उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले ब्राह्मण वोटों की नाराजगी दूर करने के लिए भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व काफी सक्रिय हो गया है। केंद्रीय मंत्री और यूपी चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान के साथ रविवार को हुई ब्राह्मण नेताओं की बैठक के बाद सोमवार को पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ नेताओं की मुलाकात हुई। नड्डा के साथ बैठक के दौरान इस समुदाय से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई। बताया जा रहा है कि इस बैठक को बुलाने का मकसद यह था कि यूपी में ब्राह्मण वर्ग की नाराजगी को कैसे दूर किया जाए। सूत्रों के अनुसार इस बैठक में निर्णय लिया गया कि सभी ब्राह्मण नेता अपने-अपने क्षेत्रों में जाकर ब्राह्मण वर्ग के प्रतिष्ठित लोगों से मिलेंगे और जनता को भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार के ब्राह्मणों के लिए किए गए कार्यों की जानकारी देंगे।
अयोध्या-काशी कॉरिडोर का जिक्र जरूरी
इस बात पर जोर दिया गया कि अयोध्या और काशी कॉरिडोर के मुद्दों को जनता तक पहुंचाने के साथ-साथ लव जिहाद और सवर्णों को आरक्षण जैसे मुद्दे भी लोगों तक पहुंचाएं जाएं। राज्य के एक नेता ने कहा कि पार्टी प्रमुख धार्मिक स्थलों को एक धार्मिक सर्किट के हिस्से के रूप में पेश कर रही है जो आस्था के केंद्र के साथ-साथ आर्थिक विकास का भी केंद्र बनेंगे। अयोध्या मंदिर के अलावा वाराणसी का काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, मथुरा का बांके बिहारी मंदिर, मिर्जापुर का विंध्यवासिनी मंदिर और गंगा एक्सप्रेसवे सर्किट का हिस्सा हैं। प्रदेश में धार्मिक महत्व के इन स्थलों को जोड़ा जाएगा। इस तरह ब्राह्मण समझेंगे कि इस सरकार ने उनके हितों की रक्षा के लिए क्या-क्या किया है? उन्होंने कहा ‘ब्राह्मण वोट बैंक चिंता का विषय है और पार्टी गुस्से को कम करने पर काम कर रही है।’
ब्राह्मणों को साधने के लिए समिति का गठन
पार्टी ने भाजपा के राज्यसभा के मुख्य सचेतक शिव प्रताप शुक्ला की अध्यक्षता में ब्राह्मणों को साधने के लिए एक समिति बनाई है। समिति में पूर्व राष्ट्रीय सचिव अभिजीत मिश्रा, गुजरात के सांसद राम भाई मोकारिया और महेश शर्मा शामिल हैं जो समुदाय के ब्राह्मण से मिलकर उनके मुद्दों को समझने की कोशिश करेंगे। पार्टी के नेता के मुताबिक ‘हालांकि भाजपा सरकार ने समाज के सभी वर्गों के लिए अथक प्रयास किया है, लेकिन चुनाव के कारण ब्राह्मणों के बीच अधिक आक्रामक प्रचार करने की आवश्यकता महसूस की गई है।’
योगी के विरोधी को ही बनाया समिति प्रमुख
बताया जा रहा है कि भाजपा ने जिस शिव प्रताप शुक्ला की अध्यक्षता में समिति बनाई है वे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के धुर विरोधी माने जाते हैं। वे सीएम योगी के गोरखपुर से ही आते हैं और प्रदेश में एक प्रभावी ब्राह्मण चेहरा माने जाते हैं। वे लगातार चार बार 1989,1991,1993 और 1996 में विधायक और यूपी में मंत्री भी रहे हैं। कहा जाता है कि 2002 के विधानसभा चुनाव में योगी ने उन्हें चुनाव हराने के लिए उनके खिलाफ अपना प्रत्याशी खड़ा किया था। तब से दोनों के रिश्ते में खटास है।
विकास दुबे एनकाउंटर ने धारणा मजबूत कर दी?
