हिंदी सिनेमा के सबसे लोकप्रिय खलनायक प्राण ने अपने कैरियर की शुरुआत में नायक की भूमिकाएं की थीं, किंतु उन्हें हीरोइन के साथ पेड़ों के इर्द-गिर्द नाचने-गाने में बेहद झिझक होती थी। इससे बचने का तब उन्हें एक ही तरीका सूझा और वह था खलनायक बन जाना, लेकिन गीतों से इस तरह घबराने वाले प्राण के ऊपर हिंदी फिल्मों के कुछ सबसे लोकप्रिय और यादगार गीत फिल्माए गए हैं। इनमें सबसे यादगार गीत है फिल्म उपकार (1967) का- कसमें वादे प्यार वफा… सब बाते हैं बातों का क्या…। यह फिल्म और यह गीत उनका जीवन बदलने वाला साबित हुआ। वे खलनायक से चरित्र अभिनेता के रूप में प्रतिष्ठित हुए। इंदीवर द्वारा लिखे इस गीत को कल्याणजी-आनंद जी की जोड़ी ने संगीतबद्ध किया था। जब उन्हें यह पता चला कि यह गीत फिल्म में लंगड़े मलंग चाचा का किरदार कर रहे प्राण पर फिल्माया जाएगा तो उन्होंने मनोज कुमार जो कि फिल्म के निर्माता निर्देशक थे से इसे किसी और पर फिल्माने का अनुरोध किया, लेकिन मनोज कुमार नहीं माने। किशोर कुमार ने जब सुना यह प्राण पर फिल्माया जाएगा तो उन्होंने भी इसे गाने से मना कर दिया, यहां तक कि प्राण के स्वयं कहने पर भी वे तैयार नहीं हुए। अंत में यह गाना मन्नाडे से गवाया गया और उन्होंने इसे ऐसे भाव-विभोर होकर गाया कि यह गीत उनके ‘अमर गीतों’ में शामिल हो गया।
इसकी देशव्यापी लोकप्रियता के कारण मन्नाडे को पक्का विश्वास था कि इस गीत के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार अवश्य मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ जिसका दुख उन्हें ताउम्र रहा। इसके बाद जंजीर (1973) में प्राण पर फिल्माया गया गाना- यारी है ईमान मेरा… यार मेरी जिंदगी…, उनके कैरियर में मील का पत्थर साबित हुआ। गुलशन बावरा द्वारा लिखित इस गीत को भी कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में मन्नाडे ने ही गाया था। इस फिल्म में प्राण ने पठान दादा “शेर खान” की भूमिका की थी। फ़िल्म की शूटिंग भी इसी गीत से शुरू हुई थी। पहले तो प्राण ने यह गीत फिल्माने से मना कर दिया, लेकिन फिल्म के निर्देशक प्रकाश मेहरा द्वारा यह समझाने पर कि यह गीत कोई मनोरंजक गीत नहीं बल्कि कहानी का हिस्सा है और फिल्म का नायक (अमिताभ बच्चन ) जो अत्यंत गंभीर है पहली बार इसी गीत के दौरान हंसेगा तो वे तैयार हो गए।
इसी वर्ष प्रदर्शित फिल्म “धर्मा” में उन पर फिल्माई गई कव्वाली, “राज की बात कह दूं तो जाने महफिल में फिर क्या हो.., हिंदी फ़िल्मों की सर्वाधिक लोकप्रिय कव्वालियों में से एक है। सोनिक-ओमी द्वारा संगीतबद्ध इस कव्वाली को मोहम्मद रफी और आशा भोसले ने गाया था। प्राण, जिन्होंने फिल्म में मुख्य भूमिका की थी के ऊपर फिल्माई इस कव्वाली में उनके साथ बिंदू थीं। वर्मा, मालिक द्वारा लिखित इस कव्वाली को देखने के लिए दर्शक विशेष रूप से सिनेमा हॉल में जाते और खूब सिक्के उछालते। “विक्टोरिया न. 203” (1972) में उन पर और अशोक कुमार जिन्होंने दो चोरों राजा और राणा की भूमिकाएं की थीं पर फिल्माया गाना, दो बेचारे बिना सहारे देखो पूछ-पूछ कर हारे… भी बहुत लोकप्रिय हुआ था। वर्मा मलिक द्वारा लिखे गीत को भी कल्याणजी-आनंद जी की जोड़ी ने संगीत दिया था और इसे किशोर कुमार एवं महेंद्र कपूर ने गाया था। फिल्म कसौटी (1974) में उन्होंने एक नेपाली गोरखा की भूमिका निभाई जो नायक अमिताभ बच्चन का मित्र है। इसमें उन पर फिल्माए गए गीत- हम बोलेगा तो बोलोगे की बोलता है, को किशोर कुमार ने बड़े ही दिलचस्प नेपाली लहजे में गाया था।
इसी वर्ष आई एक अन्य फिल्म मजबूर में भी उनके नायक अमिताभ थे और प्राण सहृदय शराबी माइकल डिसूजा की भूमिका में थे। इस फिल्म में उन पर फिल्माया गया गाना- फिर न कहना माइकल दारू पी के दंगा करता है..” भी बेहद लोकप्रिय हुआ था।
चलते चलते: फिल्म जंजीर के गीत के नृत्य निर्देशक थे सत्यनारायण। शूटिंग वाले दिन प्राण के कूल्हे में दर्द था और उन्हें हाथों में रुमाल लेकर पठानी जोश के साथ तेज-तेज नाचना था। सत्यनारायण ने इसका हल निकालते हुए प्राण से कहा कि आप अपने स्टेप्स धीरे-धीरे कीजिएगा और अंत में जब संगीत और नृत्य तेज होगा तो मैं आपको सहयोगी नर्तकों के घेरे में दिखा दूंगा, लेकिन गाने के अंतिम चरण में प्राण गीत की लय और ताल में इतने डूब गए कि अपने कूल्हे का दर्द भूलकर पूरे जोश के साथ ऐसा नाचे कि उनका नृत्य अविस्मरणीय और फिल्म का मुख्य आर्कषण बन गया… हाँ यह अलग बात है कि इस कारण हुए कूल्हे में दर्द के कारण वह चार-पांच दिन बिस्तर पर रहे।
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(लेखक- राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)