मध्य पूर्वी देश यमन में युद्ध एक स्थायी आपदा बन गया है। वहां करोड़ों लोगों को मदद की दरकार है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने चेताया है कि रूस व यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध की मार यमन को भुखमरी के संकट के रूप में झेलनी पड़ सकती है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के राहत मामलों के प्रमुख मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने सुरक्षा परिषद को बताया कि यमन युद्ध के सात साल से अधिक समय के बाद भी लगातार आपातकाल की स्थिति में रह रहा है। वहां पर भूख, बीमारी और अन्य संकट कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि वैश्विक सहायता एजेंसियों के प्रयासों की रफ़्तार की तुलना में यमन के संकट कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रहे हैं। ग्रिफिथ्स ने कहा कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से यह संकट और भयावह दिखने लगा है।
नए राष्ट्रव्यापी आकलन के अनुसार, इस समय यमन में लगभग दो करोड़ 34 लाख लोगों को सहायता की आवश्यकता है, यानि हर चार लोगों में से लगभग तीन लोगों को मदद की दरकार है। उनमें से एक करोड़ 90 लाख ऐसे लोग भी हैं जो आने वाले महीनों में भूखे पेट रहने को मजबूर होंगे। इस संख्या में वर्ष 2021 की तुलना में 20 प्रतिशत की वृद्धि होगी, जबकि उनमें से लगभग एक करोड़ 60 हज़ार लोग अकाल जैसी स्थितियों का सामना करेंगे।
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उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि यमन अपनी 90 प्रतिशत भोजन खपत और ईंधन की लगभग 100 प्रतिशत ज़रूरत के लिये वाणिज्यिक आयात पर निर्भर करता है। यमन की ज़रूरत का एक तिहाई गेहूं रूस और यूक्रेन से आता है। वहां युद्ध के कारण इस बार संकट और बढ़ने की उम्मीद है।
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