गंगा के घर यानी गंगोत्री में इन दिनों आस्था, उल्लास और उमंग की गंगोत्री के दर्शन हो रहे हैं। मौसम बेहद खुशगवार है। प्रकृति मानो अपने संपूर्ण सौंदर्य के साथ आमंत्रित कर रही है। सदानीरा गंगा अपने वेग से बह रही है। देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालुओं के मुंह में सिर्फ एक जयघोष है-हर हर गंगे। यानी गंगा में डुबकी मारकर मोक्ष की राह आसान बना लेने की तमन्ना हर यात्री के चेहरे पर साफ दिखाई देती है।
कोरोना की दुखद हकीकत से उबर कर दो साल में यह पहला मौका होगा, जबकि देश के हर प्रांत का यात्री यहां पहुंच रहा है। यात्रा से साल भर अपनी आजीविका का जुगाड़ करने वाले कारोबारियों के चेहरों पर इस बार थोड़ा सुकून है लेकिन अफसोस इस बात का भी है कि काश 18 सितंबर से पहले ही यात्रा पूरी तरह खुल जाती।
गंगोत्री धाम के कपाट इस बार अक्षय तृतीया के मौके पर 15 मई को खुले थे। पिछली बार की तरह ही यात्रा इस बार भी किस्तों में खुली है। पहले सिर्फ पुजारियों की ही धाम में मौजूदगी रही। फिर यात्रियों की एक तय संख्या के साथ यात्रा संचालित हुई। कानूनी पेंच से निकलकर 18 सितंबर से ये स्थिति बनी, जब यात्रियों के लिए कोरोना जांच और निश्चित संख्या की पाबंदी हटा दी गई। इसके बाद से यात्रा अच्छे से चल रही है, हालांकि यह तथ्य भी अपनी जगह है कि यात्रा के लिए अब बहुत ज्यादा दिन शेष नहीं रह गए हैं। पांच नवंबर को गंगोत्री धाम के कपाट बंद हो जाएंगे और शीतकाल के लिए मां गंगा की गद्दी पास के मुखबा गांव में आ जाएगी।
गंगोत्री में इस बार अभी तक पहुंचे यात्रियों की संख्या 25 हजार से पार जा चुकी है। 18 अक्टूबर को भारी बारिश के कारण यात्रा एक-दो दिन के लिए प्रभावित हुई, लेकिन उसने फिर से गति पकड़ ली है। रोजाना दो से ढाई हजार यात्री गंगोत्री धाम पहुंच रहे हैं। धाम में त्योहारी माहौल है। पर्यटन के कारोबार से जुडे़ विजय प्रसाद नौटियाल बताते हैं कि दो साल में पहली बार उन्हें धाम में देश के विभिन्न प्रदेशों के श्रद्धालु इतनी बड़ी संख्या में दिखाई दे रहे हैं। साधु-संत समाज वैसे, तो खुश है, लेकिन गंगोत्री धाम में सीवरेज सिस्टम को लेकर उनमें नाराजगी दिखती है।
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पूनग गिरी महाराज कहते हैं कि गंगा के उद्गम स्थान पर ही उसे प्रदूषित करने का इंतजाम कर दिया गया है। वह सरकार से इस संबंध में उचित कदम उठाने की मांग करते हैं। गंगोत्री धाम में चल रहे निर्माण कार्यों की उचित मॉनीटरिंग की भी वह जरूरत बताते हैं। सखी महाराज भी इससे सहमत हैं।