भारतीय जीवन और वांग्मय श्रुति परम्परा पर आधारित है, यहां लोक में कथाएं और अंतरकथाएं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में सुनने की परंपरा चली आ रही प्राचीन व्यास व्यवस्था से स्थान्तरित होती रहती हैं। यही कारण है कि पुराण साहित्य में जो भारत का प्राचीन इतिहास मिलता है वह भी कथाओं की शक्ल में ही हमें दिखता है। इन्हीं में दर्शाया गया है कि कैसे अब तक करोड़ों मनुष्यों के साथ जीव-जन्तुओं को अपना आश्रय एवं जीवन देनेवाली पुण्य सलिला नदी ”गंगा” को हिमाचल की आकाश छूती चोटियों से निकालकर जमीन पर यदि कोई लेकर आया है तो वह भारत के पुरातन वैज्ञानिक ”ऋषि भागीरथ” थे।
ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा जमीन पर आईं
भारतीय पंचाग तिथि देखने की प्राचीन ज्योतिष आधारित काल गणना से इसे देखा जाए तो वह आज का ही पावन दिन था। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि, जिस दिन गंगा पहाड़ों की कई किलोमीटर की यात्रा करते हुए जमीन पर आईं और गंगा सागर तक कई मील की यात्रा करते हुए सतत जीवों का उद्धार करती चली जा रही हैं। इसीलिए ही आज गंगा दशहरा का पावन पर्व भारत वर्ष में हर साल मनाते हुए ‘मां गंगा’ को श्रद्धा के साथ नमन करने की परम्परा सदियों से चली आ रही है, जिसमें दान-पुण्य का गंगा नदी में स्नान के साथ विशेष महत्व भारतीय ऋषि परम्परा ने निर्धारित किया है।
गंगा को धरती पर लाने राजा ”सगर” की खप गईं कई पीढ़ियां
गंगा से जुड़ी इस पौराणिक कथा को यदि हम आधुनिक संदर्भों में देखें तो सबसे पहले महाराज सगर ने इसके लिए व्यापक कार्य किया। उसके बाद उनके पौत्र अंशुमान ने इस कार्य को आगे बढ़ाया। अंशुमान, राजा सगर की साठ हजार प्रजा को लेकर सभी ओर इस पतित पावनी गंगा को भूमंडल पर खोजकर लाने का प्रयास करते रहे, यहां तक कि वे पृथ्वी को खोदकर पाताल लोक तक चले गए, लेकिन वे भी असफल रहे।
उसके बाद इस कार्य को उनकी पीढि़यों में आगे बढ़ाया जाता रहा। फिर महाराज दिलीप का जीवन भी इस कार्य में स्वाहा हो गया, उसके बाद पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया, सही योजना बनाई और आगे बढ़े, फिर परिणाम भी सभी के सामने आया। गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर मुड़ीं और आज हमारे सामने जीवन्त हैं ।
कई रोगों को नाश करने की क्षमता गंगा के पानी में
सनातन हिन्दू धर्म कहता है कि गंगा पतित पावनी है अर्थात गंगा में स्नान करने से पापों का नाश होता है । प्राचीन की क्यों आधुनिक मान्यता भी यही कहती है कि कई रोगों को नाश करने की क्षमता गंगा के पानी में है। आज उदाहरण स्वरूप देखा भी जा सकता है कि पीढ़ियाँ गुजर जाती हैं लेकिन सनातनी घरों में गंगा का पानी रखा हुआ है। चरणामृत, पूजा और मृत्यु होने या इससे पूर्व उसकी बूंदें मुंह में डालने के लिए, जिससे कि हर कोई पवित्र हो जाए। संपूर्ण भारतीय वांग्मय वेद, पुराण, रामायण, महाभारत सभी जगह गंगा की महिमा दिखाई देती है।
अंग्रेज भी ले जाते थे अपने साथ गंगा जल
इतिहास में यह बहुत दूर की बात नहीं है जिसमें बताया गया है कि कैसे अंग्रेज इंग्लैण्ड जाते समय पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी लेकर जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था, जबकि यही अंग्रेज इंग्लैण्ड से चलते वक्त जो पानी लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था।
गंगा के पानी में मर जाता है हैजे का बैक्टीरिया
ब्रिटिश भारत में आगरा में पदस्थ डाक्टर एमई हॉकिन ने वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध भी किया था कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी में डालने पर कुछ ही देर में मर जाता है। वैज्ञानिकों ने यह एक मत होकर स्वीकार्य किया है कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को मारने की अद्भुत क्षमता है। इस ब्रिटिश वैज्ञानिक एमई हॉकिन के बाद से लेकर गंगा के पानी पर अनेक शोध हो चुके हैं। जहां तक पानी में इंसानी अतिक्रमण नहीं हुआ है, वहां तक पानी आज भी पूरी तरह से शुद्ध और वैक्टेरिया नाशक है।