पार्टी की यह सारी कवायद उस धारणा के कारण हो रही है कि यूपी में ब्राह्मण भाजपा से नाराज है। माना जाता है कि पुलिस एनकाउंटर में गैंगस्टर विकास दुबे की मौत ने यह धारणा मजबूत कर दी। लंबे समय से कहा जा रहा है कि यूपी के करीब 10 फीसदी ब्राह्मण योगी सरकार से नाराज हैं और ब्राह्मण वर्ग की ओर से लगातार आवाज आ रही है कि यूपी में सरकार ने ब्राह्मण समाज के लिए कुछ नहीं किया। दूसरी तरफ ब्राह्मणों का यह आरोप रहा कि अपनी ही सरकार ने ब्राह्मणों का ‘उत्पीड़न’ किया है, जिसके बाद भाजपा बचाव की मुद्रा में आ गई है।
क्या सच में भाजपा से नाराज हैं ब्राह्मण मतदाता?
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के निदेशक संजय कुमार के मुताबिक उत्तर प्रदेश में ऐसी सोच चल रही है, लोगों को ऐसा महसूस हो रहा है और जो बिल्कुल निराधार नहीं है कि ब्राह्मण मतदाताओं में भाजपा के प्रति नाराजगी है। खास तौर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर नाराजागी का माहौल ज्यादा दिखाई दे रहा है। चर्चा चल रही है कि कानून व्यवस्था सुधारने के बहाने दबंग ब्राह्मणों पर अन्याय किया गया है, ज्यादतर ब्राह्मणों के साथ भेदभाव किया गया है। इसलिए भाजपा अपने नाराज वोट बैंक को साधने में लगी है।
भाजपा के समर्थक माने जाते हैं ब्राह्मण मतदाता
मंदिर की राजनीति के बाद से ब्राह्मणों को भाजपा के समर्थक के तौर पर देखा जाता है जो बड़े पैमाने पर भाजपा को वोट देते रहे हैं। लेकिन अब पार्टी डर यह है कि कहीं यह नाराज ब्राह्मण वर्ग इस बार किसी और पार्टी में न जाए, इसीलिए उन्हें मनाने की कवायद तेज कर दी गई है। इसी रणनीति के तहत पीएम मोदी भी माधव प्रसाद त्रिपाठी से लेकर श्रीपति मिश्र तक का नाम ले चुके हैं। प्रधान मंत्री का काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन करने की बात हो या दिवाली के दौरान अयोध्या यात्रा की, यह सब ब्राह्मणों को ही साधे रखने के प्रयासों का हिस्सा है।
इसी रणनीति के तहत ब्राह्मणों का गुस्सा कम करने के लिए कुछ समय पहले कांग्रेस के पूर्व नेता जितिन प्रसाद को भगवा पार्टी में शामिल किया गया और उन्हें राज्य में मंत्री बनाया गया। माना जा रहा है कि इसी वजह से लखीमपुरी खीरी हिंसा मामले में मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा के पिता गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी जो इसी वर्ग से आते हैं, विपक्ष के लगातार हमलों के बावजूद अभी भी पार्टी ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ कार्रवाई कर सरकार ब्राह्मण वर्ग को और नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती है।
यूपी में ब्राह्मण कितने अहम हैं?
