बुधवार के दिन विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की विधिपूर्वक पूजा अर्चना करने का विधान है। मान्यता है कि गणपति की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन के सभी संकटों का नाश होता है। साथ ही धन-संपदा, बुद्धि, विवेक, समृद्धि में वृद्धि होती है। भगवान गणेश की पूजा में दूर्वा या दूब एक विशेष प्रकार की घास चढ़ाई जाती है। इसके बिना गणेश जी की पूजा संपन्न नहीं मानी जाती। गणेश जी ही एक ऐसे देव हैं, जिन्हें पूजा में दूर्वा चढ़ाई जाती है। आइए जानते हैं कि गणेशजी की पूजा में दूर्वा घास का क्या महत्व है और इसके बिना पूजा पूरी क्यों नहीं मानी जाती।

पौराणिक कथा में छुपा है दूर्वा चढ़ाने का रहस्य
कहते हैं कि प्रचीन काल में अनलासुर नामक एक असुर था। जिसकी वजह से स्वर्ग और धरती के सभी लोग परेशान थे। वह इतना खतरनाक था कि ऋषि-मुनियों सहित आम लोगों को भी जिंदा निगल जाता था। इस असुर से हताश होकर देवराज इंद्र सहित सभी देवी-देवता और ऋषि-मुनि के साथ महादेव से प्रार्थना करने पहुंचे। सभी ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस असुर का वध करें। शिवजी ने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर उन्हें बताया कि अनलासुर का अंत केवल गणपति ही कर सकते हैं।
पेट की जलन शांत करने को दी गई दूर्वा
कथा के अनुसार जब गणेश ने अनलासुर को निगला तो उनके पेट में जलन होने लगी। नाना प्रकार के उपाय किए गए, लेकिन गणेशजी के पेट की जलन शांत ही नहीं हो रही थी। तब कश्यप ऋषि को एक युक्ति सूझी। उन्होंने दूर्वा की 21 गांठ बनाकर श्रीगणेश को खाने के लिए दी। जब गणेशजी ने दूर्वा खाई तो उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से भगवान श्रीगणेश जी को दूर्वा अर्पित करने की परंपरा हुई। गणेश जी की पूजा में तो इसका महत्व है ही।
यह भी पढ़े: शेख हसीना की हत्या की कोशिश करने वाले 14 आंतकियों को मिली सजा-ए-मौत
इसके अलावा यह पेट की जलन में राहत के अलावा कई तरह की बीमारियों में भी आराम पहुंचाती है, इसीलिए आयुर्वेद में इसका काफी महत्व है।
Sarkari Manthan Hindi News Portal & Magazine