पानी में है ई कोलाई को मारने की क्षमता
लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई के निदेशक रहे डॉ. चंद्र शेखर नौटियाल ने एक अनुसंधान में प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ई कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता आज भी बरकरार है। इनका यह परीक्षण ऋषिकेश और गंगोत्री के गंगा जल में किया था। उन्होंने परीक्षण के लिए तीन तरह का गंगा जल लिया, जिसमें से एक ताजा, दूसरा आठ साल पुराना और तीसरा सोलह साल पुराना था। तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया डाला और पाया कि ताजे गंगा पानी में बैक्टीरिया तीन दिन, आठ दिन पुराने गंगाजल में एक हफ्ते और सोलह साल पुराने जल में 15 दिन तक ही जीवित रह पाया यानी कि उसे हर हाल में गंगा जल में मृत होना पड़ा।
गंगा जल में है जड़ी-बुटियों का स्पर्श
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रूड़की के निदेशक रहे डॉ. आरडी सिंह का कहना भी यही है कि हरिद्वार में गोमुख गंगोत्री से आ रही गंगा के जल की गुणवत्ता पर इसलिए कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह अनेक जीवनदायिनी उपयोगी जड़ी-बुटियों के ऊपर से स्पर्श करता हुआ आता है। पानी में आई इस वैक्टीरियारोधी अद्भुत क्षमता को लेकर सभी का एक स्वर में मानना है कि गंगा के पानी में रोगाणुओं को मारने की यह अद्भुत क्षमता गंगोत्री और हिमालय से आती है। गंगा जब हिमालय से आती है तो कई तरह की मिट्टी, कई तरह के खनिज, कई तरह की जड़ी बूटियों से मिलती मिलाती है। जिसके परिणाम से कुछ ऐसा मिश्रण बनता है जो जीवन के लिए शक्ति देनेवाला बन जाता है।
गंगा के जल में है शक्तिशाली बैट्रिया फोस नामक बैक्टीरिया
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मुकेश कुमार शर्मा भी गंगा जल खराब नहीं होने के कई वैज्ञानिक कारण गिनाते हैं। एक यह कि गंगा जल में बैट्रिया फोस नामक एक बैक्टीरिया पाया गया है, जो पानी के अंदर रासायनिक क्रियाओं से उत्पन्न होने वाले अवांछनीय पदार्थों को खाता रहता है। इससे जल की शुद्धता बनी रहती है। दूसरा गंगा के पानी में गंधक की प्रचुर मात्रा मौजूद रहती है, इसलिए भी यह खराब नहीं होता।
गंगा जल में है गंदगी साफ करने की 20 गुना अधिक क्षमता
शोध बताते हैं कि गंगा नदी की दूसरी नदियों के मुकाबले गंदगी को हजम करने की क्षमता पंद्रह से बीस गुना अधिक है, जहां अन्य नदियों में पानी की गंदगी 15-20 किलोमीटर के बाद साफ होती है वहीं गंगा नदी एक किलोमीटर के बहाव में उस गंदगी को साफ करने की क्षमता रखती है। कुल शोध का निष्कर्ष रहा कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले जीवाणुओं को मार देने की क्षमता है, यह अनुसंधान भविष्य के लिए इस आशा को भी जागृत करने वाला रहा है कि यदि गंगा के पानी से इस चमत्कारिक तत्व को अलग कर लिया जाए तो बीमारी पैदा करने वाले उन जीवाणुओं को नियंत्रित किया जा सकता है, जिन पर अब एंटी बायोटिक दवाओं का असर नहीं होता है। इस पर अभी वैज्ञानिक काम कर रहे हैं।
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गंगा करती है 2510 किलोमीटर का सफर तय
दरअसल, गंगा उत्तराखंड के गोमुख हिमनद के निकट गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है और लगभग 2510 किलोमीटर का सफर तय करती है और बांग्लादेश में प्रवेश करती है, यहां गंगा को पद्मा कहा जाता है। गंगा नदी पश्चिम बंगाल में विश्व प्रसिद्ध सुंदरवन का डेल्टा का निर्माण करती है। कहना होगा कि आज के दिन धरती पर गंगा को लाने के लिए आगे भी ऐसे ही ऋषि भागीरथ को पीढ़ियां याद करती रहेंगी।