छा
बहरहाल, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आज सुबह कल्याण सिंह की इच्छा के अनुरूप बीजेपी के झंडे को उनके पार्थिव शरीर पर ओढ़ा दिया। इस दौरान यूपी भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह भी मौजूद थे। यही नहीं, भारतीय जनता पार्टी के ध्वज के अलावा कल्याण सिंह के पार्थिव शरीर पर पूर्व में राष्ट्रीय ध्वज भी चढ़ाया गया था।