धर्म नगरी काशी में शीतलाष्टमी पर सोमवार को दशाश्वमेध घाट स्थित शीतला माता मंदिर में श्रद्धालु महिलाओं की दर्शन पूजन के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। भोर से ही शीतलाधाम में महिलाएं दर्शन पूजन के लिए पहुंचने लगी। दरबार में कतारबद्ध महिलाओं ने अपनी बारी आने पर पूरी श्रद्धा से दर्शन पूजन किया।
इस दौरान महिलाओं ने माता रानी से कोरोना महामारी से निजात दिलाने और घर परिवार में सुख शान्ति की अर्जी लगाई। इसके बाद घर आकर महिलाओं ने बसियौरा प्रसाद बांटने के बाद खुद भी ग्रहण किया।
माता रानी से महामारी से मुक्ति दिलाने की गुहार, घर में बसियौरा प्रसाद का वितरण
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी-अष्टमी पर रविवार को श्रद्धालु महिलाओं ने घर में साफ सफाई के बाद परिवार में सुख शान्ति,निरोग जीवन के लिए माता रानी का व्रत रखकर सफाई से प्रसाद बनाकर विधिवत पूजन अर्चन किया। माता को बासी भोजन का भोग मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल, भात बनाने के बाद रसोईघर की दीवार पर पांचों अंगुली घी में डुबोकर छापा लगाया। उस पर रोली और चावल चढ़ाकर माता रानी के गीत गाये।
सुबह दशाश्वमेध घाट पर पहुंची महिलाओं ने शीतलाधाम में दर्शन पूजन के बाद घर आकर बसियौरा का प्रसाद अपने परिवार में बांट कर परिजनों के साथ मिलजुल कर इसे ग्रहण किया। इसके पहले शीतलाधाम में महंत पं.शिव प्रसाद पाण्डेय के आचार्यकत्व में ब्राह्मणों ने माता रानी का श्रृंगार किया। विग्रह को पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराने के बाद माता को नूतन वस्त्र व आभूषण से अलंकृत किया गया। फिर षोडशोपचार पूजन हुआ। भोग आरती के बाद मंदिर का पट अलसुबह से ही श्रद्धालुओं के लिए खुल गया।
दशाश्मेध घाट पर नियमित गंगा आरती कराने वाली संस्था गंगोत्री सेवा समिति के सचिव दिनेश कुमार दुबे ने बताया कि शीतला अष्टमी पर माता के दर्शन पूजन से महामारी के साथ श्रद्धालुओं के दुख, क्लेश और शोक दूर होता है। चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी, वैशाख, जेष्ठ और आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी पर माता के पूजन अर्चन का विधान है। इन चारों महीने के चार दिन का व्रत करने से शीतला जनित बीमारियों से छुटकारा मिलता है। शीतला माता आदि शक्ति दुर्गा का ही रूप है। इनकी पूजा से मानव आध्यात्मिक रूप से मजबूत होता है। वहीं शारीरिक और मानसिक रोग भी नहीं होता।
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काशी में मान्यता है कि गर्मी के दिनों में शरीर में अनेक प्रकार के पित्त विकार होता है। शीतला अष्टमी का व्रत रखने से छोटी माता का प्रकोप नहीं होता। शीतला सप्तमी और शीतलाष्टमी व्रत चेचक रोग से बचाने के लिए रखा जाता है। शीतला माता की महिमा का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। शीतला माता के हाथ में झाड़ू और कलश है। माता के एक हाथ में झाड़ू होने का अर्थ लोगों को सफाई के प्रति जागरुक करना है। दूसरे हाथ के कलश में सभी देवी-देवताओं का वास रहता है। इनका वाहन गर्दभ यानि गधा है।