उत्तर प्रदेश की राजनीति को करीब से जानने वाले कहते हैं पहले ओबीसी, दलित और मुस्लिम वोट बैंक पर पार्टियों की नजर ज्यादा हुआ करती थी, लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है, 2022 के चुनाव के केंद्र में ब्राह्मण रहने वाले हैं। यूपी चुनावों में जाति ने हमेशा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यूपी में ब्राह्मण मतदाता जाटवों और यादवों के बाद चुनाव का एक महत्वपूर्ण कारक हैं। ‘ब्राह्मण वोट बैंक’ लगभग एक दर्जन लोकसभा और 50 से अधिक विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
पूर्वी यूपी के एक महत्वपूर्ण हिस्से में इस समुदाय का बोलबाला है। गोरखपुर से वाराणसी तक, जिसमें देवरिया और बलिया जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इसलिए ब्राह्मणों को साधे रखना हर पार्टी की मजबूरी है। 2022 के चुनाव को ध्यान में रखकर हर राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों पर अधिक ध्यान दे रही है।
मायवती-अखिलेश ने भी इसी कोशिश में
इसी साल सितंबर में बसपा प्रमुख मायावती ने लखनऊ में प्रबुद्ध सम्मेलन में ब्राह्मणों को लुभाने के लिए यह वादा किया कि यदि प्रदेश में बसपा की सरकार बनती है तो उनका ध्यान रखा जाएगा। ब्राह्मण मतदाताओं को लुभाने के लिए बसपा ने जगह-जगह सम्मेलन करके अपनी पूरी ताकत झोंक दी। बसपा ने 23 जुलाई को अयोध्या में ‘प्रबुद्ध वर्ग के सम्मान में संगोष्ठी’ का भी आयोजन किया था।
इसी तरह समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव के नेतृत्व में 22 अगस्त से जिला स्तरीय ब्राह्मण सम्मेलन के जरिए ब्राह्मण मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश शुरू की। अखिलेश पार्टी के पांच बड़े ब्राह्मण नेताओं से मिलकर चुनाव की रणनीति पर मंथन करते नजर आए। कहा जा रहा है कि कांग्रेस भी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर एक ब्राह्मण चेहरे को पेश करने का विकल्प तलाश रही है।
संजय कुमार के मुताबिक सपा-बसपा जैसी पार्टियों को लग रहा है कि अगर वे नाराज हैं तो यह उन्हें लुभाने का यह सुनहरा अवसर है। दोनों पार्टियां ब्राह्मणों को यह एहसास दिला रही हैं कि भाजपा ने आपके साथ अन्याय किया है तो इसलिए हम आपकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं। इस बार ब्राह्मण वोट को लेकर अखिलेश और मायावती एक-दूसरे से मुकाबला कर रहे हैं।
यूपी में ब्राह्मणों का कई सीटों पर प्रभाव
2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 12 प्रतिशत जाटव हैं। जाटवों के बाद ब्राह्मण दूसरे स्थान पर हैं। इनकी आबादी लगभग 10 प्रतिशत है। कुल जनसंख्या में ब्राह्मणों की हिस्सेदारी के मामले में, उत्तर प्रदेश दो पहाड़ी राज्यों उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के बाद तीसरे स्थान पर आता है। जो राज्य की राजनीति पर पर्याप्त प्रभाव डालता है। हाल के कुछ सालों में भाजपा के प्रति उनका झुकाव जबरदस्त तरीके से बढ़ा है।
लोकनीति और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के अध्ययन के मुताबिक 2004 तक आधे से अधिक ब्राह्मण मतदाताओं ने हमेशा भाजपा को वोट दिया। हालांकि, 2007 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए ब्राह्मणों का समर्थन 40 प्रतिशत से कम हो गया। इस साल मायावती ने बहुमत हासिल किया था।
लोकनीति और सीएसडीएस के आंकड़ें बताते हैं कि 2014 के बाद समीकरण फिर बदल गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में 72 फीसदी और 2019 के लोकसभा चुनाव में ब्राह्मणों के 82 फीसदी वोट भाजपा को मिले थे। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में 80 फीसदी ब्राह्मणों ने भाजपा को वोट किया। इन तीन चुनावों के बाद उत्तर प्रदेश में एक तस्वीर साफ हो गई कि ब्राह्मण वोट भाजपा के लिए हैं, यादव वोट सपा के लिए हैं और जाटव वोट बसपा के लिए हैं।
संजय कुमार का मानना है कि उनका कहना है कि हाल के वर्षों में समुदाय का भरोसा कांग्रेस से हटकर भाजपा की ओर हो गया है। अगर भाजपा 2022 में 2017 को दोहराना चाहती है तो उसे ब्राह्मण समर्थन बरकरार रखने की जरूरत निश्चित तौर पर पड़ेगी।