जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारुख अब्दुल्ला के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने की मांग करना याचिकाकर्ता को काफी महंगा साबित हुआ है। दरअसल। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फारुख अब्दुल्ला को राहत देते हुए न सिर्फ यह याचिका खारिज की है, बल्कि याचिकाकर्ता पर भारी जुर्माना भी लगाया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सरकार की राय से अलग और विरुद्ध राय रखने वाले विचारों की अभिव्यक्ति को देशद्रोही नहीं कहा जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सुनाई कड़ी सजा
दरअसल, फारूक अब्दुल्ला द्वारा अनुच्छेद 370 पर दिए गए बयान के खिलाफ रजत शर्मा नाम के याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ता ने इस याचिका में मांग की थी कि फारूक अब्दुल्ला के बयान को देखते हुए उन पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया जाए।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने रजत शर्मा की इस मांग को दरकिनार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता रजत शर्मा पर 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है।व् याचिकाकर्ता का आरोप है कि फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर अनुच्छेद-370 की बहाली के लिए चीन से मदद लेने की बात कही थी।
उधर, इस आरोप को नेशनल कॉन्फ्रेंस ने खारिज कर दिया था। पार्टी ने कहा कि अब्दुल्ला ने कभी भी नहीं कहा कि चीन के साथ मिलकर हम अनुच्छेद 370 की वापसी कराएंगे, उनके बयानों को गलत तरीके से और तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया।
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा कि फारूक अब्दुल्ला ने देशद्रोही कार्य किया है, उनके खिलाफ ना केवल गृह मंत्रालय को कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए बल्कि उनकी संसद सदस्यता भी रद्द की जाए। अगर उनको संसद सदस्य के तौर पर जारी रखा जाता है तो इसका अर्थ है कि भारत में देश-विरोधी गतिविधियों को स्वीकार किया जा रहा है और ये देश की एकता को नुकसान पहुंचाएगा।
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सुप्रीम कोर्ट ने रजत शर्मा की याचिका को खारिज करते हुए उस पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने ये जुर्माना इसलिए लगाया, क्योंकि याचिकाकर्ता फारूक अब्दुल्ला के उस कथित बयान को साबित नहीं कर पाया, जिसमें उन्होंने अनुच्छेद 370 पर भारत के खिलाफ चीन और पाकिस्तान की मदद मांगी थी।